Kanha National Park In Hindi, कान्हा नेशनल पार्क मध्यप्रदेश में स्थित यह मध्य भारत का सबसे बड़ा राष्ट्रीय उद्यान है, जो राष्टीय पशु बाघ और ऐसे कई जंगली जानवरों का आवास स्थान के लिए प्रसिद्ध है। कान्हा राष्ट्रीय उद्यान मध्यप्रदेश राज्य के मंडला जिले में स्थित ऐसा कस्बा है जो यहाँ आने वाले पर्यटकों को अपनी प्राक्रतिक सुंदरता से आनंदित कर देता है। कान्हा नेशनल पार्क की स्थापना वर्ष 1955 में हुई थी और तब से यहां पर कई लुप्तप्राय प्रजातियों को संरक्षित किया गया है। 1974 में कान्हा राष्ट्रीय उद्यान को प्रोजेक्ट टाइगर रिजर्व के तहत लिया गया था। वर्तमान में नेशनल पार्क का क्षेत्र 940 वर्ग किलोमीटर में फैला है जिसको दो अभयारण्यों हॉलन और बंजार में विभाजित किया गया है।
इस नेशनल पार्क को एशिया सर्वश्रेष्ठ पार्कों में से एक माना जाता है, जिसमे बड़े स्तनधारियों की 22 प्रजातियों के साथ 300 से अधिक कई प्रकार के वन्यजीवों और विविध पक्षी जीवों की प्रजातियाँ पाई जाती हैं। कान्हा राष्ट्रीय उद्यान की सबसे खास बात यह है कि ये रुडयार्ड किपलिंग की पुस्तक- द जंगल बुक के माध्यम से दुनिया भर में जाना जाता है।
कान्हा नेशनल पार्क कान्हा टाइगर रिजर्व के रूप में भी जाना जाता है जो मध्यपदेश राज्य के मंडला जिले में स्थित है, जो घास के मैदान और जंगल का एक विशाल हिस्सा है।
बामनी दादर कान्हा राष्ट्रीय उद्यान में सबसे ऊंचा पठार है जो कान्हा नेशनल पार्क के सनसेट पॉइंट के रूप में जाना जाता है। इस सनसेट पॉइंट से आपको यहाँ के मैदानी क्षेत्रों की विशालता और सुंदरता के आकर्षक दृश्य दिखाई देते। यहाँ आने वाले पर्यटक सूर्यास्त के समय कई शानदार दृश्यों का अनुभव करते हैं। बार्किंग हिरण और भारतीय बाइसन को देखने के लिए यह जगह शाम की सफारी में घूमने का अंतिम स्थान है।
कान्हा राष्ट्रीय उद्यान मूल रूप से 1880 में गोंडवानों (अर्थात गोंडों की भूमि) का एक हिस्सा था, जो मध्य भारत की दो मुख्य जनजातियों गोंडों और बैगाओं द्वारा बसाया गया था। आज भी इन दो प्रजातियों ने इस नेशनल पार्क के बाहरी इलाके में कब्जा किया हुआ है। बाद में इन दो प्रमुख अभयारण्यों को हॉलन और बंजार क्रमशः 250 वर्ग किमी और 300 वर्ग किमी के क्षेत्रों में विभाजित किया गया है। वर्ष 1862 में कान्हा को वन प्रबंधन नियमों द्वारा बाधित कर दिया गया था, इसके बाद 1879 में इस क्षेत्र को 1949 वर्ग किमी के हिस्से में बढाकर एक आरक्षित वन घोषित कर दिया गया।
कान्हा नेशनल पार्क का इतिहास तब से और भी ज्यादा दिलचस्प हो गया जब वर्ष 1933 में कान्हा को अपने अदम्य परिदृश्य और अद्भुत उच्चभूमि सुंदरता के लिए पूरी दुनिया से सराहना मिली। वर्ष 1991 और 2001 में कान्हा राष्ट्रीय उद्यान को भारत सरकार पर्यटन विभाग ने सबसे अनुकूल पर्यटन राष्ट्रीय उद्यान के रूप में सम्मानित किया गया।
