12 Jyotirlinga In Hindi, क्या आप जानतें हैं 12 ज्योतिर्लिंग कहां-कहां पर है। हिंदू धर्म में भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग का बहुत महत्व है। देश के 12 विभिन्न स्थानों पर स्थित भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग अपनी देश की एकता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हिंदू धर्म के अनुसार जो व्यक्ति पूरे 12 ज्योतिर्लिंग के दर्शन कर ले, उसे मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है और उसके सभी संकट और बाधाएं दूर हो जाती है। हालांकि जीवन में इन सभी 12 ज्योतिर्लिंग के दर्शन हर कोई नहीं कर पाता, सिर्फ किस्मत वाले लोगों को ही इन ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त होता है। हिन्यू मान्यता में 12 ज्योतिर्लिंग कहानी के अनुसार भगवान शिव शंकर ने जिन 12 स्थानों पर अवतार लेकर अपने भक्तों को दर्शन दिए उन जगहों पर इन ज्योतिर्लिंग की स्थापना की गई।
अगर आप भी इन ज्योतिर्लिंग की आध्यात्मिक यात्रा शुरू करने की योजना बना हैं तो हमारे इस आर्टिकल में आप भगवान शिव के पूरे 12 ज्योतिर्लिंग से जुड़ी जानकारी आपको मिल जाएगी। तो चलिए जानते हैं १२ ज्योतिर्लिंग कहां कहां है और क्या है इनका महत्व ।
ज्योतिर्लिंग क्या है और ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति कैसे हुई- What Is Jyotirling In Hindi
जब आप ज्योतिर्लिंग शब्द को तोड़ते हैं तो पहले शब्द “ज्योति” बन जाता है जिसका अर्थ है “चमक” और “लिंग” भगवान शंकर के स्वरूप को प्रकट करता है। ज्योतिर्लिंग का सीधा अर्थ भगवान शिव के प्रकाशवान दिव्य रूप से ही है। इन ज्योतिर्लिंग को शिव का अलग रूप माना जाता है। अब आप ये जरूर जानना चाहेंगे कि आखिर ये ज्योतिर्लिंग होते क्या हैं और इन ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति कैसे हुई।
तो चलिए हम आपको बताते हैं कि ज्योतिर्लिंग हा मतलब क्या होते हैं। दरअसल, ज्योतिर्लिंग स्वयंभू होते हैं, यानि ज्योतिर्लिंग खुद से प्रकट होते हैं। वैसे तो ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति को लेकर कई मान्यताएं प्रचलित हैं, लेकिन शिव पुराण के अनुसार उस समय आसमान से ज्योति पिंड पृथ्वी पर गिरे और उनसे पूरी पृथ्वी पर प्रकाश फैल गया। इन्हीं पिंडों को 12 ज्योतिर्लिंग का नाम दे दिया गया है। वहीं इसके पीछे एक कहानी यह भी है कि ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति भगवान शंकर और भगवान ब्रह्मा के विवाद को निपटाने के लिए हुई थी।
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गुजरात राज्य के सौराष्ट्र क्षेत्र में स्थिति सोमनाथ मंदिर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग में से एक है। सोमनाथ मंदिर को पृथ्वी का पहला ज्योतिर्लिंग माना गया है। शुरूआत से ही सोमनाथ मंदिर हिंदू धर्म के उत्थान और पतन के इतिहास का प्रतीक रहा है। सोमनाथ देश के सबसे अधिक पूजे जाने वाले तीर्थस्थलों में से एक है।
सोमनाथ मंदिर की वास्तुकला चालुक्य शैली से मिलती-जुलती है और माना जाता है कि भगवान शिव इस तीर्थ में प्रकाश के एक जलमग्न स्तंभ के रूप में प्रकट हुए थे। शिव पुराण की कहानियों से पता चलता है कि सोमनाथ शिवलिंग की स्थापना स्वयं चंद्रदेव ने की थी। सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की कहानी के अनुसार चंद्रमा ने दक्ष प्रजापति की 27 बेटियों से शादी की थी, लेकिन चंद्रमा ने एक पत्नी रोहिणी को छोड़कर बाकी सभी पत्नियों को त्याग दिया, जिसके बाद प्रजापति द्वारा चंद्रमा को क्षय रोग होने का श्राप दिया गया।
