Kamal Mandir In Hindi ; भारत की राजधानी दिल्ली में घूमने के लिए यूं तो बहुत सी जगहें हैं, लेकिन दिल्ली के प्रमुख आकर्षणों में से एक है यहां का कमल मंदिर (लोटस टेंपल)। दिल्ली के नेहरू नगर में बहापुर गांव में स्थित कमल मंदिर एक बहाई उपासना मंदिर, जहां न कोई भगवान की मूर्ति है और न ही किसी तरह की भगवान की पूजा अराधना की जाती है, यहां लोग आते हैं तो बस मन की शांति पाने। इस मंदिर का आकार कमल के समान होने से इसे कमल मंदिर नाम दिया गया है। कई जगह इसे 20वीं शताब्दी के ताजमहल के रूप में भी पहचाना जाता है। कमल मंदिर ने कई वास्तुकार पुरस्कार जीते हैं और इसे कई अखबारों और लेखों में भी चित्रित किया गया है।
2001 की सीएनएन की रिपोर्ट के अनुसार कमल मंदिर दुनिया में सबसे ज्यादा इमारत के रूप में देखा जाने वाला पयर्टन स्थल है। दुनिया के 7 बहाई मंदिरों में से कमल मंदिर को अंतिम मंदिर माना जाता है। बाकी के छह घर ऑस्ट्रेलिया, सिडनी, पनामा सिटी, युगिया समोआ, युगांडा में कंपाला, जर्मनी में फ्रैंकफर्ट और यएसए में विलेमेट में हैं। रिकॉड्र्स बताते हैं कि 2001 तक कमल मंदिर 70 मिलियन पर्यटकों को आकर्षित किया है, जिसने पेरिस में एफिल टॉवर और आगरा में ताजमहल के रिकॉर्ड को तक तोड़ा है। आंकड़ों के अनुसार कमल मंदिर में हर साल 4 मिलियन से ज्यादा लोग यात्रा करते हैं, जिसमें 10 हजार पर्यटक रोज यहां आते हैं। कमल मंदिर से जुड़ी अहम जानकारियों के लिए आप हमारा आज का ये आर्टिकल पढ़ सकते हैं –
कमल मंदिर का निर्माण बहा उल्लाह ने कराया था, जो बहाई धर्म के संस्थापक थे और कनाडा में रहते थे।
दिल्ली में कमल मंदिर एक ईरानी वास्तुकार फरीबोरज सहाबा द्वारा बनाया गया था। उन्होंने इस शानदार कृति के लिए कई अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार भी जीते हैं, जिसमें ग्लोबल आर्ट अकेडमी, इंस्टीट्यूशन ऑफ स्ट्रक्चरल इंजीनियर्स के अलावा अन्य पुरस्कार भी शामिल हैं। इसका निर्माण बहा उल्लाह ने कराया था, जो बहाई धर्म के संस्थापक थे और कनाडा में रहते थे। यही वजह है कि कमल मंदिर को बहाई मंदिर भी कहा जाता है। कमल मंदिर को डिजाइन करने के लिए 1976 में उनसे संपर्क किया गया था, तब कमल मंदिर के निर्माण में कुल 1 करोड़ डॉलर की लागत आई थी। कमल मंदिर की भूमि को खरीदने के लिए आवश्यक धनराशि का बड़ा हिस्सा हैदराबाद, सिंध के अरदिशिर रूस्तमपुर द्वारा दान में दिया गया था। उस समय आवश्यक पौधों के प्रयोग के लिए ग्रीन हाउस बनाने के लिए मंदिर निर्माण निधि का एक हिस्सा बचाया गया था।
कमल मंदिर को “बहाई हाउस ऑफ वर्शिप” कहा जाता है, जिसका अर्थ है यह एक मंदिर है जो बहाई धर्म का पालन करता है। बहाई मानव जाति की आध्यात्मिक एकता के सिद्धांत पर 19वीं सदी में बहा उल्लाह द्वारा स्थापित एक फारसी धर्म है। मूल रूप से यह धर्म सभी धर्मों की एकता पर विश्वास करता है। यही वजह है कि इस मंदिर में सभी धर्म के लोग प्रवेश कर सकते हैं, लेकिन यहां पर किसी तरह का म्यूजिक बजाने और मूर्ति पूजा करने की अनुमति नहीं है।
