Famous Buddhist Temples In Hindi, बोद्ध धर्म भारत के प्राचीन धर्मों में से एक है, जिसकी स्थापना भगवान गौतमबुद्ध ने की थी। गौतमबुद्ध बौद्ध धर्म के विश्व धर्म के संस्थापक के रूप में पूजनीय है। जिन्होंने 45 वर्षों तक सत्य, दार्शनिक शिक्षा, वेद ध्यान और आध्यात्मिक शिक्षा को जौर देते हुए इन शिक्षायों का विस्तार किया था। गौतमबुद्ध अपने जीवन के अंतिम समय तक सत्य के मार्ग पर चले और लोगों को हमेशा सत्य पर चलने और सही मार्ग चुनने के लिए प्रेरित किया। उनकी मृत्यु के कुछ शताब्दियों बाद उन्हें बुद्ध के नाम से जाना जाने लगा।
आज देश भर में गौतमबुद्ध से जुड़े कई मठ, स्तूप, स्मारक और अन्य बोद्ध स्थल मौजूद है। जो बौद्ध धर्म की शिक्षायों, संस्कृति, वेदों, उनके अनमोल वचनों को अपने अन्दर समेटे हुए हैं। और यह बौद्ध मंदिर बोद्ध अनुयायीयों के साथ साथ पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र बने हुए है। अगर आप भी गौतमबोद्ध के अनमोल वचनों, रहस्यों, दार्शनिक और आध्यात्मिक शिक्षायों के बारे में जानने के लिए उत्सुक है तो आप हमारे इस लेख को पूरा अवश्य पढ़े जहाँ हम आपको भारत के सबसे प्रसिद्ध बौद्ध मंदिर और बोद्ध स्थलों के बारे में बताने जा रहे हैं जहाँ आज भी बोद्ध से जुड़े कई साक्ष्य मौजूद हैं-
बोधगया में स्थित महाबोधि मंदिर भारत के सबसे प्रसिद्ध बौद्ध मंदिरो में से एक है। बोधगया बिहार की राजधानी पटना के दक्षिण पूर्व में लगभग 100 किमी दूर स्थित है। बोधगया गंगा की सहायक नदी फाल्गु नदी(Phalgu River) के किनारे पश्चिम दिशा में स्थित बोध गया को पहले उरुवेला के नाम से जाना जाता था। यह 18 वीं शताब्दी तक सांबोदी, वज्रासन या महाबोधि के रूप में भी जाना जाता था। यह चार महत्वपूर्ण बौद्ध स्थलों में से एक है।
बौद्धों द्वारा बोधगया को दुनिया के सबसे पवित्र शहरों में से एक माना जाता है, क्योंकि इसी स्थल पर बोधि वृक्ष के नीचे गौतम बुद्ध ने आत्मज्ञान प्राप्त किया था। बोधगया में स्थित महाबोधि मंदिर को वर्ष 2002 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर का दर्जा दिया गया था। यहां बौद्ध धर्म को मानने वालों के अलावा अन्य धर्मों के लोग भी ध्यान (Meditation) करने और प्राचीन पर्यटन स्थलों को देखने के लिए आते हैं।
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वाराणसी से 13 किमी की दूरी पर स्थित सारनाथ भारत के प्रसिद्ध बौद्ध तीर्थस्थलों में से एक है। वाराणसी के आस-पास घूमने वाली जगहों में यह एक बेहद खास स्थान है। काशी के घाटों और गलियों में घूमने के बाद आप इस जगह आकर एकांत में शांति का अनुभव कर सकते हैं। माना जाता है कि बोधगया में ज्ञान प्राप्त करने बाद भगवान बुद्ध अपने पूर्व साथियों की तलाश में सारनाथ आये थे और उन्होंने यहां अपना पहला उपदेश दिया था।
सारनाथ कई बौद्ध स्तूपों, संग्रहालयों, प्राचीन स्थलों और सुंदर मंदिरों के साथ ऐतिहासिक चमत्कार का एक शहर है जो पर्यटकों के लिए बहुत ही आश्चर्य और विस्मय का कारण साबित होता है। सारनाथ की यात्रा में आप चौखंडी स्तूप, अशोक स्तंभ, धमेख स्तूप, पुरातत्व संग्रहालय, मूलगंध कुटी विहार, चीनी, थाई मंदिर और मठ घूम सकते हैं।