भारत के प्रमुख बाघ आरक्षित क्षेत्र सरिस्का, रणथंभौर और जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क के अलावा कान्हा नेशनल पार्क वन्यजीव अभयारण्य है, जो मध्यप्रदेश में स्थित है। इस नेशनल पार्क के हरे-भरे परिदृश्य और खड्डों ने लेखक रुडयार्ड किपलिंग को अपनी सबसे महत्वपूर्ण रचना, द जंगल बुक बनाने के लिए प्रेरित किया था। ‘बाघ अभयारण्य’ कान्हा नेशनल पार्क का सबसे आकर्षक केंद्र है जिसमे रॉयल बंगाल टाइगर जो एक लुप्तप्राय प्रजाति का आवास स्थान है।
मध्यप्रदेश में स्थित कान्हा नेशनल पार्क अपनी प्रकृतिक जीवंतता के लिए प्रसिद्ध है। इस पार्क में फूलों के पौधों की 200 से अधिक प्रजाति और पेड़ों 70 से अधिक प्रजाति पाई जाती हैं। कान्हा नेशनल पार्क में कम भूमि वाले जंगलो में घास के मैदान, साल के जंगल और अन्य वन पाए जाते हैं। इसके अलावा कान्हा रिजर्व में पाए जाने वाले वनों में साल, लेंडिया, चार, धवा, बीजा, आंवला, साजा, तेंदू, पलास, महुआ और बांस के नाम भी शामिल हैं।
कान्हा नेशनल पार्क सैकड़ों एकड़ में फैले घास के मैदान, खड्डे और नाले के रूप में वन्यजीवों के लिए प्राकृतिक आवास प्रदान करता है। इस नेशनल पर को कान्हा टाइगर रिजर्व रूप में भी जाना-जाता है क्योंकि यहां पर रॉयल टाइगर सहित कई बाघ प्रजातियों का घर है जो यहाँ आने वाले पर्यटकों को काफी उत्साहित करता है। बाघ के अलावा कान्हा नेशनल पार्क में तेंदुओं, जंगली बिल्लियों, जंगली कुत्तों और गीदड़ों की संख्या काफी ज्यादा है। इस पार्क में सामान्य रूप से चित्तीदार स्तनधारी बाघ, चीतल, सांभर, बारहसिंगा, चौसिंघा, गौर, लंगूर, भौंकने वाले हिरण, जंगली सुअर, आलसी भालू, लकड़बग्घा, काला हिरन, रूड मोंगोज, बैजर, इंडियन हरे, इंडियन फॉक्स पाए जाते हैं। इसके अलावा रसेल्स वाइपर, अजगर, भारतीय कोबरा, भारतीय क्रेट और चूहा साँप सहित कई प्रजातियों के सरीसृपों जंगली कुत्ता भी इस नेशनल पार्क में पाया जाता है। कान्हा पार्क में कई लुप्तप्राय स्तनधारियों, सरीसृप और पक्षियों की दुर्लभ प्रजातियां पायी जाती हैं।
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कान्हा नेशनल पार्क में पक्षियों की लगभग 300 प्रजातियां पाई जाती हैं जो यहाँ आने वाले पर्यटकों और वालों और फोटोग्राफरों को अपनी तरफ बेहद आकर्षित करती है। मध्यप्रदेश के इस नेशनल पार्क में पाए जाने अद्वितीय पक्षियों की प्रजातियों में सारस, चैती, पिंटेल, तालाब बगुले, जैसे – पछतावा, मोर, जंगल फाउल, हूप, ड्रगोस, पार्टिडेज, बटेर, रिंग डूव्स शामिल हैं। पैराकीट पक्षी, ग्रीन कबूतर, रॉक कबूतर, कोयल, स्प्रफाउल, पेनहास, रोलर्स, मधुमक्खी-भक्षक, योद्धा, कठफोड़वा, फ़िंच, किंगफ़िशर, ओरीओल्स, उल्लू, और फ्लाईकैचर के नाम शामिल हैं।
अगर आप कान्हा नेशनल पार्क की घूमने के लिए जाने वाले हैं तो बता दें कि कान्हा में पाए जाने वाले जानवरों को देखने का जीप सफारी सबसे अच्छा तरीका है। कान्हा पार्क में जीप सफारी बहुत आसानी से मिल जाती हैं। इस पार्क में जीप सफारी के बिना आपकी यात्रा अधूरी रह सकती है क्योंकि कान्हा नेशनल पार्क बाघों को देखने के लिए भारत के सबसे खास अभ्यारणों में से एक है। अगर आप यहां जाने के बाद जीप सफारी का आनंद लेना चाहते हैं तो आपको इसके लिए प्रति जीप के हिसाब से पैसे देने होंगे। इसके अलावा आप जीप साँझा करके भी सफारी का मजा का ले सकते हैं।