इस श्राप से छुटकारा पाने और अपनी खोई हुई चमक और सुंदरता को वापस पाने के लिए इसी जगह पर भगवान शिव की अराधना कर चंद्रमा ने श्राप से मुक्ति पाई थी। कठियावाढ़ क्षेत्र में स्थिति यह शिव मंदिर। विदेशीयो ने 17 बार सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण करके इसे नष्ट करने का प्रयास किया और 16 बार इसे दोबारा बनाया गया।
माना जाता है कि सोमनाथ का पहला मंदिर पूर्व ऐतिहासिक काल से ही मौजूद है। दूसरी बार सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण सिंध के अरब गर्वनर ने नष्ट किया था जिसे यादवा के राजाओं द्वारा पुनर्निमित कराया गया था। गुर्जर राजा नागभट्ट द्वितीय ने लाल पत्थरों से इस मंदिर का निर्माण कराया।
सन् 1024 में गजनी के महमूद ने इसे तोडऩे का प्रयास किया, जिसे फिर से बनवाया गया लेकिन तीन शताब्दियों के बाद एक बार फिर सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी की सेना द्वारा सोमनाथ मंदिर को नष्ट कर दिया गया तब सन् 1783 में इंदौर की रानी अहिल्याबाई होल्कर ने मंदिर का निर्माण करवाया, क्योंकि इस प्रसिद्ध मंदिर को मुस्लिमों द्वारा मुस्जिद में तब्दील कर दिया गया था, तब मस्जिद से मंदिर का पुनर्निर्माण कराने का श्रेय रानी अहिल्याबाई को जाता है। सन् 1974 में सरदार वल्लभाई पटेल ने मूल स्थान पर सोमनाथ मंदिर के पुर्ननिर्माण का आदेश दिया और आज जिस सोमनाथ मंदिर को हम देख रहे हैं वह स्वतंत्रता के बाद भारत में निर्मित राजसी संरचना है।
सोमनाथ मंदिर के दर्शन हर दिन सुबह 6 बजे से रात 9 बजे तक होते है। सुबह 7 बजे, दोपहर 12 बजे और शाम को 7 बजे यहां सोमनाथ महादेव नी आरती होती है। यहां हर शाम सोमनाथ मंदिर मै लाइट एंउ साउंड शो दिखाया जाता है। शाम की आरती के बाद यहां टिकट मिलना शुरू हो जाते हैं। ये शो हर रोज रात 8 से 9 बजे के बीच दिखाया जाता है। मंदिर के भीतर प्रसाद काउंटर पर सोमनाथ मंदिर लाइट एंउ साउंड शो के टिकट उपलब्ध होते हैं। बता दें कि सोमनाथ मंदिर लाइट एंउ साउंड शो के लिए कोई एडवांस बुकिंग नहीं होती। ध्यान रखें कि इस शो के दौरान आप अपना बैग, चाबी, कैमरा या फोन साथ नहीं ले जा सकते।
ऐसी बहुत कम ट्रेन है जो आप को सीधे सोमनाथ पहुचाये। ज्यादातर ट्रेन सोमनाथ के नजदीक 7 किमी की दूरी पर स्थित वेरावल स्टेशन है वहां रूक जाती हैं। अगर आपके शहर से वेरावल के लिए भी कोई ट्रेन न मिले तो अच्छा ऑप्शन है अहमदाबाद जाना। यहां से आपको सोमनाथ के लिए ट्रेन मिल जाएगी। बता दें कि सोमनाथ स्टेशन से मंदिर की दूरी मात्र 8 किमी की है। सोमनाथ मंदिर पहुचने के लिए आप यहां से ऑटो बुक कर सकते हैं। सोमनाथ के दर्शनीय स्थल को ऑटो के बजाय पैदल देखना ज्यादा बेहतर है। भालका तीर्थ को छोड़कर बाकी के सभी स्थान 1 से 2 किमी के बीच हैं, जिन्हें आप आराम से घूम सकते हैं। भालका तीर्थ के लिए वेरावल वाले ऑटो बुक करें, आप आसपास के सभी तीर्थस्थान घूम लेंगे।
सोमनाथ मंदिर जाने के लिए अक्टूबर से मार्च तक का समय अच्छा माना जाता है। इन महीनों में यहां का तापमान सहज होता है और दर्शनीय स्थलों को देखने के लिए भी उपयुक्त होता है।
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नागेश्वर ज्योतिर्लिंग का मंदिर गोमती द्वारका और बैत द्वारका के बीच गुजरात में सौराष्ट्र के तट पर स्थित है। नागेश्वर ज्योतिर्लिंग सभी 12 ज्योतिर्लिंग मै से सब से लोकप्रिय ज्योतिर्लिंग है। नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा के अनुसार नागेश्वर को इस धरती का सबसे शक्तिशाली 12 ज्योतिर्लिंग मै से एक माना गया है, जो सभी प्रकार के जहरों के संरक्षण का प्रतीक है। भूमिगत गृभग्रह में स्थित नागेश्वर महादेव के पवित्र मंदिर में आशीर्वाद लेने हजारों भक्त हर साल यहां पहुंचते हैं। नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर में 25 मीटर ऊंची भगवान शिव की प्रतिमा , बड़े बगीचे और नीले सागर का अबाधित दृश्य पयर्टकों को मोहित कर देता है।