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हिमालय पर्वत की गोद में बसी खूबसूरत जगह लुंबिनी, गौतम बुद्ध का जन्म स्थल है। यह जगह भारत की सीमा के करीब पाल के रूपन्देही जिले में स्थित है जो बहुत शांत और बौद्ध धर्म का प्रमुख तीर्थ स्थल है। लुम्बिनी एक यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है जिसके स्तूप और मठ इसे बेहद खास बनाते हैं, जो लगभग 2000 साल पुराने माने जाते है। इस जगह को सम्राट अशोक के स्मारक स्तंभ के लिए भी जाना-जाता है।
नेपाल की यात्रा करने वाले लोग लुम्बिनी शास्त्रों का अध्ययन, धर्म के बारे में जानने के लिए इस सुंदर जगह का दौरा करते है। लुंबिनी में गौतम बुद्ध की मां माया देवी के नाम पर मंदिर भी है जिसको मायादेवी मंदिर कहा जाता है। यहां के प्रत्येक मठ की वास्तुकला, सुंदर बनावट और बौद्ध के चित्रों के साथ विशिष्ट है।
उत्तर प्रदेश के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में गोरखपुर के पास स्थित, कुशीनगर एक प्रमुख बौद्ध तीर्थ स्थल है। माना जाता है कि भगवान बुद्ध की मृत्यु कुशीनगर में हुई थी जिसके बाद सम्राट अशोक ने परिनिर्वाण स्थल को चिह्नित करने के लिए यहां एक स्तूप बनवाया था। स्तूप में बुद्ध की पुनर्जीवित निर्वाण प्रतिमा है, जिसमें दाईं ओर “मरने वाले बुद्ध” की लेटी हुई प्रतिमा को स्थापित किया गया है। कुशीनगर एक धार्मिक शहर जो बड़ी संख्यां में पर्यटकों और खासकर बोद्ध धर्म के अनुयायीयों को अपनी और आकर्षित करता है। कुशीनगर के अन्य प्रमुख स्थलों में आप चैत्य, रामभर स्तूप, मठ और कुछ लोकप्रिय छोटे-छोटे मंदिर देख सकते हैं।
हिंदुओं, जैन और बौद्धों के लिए समान रूप से महत्व रखने वाली एक पवित्र भूमि, श्रावस्ती एक सांस्कृतिक स्वर्ग है, जो उत्तर प्रदेश के दिल में स्थित है। श्रावस्ती के मठ थाईलैंड, तिब्बत और कोरिया के मठो के समान है जो हर हर आर्किटेक्ट के सपने को साकार करते हैं। और यह शहर जैन धर्म के संस्थापक तीर्थंकर का जन्मस्थान भी है। इस प्रकार, यह क्षेत्र तीन धर्मों के भक्तों के लिए बहुत महत्व रखता है, और सालाना भारी संख्या में पर्यटकों, बोद्ध अनुयायीयों और जैन धर्म के लोगो को आकर्षित करता हैं। श्रावस्ती शब्द “सब्तम अष्ठी” से आया है, जो शांति और समृद्धि के लिए खड़ा है।
कांगड़ा शहर से 18 किमी की दूरी पर कांगड़ा जिले में स्थित धर्मशाला भारत के सबसे लोकप्रिय बौद्ध स्थलों में एक है। धर्मशाला बौद्ध धर्म गुरु दलाई लामा का घर है, जो धर्मशाला में अपनी सरकार चलाते हैं। आपको बता दे, दलाई लामा अपने अनुयायियों के साथ वर्ष 1959 में भारत आए थे। और धर्मशाला शहर को छोटे ल्हासा में बदल दिया। धौलाधार की तलहटी पर बसे इस छोटे से शहर और बेहतर जगह क्या हो सकती हैं जिसमे समृद्ध और रीगल तिब्बती संस्कृति का अनुभव मिलता है। और धर्मशाला शहर को छोटे ल्हासा में बदल दिया। धर्मशाला, कई वर्षों से, ध्यान और शांति का केंद्र रहा है, जिसमें दुनिया भर के हजारों लोग और अनुयायीयों शांति की तलाश में यहां आते हैं।