सफारी के लिए आपको एक जीप बुक करने के लिए 1000-2000 रूपये देने होंगे। कान्हा नेशनल पार्क में सफारी दो स्लॉटों में बुक की जाती है। जिसमे से पहला स्लॉट सुबह (सुबह 6 बजे से 11 बजे) और दूसरा दोपहर (दोपहर 3 से शाम 6 बजे) का होता है। बता दें कि सुबह के स्लॉट में बाघों के दिखने की संभावना काफी ज्यादा होती है। सुबह की सफारी शाम की तुलना में थोड़ी महंगी होती है। कान्हा नेशनल पार्क में हाथी की सफारी भी बहुत मजेदार और रोमांचक होती है। यह सफारी सुबह के स्लॉट में उपलब्ध हैं जिसके लिए आपको प्रति व्यक्ति लगभग 300-600 रुपये देने होंगे।
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यदि आप कान्हा नेशनल पार्क जाने के बारे में विचार बना रहे हैं तो आपको बता दें कि यह पार्क सिर्फ मध्य अक्टूबर से जून के अंत तक खुला रहता है। अगर आप एक सुखद यात्रा का अनुभव करना चाहते हैं तो यहां जाने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च के बीच का होता है। अप्रैल से जून तक मध्य प्रदेश में गर्मी का मौसम होता है, इसलिए इन महीनों में यहां जाने से बचें।
कान्हा नेशनल पार्क में खाने के विकल्प सिर्फ होटल और रिसॉर्ट तक ही सीमित हैं। यहाँ पर आपको स्थानीय व्यंजनों के साथ दूसरे कई व्यंजन उपलब्ध होते हैं। अगर आप मध्यप्रदेश के स्थानीय व्यंजनों का स्वाद चखना चाहते हैं तो आप यहां दाल बाफला, बिरयानी, कोरमा, पोहा, जलेबी, लड्डू, लस्सी और गन्ने का रस जैसी चीज़ें अपने खाने में शामिल कर सकते हैं।
अगर आप कान्हा नेशनल पार्क की यात्रा करने जा रहे हैं और यहाँ रुकने की जगह के बारे में जानना चाहते हैं तो बता दें कि आपको कान्हा के पास मध्यम से लेकर बड़े बजट के लग्जरी होटल आसानी से मिल जायेंगे। इन होटल्स को आप ऑनलाइन अथवा ऑफलाइन दोनों माध्यम से बुक कर सकते हैं।
भारत के मध्य में स्थित होने के कारण कान्हा नेशनल पार्क वायु, रेल और सड़क के माध्यम से परिवहन का अच्छा नेटवर्क है।
देश के प्रमुख शहरों से कान्हा राष्ट्रीय उद्यान आप हवाई जहाज की मदद से बड़ी आसानी से पहुंच सकते हैं। कान्हा पार्क के निकटतम हवाई अड्डों में जबलपुर (160 कि.मी), रायपुर (250 कि.मी) और नागपुर (300 कि.मी) के नाम शामिल हैं।
कान्हा राष्ट्रीय उद्यान जाने के लिए गोंदिया और जबलपुर दो निकटम रेलवे स्टेशन हैं। गोंदिया रेलवे स्टेशन से कान्हा 145 किमी की दूरी पर स्थित है जिसमे सड़क आपको सड़क मध्यम से जाने में लगभग 3 घंटे का समय लगेगा। जबलपुर रेलवे स्टेशन से कान्हा की दूरी 160 किलोमीटर है जिसमें सड़क माध्यम से आपको 4 घंटे का समय लगेगा। इन शहरों से कान्हा के लिए आप बस या कैब से जा सकते हैं।
मध्य भारत में स्थित होने की वजह से कान्हा नेशनल पार्क में सड़क कनेक्टिविटी काफी अच्छी है। सड़क के माध्यम से यह मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र के प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है। कन्हा जाने के लिए आपको जुड़े हुए सभी शहरों से सार्वजानिक और निजी बस आसानी से मिल जायेंगी।
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