नागेश्वर मंदिर के पट हर सुबह 5 बजे से रात 9 बजे तक खुले रहते हैं। भक्त सुबह 6 बजे से दोपहर 12:30 बजे तक और शाम को 5 से रात 9 बजे तक नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन कर सकते हैं। गृभग्रह में बने इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन से पहले पुरूषों को दूसरे वस्त्र धारण करने पड़ते हैं, जो उन्हें मंदिर में ही उपलब्ध कराए जाते हैं।
नागेश्वर पहुचंने के लिए सबसे पहले ट्रेन से आपको द्वारिका जाना होगा और अगर फ्लाइट से जा रहे हैं तो पहले आपको जामनगर जाना होगा, यहां हवाई अड्डे से द्वारका नजदीक है। द्वारका से नागेश्वर की दूरी मात्र 24 मिनट की है। द्वारका पहुंचने के बाद आप आसानी से ऑटो रिक्शा और कैब के जरिए यहां पहुंच सकते हैं। और सोमनाथ से नागेश्वर की दूरी 263 किमी की हैं।
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग दर्शन करने के लिए सर्दियों के दिन उपयुक्त होते हैं। यानि की अक्टूबर से फरवरी के बीच आप नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन के लिए जा सकते हैं। यहां का मौसम ठंडी हवाओं के साथ काफी सुखद रहता है।
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भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के पांच ज्योतिर्लिंग मै से एक है। 12 ज्योतिर्लिंग मै से महाराष्ट्र ज्योतिर्लिंग लिस्ट मै पुरे 5 मंदिर है। अब सवाल यह आता है की भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग कहां पर है। भीमाशंकर मंदिर महाराष्ट्र के पुणे जिले से 110 किमी दूरी पर स्थित है जिसे को मोटेश्वर मंदिर नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर सुहाद्रि नामक पर्वत पर स्थित है। यहां से भीमा नामक नदी बहती है जो दक्षिण पश्चिम दिशा में बहती हुई रायचूर जिले में कृष्णा नदी से मिलती है।
भीमाशंकर मंदिर हर रोज सुबह 4:30 बजे से दोपहर 12 बजे और शाम को 4 बजे से रात 9:30 बजे तक दर्शन के लिए खुला रहता है। भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग के दर्शन के लिए सुबह 5 बजे से यहां दर्शन करने के लिए लंबी लाइन लग जाती है। भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग की आरती के लिए दोपहर 45 मिनट के लिए दर्शन बंद कर दिए जाते हैं।
भीमाशंकर पहुंचने के लिए कई रस्ते है जैसे अगर आप ट्रेन से भीमाशंकर जाना चाहते हैं तो पहले आपको पुणे स्टेशन तक जाना होगा। पुणे से भीमाशंकर की दूरी मात्र 110 किमी है। अगर आप फ्लाइट से जाना चाहते हैं तो पुणे हवाई अड्डा सबसे पास है, जहां से भीमाशंकर की दूरी 125 किमी है। अगर आप रोड के जरिए भीमाशंकर जा रहे हैं तो पुणे से भीमाशंकर पहुंचने में आपको साढ़े तीन से चार घंटे का समय लगेगा। नासिक से भीमाशंकर की दूरी 208 किमी की हैं।
भीमाशंकर यात्रा करने के लिए नवंबर से फरवरी तक का समय सबसे अच्छा समय माना जाता है। ट्रेकर्स यहां सर्दियों के दिनों में भीमाशंकर यात्रा कर सकते हैं। हालांकि अनुभवी ट्रेकर्स मानसून में ट्रेकिंग के लिए यहां आना ज्यादा अच्छा मानते हैं। लेकिन अगर आप पहली बार ट्रेकिंग कर रहे हैं तो नवंबर से फरवरी तक का समय यहां आने के लिए बेहतर है।