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तवांग भारत के सबसे मशहुर बौद्ध स्थलों के साथ-साथ अरुणाचल प्रदेश का एक प्रमुख पर्यटन स्थल है जो अपनी खूबसूरती से पर्यटकों को बेहद आकर्षित करता है। लगभग 3048 मीटर की ऊंचाई पर स्थित तवांग कई महत्वपूर्ण और सुंदर मठों और दलाई लामा के जन्म स्थान के रूप में प्रसिद्ध है। तवांग मठ भारत का सबसे बड़ा और दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मठ है, जो आध्यात्मिकता और ज्ञान के समृद्ध, केंद्र के रूप में लोकप्रिय है। स्थानीय लोग द्वारा तवांग मठ को गोल्डन नामग्याल ल्हासे के रूप में भी जाना जाता है। मठ की लाइब्रेरी में कुछ सबसे पवित्र और महत्वपूर्ण शास्त्रों के विशाल संग्रह भी मौजूद है। और साथ ही यहाँ बौद्ध भिक्षुओं के लिए बौद्ध भारत सांस्कृतिक अध्ययन केंद्र भी स्थापित है। जोकि 300 से भी अधिक भिक्षुओं के लिए आश्रय स्थल के रूप में जाना जाता हैं।
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साँची स्तूप मध्य प्रदेश राज्य की राजधानी भोपाल से 46 कि.मी. की दूरी पर उत्तर-पूर्व में बेतबा नदी के किनारे पर स्थित है। साँची स्तूप भारत के सबसे प्रमुख बोद्ध स्थलों में से एक है। साँची स्तूप को मौर्य राजवंश के सम्राट अशोक की आज्ञानुसार तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में स्थापित किया गया था। जहाँ भगवान बुद्ध के अवशेषों को रखा गया है। और इस स्थान पर मौजूद मूर्तियों और स्मारकों में बौद्ध कला और वास्तु कला की अच्छी झलक देखी जा सकती है।
और आपकी जानकारी के लिए बता दे अपनी आकर्षित कला कृतियों के लिए विश्व विख्यात साँची स्तूप को यूनेस्को द्वारा 15 अक्टूबर 1982 को विश्व धरोहर स्थल में शामिल किया गया है। सांची नगर एक पहाड़ी के ऊपर बसा हुआ है और हरे-भरे बागानों से घिरा हुआ है। जिससे यहा आने वाले पर्यटकों को शांति और आनंद का एहसास होता है। जो हर साल कई हजारों पर्यटकों और बोद्ध धर्म के अनुयायीयों की मेजबानी करता है।
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गंगटोक से 23 किमी दूर एक पहाड़ी की चोटी पर बसा रुमटेक मठ, सिक्किम के सबसे बड़े और सबसे महत्वपूर्ण मठों में से एक है। और इस मठ को मूल रूप से धर्म चक्र केंद्र के रूप में जाना जाता है। आपको बता दे रूमटेक मठ बौद्धों के कारगीय संप्रदाय से संबंधित है, जो 12 वीं शताब्दी में तिब्बत में उत्पन्न हुए थे। यह मठ एक सुंदर तीर्थ शिक्षाओं के प्रसार मंदिर और भिक्षुओं के लिए एक मठ है, जो दुनिया भर में बौद्ध के उद्देश्य से स्थापित किया गया था।
रूमटेक मठ दुनिया के कुछ अनूठे धार्मिक धर्मग्रंथों के भंडारण के रूप में भी काम करता है। इसके साथ आप यहाँ मठ के अंदर के प्राथना हॉल देख सकतें हैं जो शानदार भित्ति चित्रों, और मूर्तियों से सजाया गया है। और साथ ही आप यहाँ से पहाड़ी के ठीक सामने स्थित पूरे गंगटोक शहर का लुभावनी दृश्य देख सकते हैं।