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कमल मंदिर 1986 में पूरी तरह बनकर तैयार हुआ था। अगर आपको लगता है कि लोटस टेंपल सिडनी, ऑस्ट्रेलिया में प्रतिष्ठित ओपेरा हाउस के समान दिखता है, तो आप अकेले नहीं हैं! यह एक अत्यंत सामान्य अवलोकन है फिर भी, ओपेरा हाउस के विपरीत, मंदिर के बाहरी गोले कमल में 27 “पंखुड़ियाँ” हैं, जो कंक्रीट से बनी हैं और संगमरमर के टुकड़ों में ढकी हुई हैं। जैन धर्म, बौद्ध धर्म, हिंदू धर्म और इस्लाम सहित कई विश्व धर्मों के प्रतीकात्मक महत्व के कारण कमल डिजाइन को चुना गया था। 26 एकड़ में बने कमल मंदिर में मौजूद 9 दरवाजे 40 मीटर से ज्यादा लंबे है, जो सीधे जाकर मुख्य हॉल में खुलते हैं। इस हॉल में 1300 लोग एकसाथ बैठकर प्रार्थना कर सुकून और शांति का अनुभव करते हैं।
कमल मंदिर की सतह ग्रीस के पेंटेली पर्वत के सफेद मार्बल से बनी है। ये वही संगमरमर है, जिससे दुनिया के कई प्राचीन स्मारक और पूजा के अन्य बहाई घर बनाए गए हैं। मंदिर में कुल उपयोगी होने वाली 500 किलोवॉट ऊर्जा में से 120 किलोवॉट सौर पैनलों द्वारा निर्मित और सौर ऊर्जा द्वारा प्रदान किया जाता है। इससे मंदिर में प्रतिमाह 120,000 रूपए की बचत होती है। कमल मंदिर सौर ऊर्जा का उपयोग करने वाला दिल्ली का पहला मंदिर है।
कमल मंदिर की यात्रा के दौरान आप सूचना केंद्र भी देख सकेंगे। सूचना केंद्र को पयर्टकों के लिए 2003 में खोला गया था, जिसे विशेष रूप से मंदिर के वास्तुविदों द्वारा डिजाइन किया गया था। यहां ग्रंथों, तस्वीरों, फिल्मों, धर्मग्रंथ में बहाई आस्था का बहुत विवरण है। यहां एक ऑडियो विजुअल रूम और एक लाइब्रेरी भी है,जहां धार्मिक पुस्तकें पयर्टकों के लिए रखी गई हैं।
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कमल मंदिर पर्यटकों के लिए सुबह 9 बजे से शाम 7 बजे तक खुलता है। जबकि सर्दियों में सुबह 9:30 बजे खुलकर शाम को 5:30 बजे बंद भी हो जाता है। अगर आप कमल मंदिर जाएं तो मंगलवार से रविवार के बीच ही जाएं, क्योंकि सोमवार को कमल मंदिर बंद रहता है। मंदिर में हर दिन नियमित अंतराल पर 15 मिनट के प्रार्थना सत्र आयोजित होते हैं। यहां एंट्री के लिए कोई फीस नहीं है और न ही गाड़ी के पार्क करने पर कोई शुल्क लिया जाता है।
अक्टूबर से मार्च के बीच आप कमल मंदिर घूमने आ सकते हैं। गर्मियों के दिनों में कमल मंदिर देखना बहुत परेशान करने वाली स्थिति होती है। क्योंकि बाहर से अंदर मंदिर तक नंगे पैर जाना होता है इस स्थिति में फर्श पर चलते समय पैर बहुत जलते हैं। बेहतर है सर्दियों के मौसम में कमल मंदिर घूमने जाएं और इस बहाई मंदिर का आनंद उठाएं।
नई दिल्ली स्थित कमल मंदिर जाने के लिए पहले आपको नई दिल्ली या हजरत निजामुद्दीन स्टेशन जाना होगा। इसके बाद आप चाहें तो नेहरू प्लेस से कालकाजी स्टेशन पहुंच जाइए या फिर नई दिल्ली से आप मेट्रो लेकर कमल मंदिर पहुंच सकते हैं। इसके लिए आपको कालकाजी मंदिर की वायलेट लाईन मेट्रो लेनी होगी। मेट्रो से कालकाजी स्टेशन पहुंचने के बाद आप किसी भी सार्वजनिक साधन से पांच मिनट में कमल मंदिर पहुंच सकते हैं।
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इस आर्टिकल में आपने कमल मंदिर घूमने की जानकरी को जाना है आपको हमारा यह लेख केसा लगा हमे कमेंट्स में बताना ना भूलें।
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