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त्रयंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के पांच ज्योतिर्लिंग मै से दूसरा ज्योतिर्लिंग और भारत के १२ ज्योतिर्लिंग मै से तीसरा ज्योतिर्लिंग हैं। त्रयंबकेश्वर मंदिर नासिक जिले से 25 किमी की दूरी पर ब्रह्मगिरी पर्वत के पास स्थित है। ये पर्वत गोदावरी नदी के उद्गम स्थल के रूप में जाना जाता है, जिसे गौतमी गंगा भी कहा जाता है। शिव पुराण के अनुसार गोदावरी नदी और गौतमी ऋषि ने भगवान शिव से यहां निवास करने की विनती की थी इसलिए यहां भगवान शिव त्रयंबकेश्वर के रूप में प्रकट हुए। इस ज्योतिर्लिंग का सबसे अनोखा हिस्सा इसका आकार है। एक तीर्थस्थल के बजाए यहां एक खंभा है, जिसमें तीन खंभे हैं। ये तीन खंभे सबसे शक्तिशाली और आधिकारक देवताओं ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतिनिधित्व करते हैं।
त्रयंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग में आप सुबह 5:30 बजे से रात 9 बजे तक दर्शन कर सकते हैं। यहां आम दिनों में ज्योतिर्लिंग के दर्शन जल्दी हो जाते हैं, लेकिन शिवरात्रि और सावन के महीने में ज्योतिर्लिंग के दर्शन पांच से छह घंटे में ही हो पाते हैं। इसलिए अगर सावन और शिवरात्रि के दौरान आप त्रयंबकेश्वर जाएं तो जल्द सुबह लाईन में लग जाएं, दर्शन जल्दी हो जाएंगे।
ट्रेन से त्रयबंकेश्वर पहुचंने के लिए पहले आपको नासिक स्टेशन तक जाना होगा। यहां से आप टैक्सी या कार हायर करके त्रयंबकेश्वर पहुंच सकते हैं। वहीं अगर आप फ्लाइट से त्रयंबकेश्वर जा रहे हैं तो पहले आपको मुंबई ऐयरपोर्ट तक जाना होगा। मुंबई एयरपोर्ट से त्रयंबकेश्वर की दूरी 200 किमी है।
त्रयंबकेश्वर की यात्रा करने का सही समय अक्टूबर से मार्च का महीने है, क्योंकि इस दौरान यहां का मौसम बहुत अच्छा होता है। इस समय यहां न ज्यादा ठंड रहती है और न ही गर्मी। आप आराम से ज्योतिर्लिंग के दर्शन कर सकते हैं।
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प्रभावशाली लाल चट्टानों के साथ 5 मंजिला शिखर शैली की संरचना, देवी देवताओं की नक्काशी और मुख्य दरबार हॉल में विशाल नंदी बैल घृष्णेश्वर मंदिर 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह ज्योतिर्लिंग औरंगाबाद के अजंता और एलोरा की गुफाओं के पास वेरूल गांव में स्थित है। अहिल्याबाई होल्कर द्वारा निर्मित इस मंदिर को ग्रुमेश्वर और कुसुमेश्वर के नाम से भी जाना जाता है। यहां लाल चट्टान पर उकेरी गई विष्णु की दशावतार मूर्ति आकर्षण का केंद्र है।
घृष्णेश्वर मंदिर में ज्योतिर्लिंग के दर्शन के लिए सुबह 5:30 बजे से रात 9 बजे के बीच जाएं। सावन के महीने में यहां दर्शन सुबह 3 बजे से शुरू होकर सुबह 11 बजे तक होते हैं। आमतौर पर ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने में दो घंटे का समय लगता है, लेकिन सावन के महीने में यहां विशाल पैदल यात्राएं होती हैं और दर्शन करने में पूरे 6 से 8 घंटे का समय लगता है।
घृष्णेश्वर फ्लाइट से जाने के लिए आपको औरंगाबाद एयरपोर्ट सबसे नजदीक पड़ेगा। यहां से घृष्णेश्वर की दूरी 29 किमी है। जबकि आप औरंगाबाद से घृष्णेश्वर के लिए बस या टैक्सी की भी स़ुविधा ले सकते हैं। वहीं अगर आप रेल से सफर करते हैं तो आपको औरंगाबाद रेलवे स्टेशन पहुंचना होगा। औरंगाबाद रेलवे स्टेशन से घृष्णेश्वर की दूरी भी मात्र 29 किमी है। यहां से मंदिर तक पहुंचने के लिए आप कार या टैक्सी किराए से ले सकते हैं।
घृष्णेश्वर जाने के लिए आपको जनवरी, फरवरी, मार्च के बाद अक्टूबर, नवंबर और दिसंबर के महीनों को चुनना होगा। इन महीनों में यहां का तापमान अनुकूल होता है। इन महीनों में घृष्णेश्वर की यात्रा आप अच्छे से कर सकते हैं।