वैशाली भारत में ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक बौद्ध स्थान के रूप में में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। जो बौद्ध, जैन और हिन्दू धर्म से सम्बंधित अनुयाईयों के लिए एक तीर्थ स्थल के रूप में जाना जाता हैं। जहाँ गौतमबुद्ध ने अक्सर इस शहर का दौरा किया था, और भगवान बौद्ध अपने ज्ञानोदय के पांचवें वर्ष में यहां आए थे। और बौद्ध परिषद की दूसरी बैठक भी यहाँ आयोजित की गयी थी। वैशाली में कुछ कुछ अवशेष स्तूप और बौद्ध स्थल मौजूद है, इनके साथ यहाँ अशोक के कई खूबसूरत स्तंभ भी देखे जा सकते हैं। वैशाली भारत में घूमने के लिए सबसे प्रसिद्ध और लोकप्रिय बौद्ध स्थलों में से एक है। जहाँ आज भी बोद्ध से जुड़े कई साक्ष्य मौजूद है। माना जाता हैं कि वैशाली का नाम महाभारत काल से संबध रखता हैं जोकि राजा विशाल के नाम पर रखा गया था
माइंड्रोलिंग मठ 1965 में खोचन रिनपोछे द्वारा क्लेमेंट टाउन, देहरादून, उत्तराखंड में स्थापित किया गया था। जिसे बुद्ध मंदिर परिसर के रूप में भी जाना जाता है। आपको बता दे हिमालय के निर्मल तलहटी के बीच में स्थित, माइंड्रोलिंग मठ सबसे बड़े बौद्ध केंद्रों में से एक है। जो पूरे देश के साथ-साथ विदेशों से भी हजारों पर्यटकों और बौद्ध अनुयायीयों को आकर्षित करता है। जहाँ सैंकड़ों व्यक्ति यहां आध्यात्मिकता प्राप्त करते हैं। कई वर्गों के साथ एक वास्तुशिल्प उत्कृष्ट कृति होने के नाते माइंड्रोलिंग मठ एक अद्भुद दृश्य प्रस्तुत करता है। और यहाँ कई धार्मिक कमरे, तिब्बती कला रूप और भित्ति चित्र भी देखे जा सकते हैं। जबकि मठ में मुख्य रूप से भगवान बुद्ध की ऊंची मूर्ति स्थापित है। यदि आप देहरादून की यात्रा की योजना बना रहे हैं तो इस खूबसूरत जगह की यात्रा जरूर करें।
लेह के दक्षिण में 45 किमी की दूरी पर स्थित हेमिस मठ लद्दाख का एक प्रसिद्ध बौद्ध मठ है। हेमिस मठ का निर्माण लद्दाखी राजा सेंगगे नामग्याल द्वारा किया गया था। जिसे भारत के सात अजूबों में से एक माना जाता है और यह देश का एक विश्व धरोहर स्थल भी है। सिन्धु नदी के किनारे हरी-भरी पहाड़ियों और शानदार पहाड़ों के बीच स्थित हेमिस मठ इस क्षेत्र का सबसे बड़ा और सबसे लोकप्रिय मठ है जो इसे एक प्रमुख पर्यटक आकर्षण बनाता है। आपको बता दे हेमिस मठ भारत के सबसे धनी मठों में से एक है। इसमें सोने और चांदी से बने स्तूपों के साथ भगवान बुद्ध की एक शानदार तांबे की प्रतिमा स्थापित है। हेमिस मठ वास्तव में प्राचीन आध्यात्मिक संस्कृति और सुंदर प्राकृतिक परिवेश का एक उल्लेखनीय मिश्रण है। जो पर्यटकों और बौद्ध आध्यात्मिक अनुयायियों के घूमने के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।
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कूर्ग हिल स्टेशन से लगभग 34 किलोमीटर की दूरी पर स्थित स्वर्ण मंदिर या नामड्रोलिंग मठ सबसे प्रचलित बोद्ध स्थलों में से एक है। जो पर्यटकों और बोद्ध धर्म के प्रति विश्वास रखने वाले लोगो के बीच की आस्था का केंद्र बना हुआ हैं। नामड्रोलिंग मठ को तिब्बती बौद्ध धर्म सम्बन्धित स्कूलो का सबसे बड़ा शिक्षण केंद्र माना जाता है। जो तिब्बती वास्तुकला और कलाकृति सस्कृति का बेहतरीन उदाहरण प्रस्तुत करता हैं। बता दें कि गोल्डन टेम्पल 80 वर्ग फुट के क्षेत्र में फैला हुआ हैं और इसे 5000 से भी अधिक लोगो के निवास स्थल के रूप में जाना जाता हैं।
राजगीर जैन और बौद्ध धर्म से संबधित है। एक हरी घाटी में स्थित और चट्टानी पहाड़ियों से घिरा, राजगीर घने जंगलों, रहस्यमयी गुफाओं और झरनों के बीच प्राकृतिक शांति के साथ एक आध्यात्मिक शहर है। राजगीर में कई धार्मिक स्थल हैं जो बौद्ध धर्म या जैन धर्म को समर्पित हैं। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि भगवान बुद्ध और भगवान महावीर ने अपने जीवन का कुछ समय इस स्थान पर आध्यात्मिक और धार्मिक महत्व के उपदेश देते हुए बिताया था। राजगीर भारत में घूमने के लिए सबसे लोकप्रिय बौद्ध स्थलों में से एक है जहाँ की हवा बौद्ध धर्म और जैन धर्म के जुड़ाव के साथ आध्यात्मिकता और इतिहास के जीवंत संकेत देती है।
स्पीति घाटी को भारत के सबसे पुराने मठों का घर होने के लिए भी जाना जाता है, जैसे कि काई मठ, जो एक किले जैसी संरचना है और पारंपरिक चीनी वास्तुकला से मिलता-जुलता है। यहाँ पर मठों की यात्रा में आप तब्बू मठ, लाहलंग मठ और गंधोला मठ को भी शामिल कर सकते हैं। स्पीति के सुंदर परिदृश्यों के अलावा, यहाँ के मठ भी अद्वितीय और लुभावने हैं, जो आध्यात्मिक और सांस्कृतिक खजाने के साथ अलंकृत है और आकर्षक अनुभव के लिए अपार रंग प्रस्तुत करते हैं।
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तमिलनाडु के चेन्नई शहर में स्थित धम्म सेतु बोद्ध धर्म के सबसे बड़े ध्यान केन्द्रों में से एक माना जाता है। चेन्नई का यह विपश्यना ध्यान केंद्र हाल ही स्थापित विशाल क्षमता और सैकड़ों व्यक्तिगत ध्यान कोशिकाओं वाला केंद्र है। धम्म सेतु 10-दिवसीय पाठ्यक्रम हर महीने में दो बार आयोजित किए जाते हैं। जिस दौरान बड़ी संख्यां में लोग इस जगह एकत्रित होते है और ध्यान लगाते हैं। धम्म सेतु क्षेत्र के प्राकृतिक हरे-भरे सौंदर्य के साथ समुद्र का किनारा, एक आदर्श और शांतिपूर्ण अनुभव प्रदान करता है। और इसके अलावा धम्म सेतु में बच्चो के लिए पाठ्यक्रम भी उपलब्ध हैं।
सारिपुत्र स्तूप भारत के सबसे महत्वपूर्ण बौद्ध स्थलों में से एक है। आपको बता दे सारिपुत्र भगवान बोद्ध के प्रमुख दो शिष्यों में से एक थे। और इस स्तूप में भगवान बोद्ध के उन्ही दो प्रमुख शिष्यों में से एक सारिपुत्र की अस्थियाँ हैं। सारिपुत्र ने भी भगवान बुद्ध के पदचिन्हों पर चलते हुए जीवन त्याग करके मोक्ष की प्राप्ति की थी। और उन्ही की मौत के बाद सारिपुत्र स्तूप का निर्माण किया गया था। स्तूप एक पिरामिड आकार का है जो स्तंभों से घिरा हुआ है, और बौद्ध संरचनाओं के लिए विशिष्ट है। निर्माण की सात परतें इसके विशाल आकार की व्याख्या करती हैं। जो वास्तव में देखने लायक है।
8,000 फीट की भव्य ऊँचाई पर स्थित यिगा चॉलिंग या घूम मठ दार्जिलिंग का सबसे पुराना तिब्बती बौद्ध मठ है। लामा शेरब ग्यात्सो द्वारा 1850 में स्थापित, यह तीर्थ स्थान पीला टोपी संप्रदाय का हिस्सा है जिसे गेलुप्का के नाम से जाना जाता है जो ‘कमिंग बुद्धा’ या ‘मैत्रेयी बुद्ध’ की पूजा करते हैं। घूम मठ के केंद्रीय हॉल में 15 फुट ऊंची मैत्रेयी बुद्ध की प्रतिमा विराजित है, जो पूरी तरह से मिट्टी से बनी है। इस मूर्ति को मठ के दूसरे प्रमुख लामा डोमो गेशे रिनपोछे के कार्यकाल के दौरान स्थापित किया गया था।