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देश के सबसे ज्यादा पूजे जाने वाले ज्योतिर्लिंग में से एक है वैद्यनाथ । वैजनाथ भी हिंदू धर्म के सती के 52 शक्तिपीठों मै से एक है। पौराणिक कथाओं और 12 ज्योतिर्लिंग कहानी के अनुसार यहां रावण ने वर्षों तक शिव की अराधना की थी और शिव को लंका में आमंत्रित कया था। शिव ने शिवलिंग के रूप में खुद को रावण को सौंपा और कहा कि लंका के पहुंचने तक ये शिवलिंग नीचे नहीं गिरना चाहिए, लेकिन रावण ने भगवान शिव की अवज्ञा की और लंका पहुंचने से पहले ही शिवलिंग उनके हाथों से नीचे गिर गया। जहां ये शिवलिंग गिरा वहीं भगवान शिव देवघर में वैद्यनाथ के रूप में निवास करने लगे। सावन के महीने में यहां ज्यादा पदयात्रा होती हैं, लोगों का मानना है कि यहां भगवान शिव की आराधना करने से सभी दुखों से मुक्ति मिलती है।
वैद्यनाथ मंदिर सुबह 4 बजे से दोपहर साढ़े तीन बजे तक दर्शन के लिए खुला रहता है। वहीं शाम को 6 से रात 9 बजे तक यहां ज्योतिर्लिंग के दर्शन किए जा सकते हैं। शिवरात्रि के समय मंदिर में दर्शन का समय बदल दिया जाता है।
देवघर से नजदीकी रेलवे स्टेशन वैद्यनाथ धाम है, जो शहर से 7 किमी दूर है। जसीडीह जंक्शन देवघर से 7 किमी दूर है और यह दिल्ली-हावड़ा मार्ग पर स्थित है। यह स्टेशन देश के प्रमुख शहरों से भी जुड़ा हुआ है। अगर आप फ्लाइट से जा रहे हैं तो आपको पहले पटना एयरपोर्ट पर उतरना होगा। यहां से वैद्यनाथ धाम की दूरी 252 किमी है। मंदिर तक पहुंचने के लिए आपको करीब 5 घंटे लगेंगे जिसके लिए आप कार या टैक्सी हायर कर सकते हैं।
अक्टूबर से शुरू होकर सर्दियों का मौसम देवघर की यात्रा करने के लिए उचित समय है। इस समय यहां की जलवायु सुखद और परिवेश बहुत प्यारा होता है। यह यात्रियों के लिए पीक सीजन भी है।
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भारत के उत्तरांचल राज्य में रूद्र हिमालयन रेंज में स्थित केदारनाथ भी 12 ज्योतिर्लिंग मै से एक है और यह हिंदू धर्म के चार धामों में से एक माना जाता है। केदारानाथ जाने वाले तीर्थयात्री पवित्र जल लेने के लिए सबसे पहले गंगोत्री और यमुनोत्रि जाते हैं , जिसे वे केदारनाथ शिवलिंग को अर्पित करते हैं। बेहद ठंडे मौसम और बर्फबारी के कारण यह मंदिर साल में केवल 6 महीने मई से जून तक खुलता है। माना जाता है कि केदारनाथ के दर्शन करने के बाद व्यक्ति का जीवन सफल हो जाता है। प्रसिद्ध हिंदू संत शंकराचार्य की समाधि केदारानाथ मंदिर के ठीक पीछे स्थित है। हरिद्वार से केदारनाथ की दूरी 150 किमी है। केदारनाथ का वर्णन शिव पुराण और स्कंद पुराण में भी मिलता है। केदारनाथ तक ट्रेकिंग करना थोड़ा मुश्किल है, इसलिए यहां लोग पैदल चलने के लिए खच्चरों या डोलियों का इस्तेमाल करते हैं।
केदारनाथ में दर्शन करने के लिए मंदिर के पट सुबह 4 बजे खुल जाते हैं। यहां आप सबुह 4 से दोपहर 12 बजे तक केदारनाथ ज्योतिर्लिंग के दर्शन कर सकते हैं। वहीं दोपहर में 3 बजे से रात 9 बजे तक दर्शन के लिए जाया जा सकता है।
केदारानाथ आप ट्रेन से जा सकते हैं। ऋषिकेश केदारनाथ के सबसे पास रेलवे स्टेशन है जिसके बीच की दूरी 216 किमी है। ऋषिकेश से गौरीकुंड पहुंचने के लिए आप टैक्सी या बस की सर्विस ले सकते हैं। सोनप्रयाग और गौरीकुंड के बीच की दूरी मात्र 5 किमी है। यहां सड़क खत्म हो जाती है। 2013 में आई बाढ़ के खतरनाक हादसे के बाद सरकार ने रामबाढ़ा के बाद एक नया ट्रेकिंग रूट तैयार कर दिया है। नए ट्रेक से आप जाएंगे तो गौरीकुंड से केदारनाथ की दूरी 16 किमी है। 2016 में केदारनाथ तक जाने के लिए दो ट्रैक और तैयार किए हैं। जिसमें से पहला चौमासी से होते हुए खाम, फिर रामबाड़ा और फिर केदारनाथ पहुंचने का है। इस रूट की कुल दूरी18 किमी है। वहीं दूसरा रास्ता त्रिजुगीनारायण से केदारानाथ जाने का है, जिसके बीच की दूरी 15 किमी है।