इसके अलावा परिसर के भीतर कई दुर्लभ बौद्ध पांडुलिपियां भी देखी जा सकती हैं। मठ की दीवारों को विस्तृत रूप से चित्रण और तिब्बती बौद्ध धर्म की कला के साथ चित्रित किया गया है, जिसमें बोधिसत्व की विभिन्न छवियां हैं। इन सुंदर चित्रों को सममित तरीके से रखा गया है, जिससे मठ के आगंतुकों को बौद्ध दर्शन की मूल बातें समझने में आसानी हो।
अजंता गुफाएं भारत के सबसे महत्वपूर्ण बोद्ध स्थलों में से एक है। अजंता की गुफाएँ विभिन्न मूर्तियों और चित्रों के माध्यम से बौद्ध संस्कृति और उनकी कहानियों को दर्शाती हैं। जो यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थलों की सूची में शामिल हैं। अजंता की गुफाएँ बौद्ध युग के बौद्ध मठ या स्तूप हैं। यह वो जगह है जहाँ बौद्ध भिक्षु रहा करते थे इसके साथ वो यहां अध्ययन और प्रार्थना करते थे। अजंता की गुफाएं 3-कटक की बौद्ध गुफाओं का एक समूह है जो 2 शताब्दी ईसा पूर्व और 650 ईस्वी के बीच की अवधि की हैं। अजंता की गुफाओं को भारत के सबसे प्रतिष्ठित स्मारकों में से एक माना जाता है जो भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को दर्शाती हैं।
इन गुफाओं में प्राचीन चित्रकला और मूर्तिकला का बेहतरीन नूमना देखने को मिला था जिसे भारतीय चित्रकला कला और मूर्ति की कलाकारी का सबसे बेहतरीन उदाहरण माना जाता है। पहली बार अजंता की गुफाओं को 19 वीं शताब्दी में एक ब्रिटिश ऑफिसर द्वारा वर्ष 1819 में तब खोजा गया था।
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बोजनाकोंडा छह चट्टान-कट गुफाओं का एक छोटा समूह है जो 4 शताब्दी ईस्वी पूर्व की मानी जाती है, जब इस क्षेत्र में बौद्ध धर्म फल-फूल रहा था। बोजनाकोंडा गुफाओं में गौतम बुद्ध की सुंदर नक्काशीदार मूर्तियां मौजूद हैं जो पर्यटकों और बोद्ध धर्म के अनुयायीयों को इसके सौंदर्य और धार्मिक महत्व के लिए आकर्षित करती हैं। पास की गुफाओं में एक स्तूप भी हैं जहाँ बौद्ध भिक्षु ध्यान करते थे। और वर्तमान में यह क्षेत्र भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के रखरखाव में आता है।
चट्टानी पहाड़ियों से उकेरी गई कारला गुफाएं भारत की सबसे पुरानी बौद्ध गुफाओं में से एक हैं। यह कराला में पुणे-मुंबई राजमार्ग पर स्थित है,और अगर सूत्रों पर विश्वास किया जाए, तो ये सह्याद्री पहाड़ियों में मौजूद अन्य गुफाओं में से कुछ हैं। जो लगभग 2000 साल पहले की मानी जाती हैं। इस जगह पर अतीत की यात्रा को दर्शाते हुए एक सुंदर हॉल और विहार (मठ) का एक व्यापक संग्रह है, जिसमें कुछ मनोरंजक कहानियां हैं। इसके अलावा गुफाओं के प्रवेश द्वार पर बौद्ध काल के स्तंभों से बना मंदिर भी हाल ही में बनाया गया है। जबकि पर्यटकों को गुफायों तक पहुचने के लिए 150 सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं।
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