केदारनाथ वर्ष के अधिकांश भाग के लिए ठंडा है। हालांकि, मई से जून और सितंबर से अक्टूबर के बीच केदारनाथ जाने के लिए सबसे अच्छा समय है। इसका मतलब यह है कि अपनी यात्रा की योजना बनाते समय सर्दियों से बचना चाहिए। सर्दियों में नवंबर से अप्रैल तक भारी वर्षा के साथ उप-शून्य तापमान तक पहुंच जाता है। समरटाइम (मई-जून) केदारनाथ और आसपास के अन्य स्थलों की यात्रा के लिए आदर्श है।
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उत्तरप्रदेश के वाराणासी में स्वर्ण मंदिर के रूप में प्रसिद्ध काशी विश्वनाथ भारत में 12 ज्योतिर्लिगों में सबसे ज्यादा लोकप्रिय है। सन् 1780 में महारानी अहिल्याबाई होल्कर द्वारा निर्मित यह ज्योतिर्लिंग हिन्दुओं के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है। भक्तों का मानना है कि भगवान शिव ने यहां निवास कर सभी को खुशी और मुक्ति प्रदान की थी। इस जगह के बारे में माना जाता है कि प्रलय आने पर भी विश्वनाथ मंदिर डूबेगा नहीं बल्कि ऐसे ही बना रहेगा। इसकी रक्षा करने के लिए खुद भगवान शिव इस जगह को अपने त्रिशूल पर धारण कर लेंगे और प्रलय टल जाने पर काशी को उसकी फिर से जगह दे देंगे।
विश्वनाथ मंदिर के पट सुबह 2:30 बजे से रात 11 बजे तक खुले रहते हैं। सबसे पहले सुबह 3 बजे से 4 बजे तक मंगल आरती होती है। इसके बाद सुबह 4 बजे से 11 बजे तक ज्योतिर्लिंग के सर्वदर्शन शुरू हो जाते हैं। इसके बाद 11:15 से दोपहर 12:20 तक भोग आरती होती है, जिसके बाद शाम 7 बजे तक ज्योतिर्लिंग के दर्शन होते हैं। शाम 7 बजे से रात 8:15 तक सांध्य आरती होती है, जिसके बाद रात 9 बजे से 10:15 तक श्रृंगार आरती और 10:30 से 11 बजे तक शयन आरती होती है।
वाराणासी में कई रेलवे स्टेशन है। जबकि वाराणासी सिटी स्टेशन मंदिर से केवल 2 किमी की दूरी पर स्थित है। वाराणसी जंक्शन 6 किमी दूर है। रेलवे स्टेशन के मेन गेट से आप विश्वनाथ मंदिर तक पहुंचने के लिए ऑटो रिक्शा या साइकिल रिक्शा ले सकते हैं। अगर आप फ्लाइट से जाना चाहते हैं तो बाबतपुरा में लाल बहादुर शास्त्री एयरपोर्ट नजदीक है। यहां से काशी विश्वनाथ मंदिर की दूरी 20-25 किमी है। पर्यटक मंदिर तक पहुचंने के लिए टैक्सी, कैब या सावर्जनिक परिवहन की भी सुविधा ले सकते हैं।
विश्वनाथ जाने के लिए सर्दियों का समय सबसे अच्छा माना जाता है। गर्मियों में तो यहां भूलकर भी ना जाएं। क्योंकि इस समय यहां का मौसम काफी शुष्क रहता है और तेज धूप के चलते आप सैर नहीं कर सकते। वहीं मानसून में भी अच्छी बारिश होती है इसलिए इस मौसम में भी विश्वनाथ के दर्शन करने जाना अवॉइड करें।
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मध्यप्रदेश में इंदौर के पास स्थित ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग भारत के सबसे पवित्र स्थानों में से एक है। 12 ज्योतिर्लिंग मै से मध्यप्रदेश मै 2 ज्योतिर्लिंग स्त्रीर है यहां नर्मदा नदी बहती है और नदी के बहने से पहाड़ी के चारों ओर ओम का आकार बनता है। यह ज्योर्तिलिंग असल में ओम का आकार लिए हुए है, यही वजह है कि इसे ओंकारेश्वर नाम से जाना जाता है। ओंकारेश्वर मंदिर का एक पौराणिक महत्व भी है। लोगों का मानना है कि एक बार देवता और दानवों के बीच युद्ध हुआ और देवताओं ने भगवान शिव से जीत की प्रार्थना की। प्रार्थना से संतुष्ट होकर भगवान शिव यहां ओंकारेश्वर के रूप में प्रकट हुए और देवताओं को बुराई पर जीत दिलाकर उनकी मदद की।
ओंकारेश्वर में दर्शन करने का समय सुबह 5 बजे से रात के 10 बजे तक होता है। सुबह के दर्शन आप सुबह 5:30 बजे से दोपहर 12:20 तक और शाम के दर्शन 4 से रात 8:30 बजे तक कर सकते हैं।
ओंकारेश्वर जाने के लिए पहले आपको इंदौर जाना होगा। इंदौर से ओंकारेश्वर की दूरी मात्र 80 किमी है। अगर आप अपनी कार या बस से जा रहे हैं तो खंडवा रोड पर बड़वाह और मोरटक्कर के रास्ते होते हुए लगभग ढाई घंटे में ओंकारेश्वर पहुंच जाएंगे। ओंकारेश्वर के लिए इंदौर से भी बसें मिल जाती हैं। सुबह 8:15 बजे यहां से मप्र पर्यटन की एसी बस में आप जा सकते हैं, जिसका किराया मात्र 80 रूपए रखा गया है। एसी बस में एडवांस बुकिंग करा लेंगे तो जल्दी सीट मिल जाएगी। वहीं अगर आप ट्रेन से ओंकारेश्वर जा रहे हैं तो ओंकारेश्वर रोड स्टेशन पर उतरना होगा। यहां से मंदिर की दूरी 13 किमी है। मंदिर तक पहुंचने के लिए आप कोई भी साधन ले सकते हैं।
मप्र के खंडवा जिले में स्थित होने के कारण यहां सर्दी और गर्मी दोनों ही बहुत ज्यादा पड़ती है, इसलिए ओंकारेश्वर जाने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च का है। इस दौरान आपकी यात्रा सार्थक होती है और आप शांति से मंदिर में ज्योतिर्लिंग के दर्शन कर सकते हैं।
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मध्यप्रदेश के उज्जैन में स्थित महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का विशाल आध्यात्मिक महत्व है। यह ज्योतिर्लिंग मध्य भारत के लोकप्रिय बारह ज्योतिर्लिंग में से एक है। इस मंदिर के बारे में बताया जाता है कि मंदिर का निर्माण पांच साल के लड़के श्रीकर ने कराया था। कहा जाता है कि श्रीकर उज्जैन के राजा चंद्रसेन की भक्ति से काफी प्रेरित था। क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग भारत के सात मुक्ति स्थलों के बीच बसा हुआ है।
महाकालेश्वर मंदिर सुबह 4 बजे से रात के 11 बजे तक खुला रहता है। पर्यटक सुबह 8 बजे से 10 बजे तक, फिर 10:30 से शाम के 5 बजे तक महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन कर सकते हैं। इसके बाद शाम 6 से 7 बजे तक और फिर रात 8 से 11 बजे तक यहां आखिरी दर्शन किए जा सकते हैं।
महाकालेश्वर की भस्म आरती प्रमुख आकर्षण है। किस्मत वालों को ही ये आरती देखने को मिल पाती है। भस्म आरती काउंटर मंदिर के मेन गेट पर ही बना हुआ है। यहां सुबह 10:30 बजे से दोपहर 12:30 बजे तक आधार कार्ड दिखाकर एक फॉर्म लेना होगा। इस फॉर्म को भरकर इसके साथ आधार कार्ड की फोटो कॉपी लगाएं और सुबह 11:30 बजे से दोपहर 2:30 बजे तक काउंटर पर जमा कर दें। भस्म आरती का चयन पहले आओ पहले पाओ के आधार पर होता है। जिसमें केवल 400 से 500 लोगों को ही एंट्री मिलती है।
अगर आप भस्म आरती के लिए चयनित हो गए हैं तो शाम 7 बजे तक आपके पास मैसेज आ जाएगा। इसके बाद शाम 7:30 बजे से 10 बजे के बीच मैसेज और ऑरिजनल आधार कार्ड दिखाकर आप भस्म आरती के टिकट ले सकते हैं। भस्म आरती के दौरान पुरूषों को धोती और महिलाओं को साड़ी पहनना जरूरी है। बता दें कि भस्म आरती सुबह 4 बजे शुरू होती है, जिसके लिए आपको कुछ देर पहले वहां पहुंचना पड़ता है।
उज्जैन महाकालेश्वर पहुंचने के लिए भारत के सभी प्रमुख शहरों से ट्रेनें मिल जाती हैं। जबकि अगर आप फ्लाइट से महाकालेश्वर जाना चाहते हैं तो आपको पहले इंदौर के देवी अहिल्याबाई एयरपोर्ट पर विजिट करना होगा। यहां से उज्जैन 60 किमी दूर है। फरवरी से मार्च का महीना महाकालेश्वर आने के लिए अच्छा माना जाता है।
महाकाल के दर्शन करने के लिए सर्दियों का समय सबसे अच्छा है, क्योंकि साल के इस समय के दौरान यहां का मौसम हल्का और सुखद होता है। नवंबर से फरवरी के समय तापमान 3 डिग्री रहता है और 20 डिग्री सेल्सियस के बीच रहता है।
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देश में दक्षिणी ज्योतिर्लिंग रूप में पूजा जाता है रामेश्वरम का ज्योतिर्लिंग। यह ज्येातिर्लिंग तमिलनाडु के रामेश्वरम द्वीप पर स्थित है। माना जाता है कि भगवान राम ने रावण के वध के बाद इस ज्योतिर्लिंग की पूजा की थी। यह मंदिर समुद्र से घिरा हुआ है। दक्षिण के वाराणसी के रूप में लोकप्रिय रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग भारत में सबसे ज्यादा पूजा जाने वाला बारह ज्योतिर्लिंग मै से एक है। इस ज्योतिर्लिंग पर जाने वाले भक्त धनुषकोडि समुद्र तट पर भी जाते हैं, जहां से भगवान राम ने अपनी पत्नी को बचाने के लिए रामसेतु का निर्माण किया था। यह ज्योतिर्लिंग भी भारत के चार धामों में से एक है।
मंदिर में दर्शन करने का समय सुबह 5 बजे से दोपहर 1 बजे तक होता है। इस मंदिर में आप रात 8 बजे तक ही दर्शन कर सकते हैं।
अक्टूबर से अप्रैल तक का समय रामेश्वरम जाने के लिए अच्छा माना जाता है। इस समय यहां का मौसम बेहद अच्छा रहता है। रामेश्वरम में कोई एयरपोर्ट नहीं है, इसलिए आपको मदुरैई एयरपोर्ट तक जाना होगा। यहां से रामेश्वरम की दूरी 149 किमी है। आप ट्रेन से जा रहे हैं तो किसी भी प्रमुख रेलवे स्टेशन से आपको सीधे रामेश्वरम स्टेशन के लिए ट्रेन मिल जाएगी।
रामेश्वरम तमिलनाडु का शहर है, गर्मियों के दौरान यहां का तापमान 27 डिग्री और 40 डिग्री रहता है इसलिए गर्मियों में यहां आने से बचना चाहिए। हां, यहां औसतन बरसात होती है इसलिए आप बारिश के मौसम में रामेश्वरम की यात्रा कर सकते हैं। हालांकि सर्दियों में रामेश्वरम जाना ज्यादा बेस्ट है। चाहें तो आप अक्टूबर से मार्च के बीच रामेश्वरम जाने का प्लान बना सकते हैं, इस वक्त यहां का तापमान 15 से 17 डिग्री सेल्सियस रहता है।
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आंध्रप्रदेश में स्थित मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग को साउथ का कैलाश भी कहा जाता है। यह ज्योतिर्लिंग कृष्णा नदी के तट पर श्री शैल पर्वत पर स्थित है। सुंदर वास्तकुला गोपुरम के नाम से जानी जाती है। मल्लिकार्जुन के मंदिर को शिव और पार्वती के देवताओं के रूप में जाना जाता है। यह १२ ज्योतिर्लिंग की गिनती मै तो आता ही है और ये सती के 52 भक्ति पीठों में से एक भी है। मल्लिकार्जुन निर्विवाद रूप से देश के महान शैव तीर्थों में से एक है।
मल्लिकार्जुन मंदिर रोजाना सुबह 4:30 बजे से रात के 10 बजे तक खुला रहता है। भक्तों के लिए दर्शन करने का समय सुबह 6:30 बजे से दोपहर 1 बजे तक रहता है। वहीं शाम को 6:30 बजे से 9 बजे तक यहां ज्योतिर्लिंग के दर्शन होते हैं।
श्रीशैलम के लिए कोई सीधी ट्रेन नहीं है इसलिए यहां पहुंचने के लिए पहले आपको मर्कापुर रेलवे स्टेशन जाना होगा। बस द्वारा भी श्री शैल पर्वत की यात्रा अच्छे से की जा सकती है। दोरनाला, कुरिचेदु श्रीशैलम के लिए बस से यात्रा करने के लिए कुछ निकट शहर हैं। अगर आप फ्लाइट से जा रहे हैं तो सबसे निकट एयरपोर्ट बेगमपेट है। श्रीशैलम के लिए उड़ानों का अगला विकल्प हैदराबाद का राजीव गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट है। इस एयरपोर्ट से श्रीशैलम की दूरी लगभग पांच घंटे की है।
श्रीसेलम में अभ्यारण, बांध व्यू पॉइंट देखने के हिसाब से अक्टूबर से फरवरी तक का समय बेस्ट होता है। इस दौरान यहां का तापमान 15 डिग्री और 32 डिग्री सेल्सियस रहता है। अगर आपकी यात्रा छोटी है तो आप जून से सितंबर के बीच भी यहां आ सकते हैं। ये ऑफ-सीजन होता है, बारिश ज्यादा होती है, लेकिन छोटे बजट की यात्राओं के लिए ये मौसम बेस्ट होता है। गर्मियों का मौसम पर्यटकों के लिए बिल्कुल भी अनुशंसित नहीं है क्योंकि पूरे मौसम में तापमान असहनीय रूप से गर्म रहता है।
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Mujhe darsan karna hi
Best post Thanks...