7 Wonders Of The India In Hindi : भारत देश दुनिया भर में अपनी भव्य ईमारतों, मंदिरों और स्मारकों के लिए जाना जाता हैं। आपने दुनिया के सात अजूबों के बारे में तो जरूर सुना होगा और जानते भी होंगे की दुनिया के सात अजूबें कौन-कौन से हैं। लेकिन क्या आप भारत के सात अजूबों के बारे में जानते है जिनकी मौजूदगी भारत को दुनिया में एक अलग ही स्थान दिलाती हैं।
आइये हम आपको अपने अर्टिकल के माध्यम से हम आपको भारत के 7 विश्वविख्यात और आश्चर्य चकित कर देने वाले स्थानों के बारे बताते हैं। यदि आपको कभी इन स्थानों पर जाने के मौका मिले तो इनकी खूबसूरती का लुत्फ जरूर उठायें।
भारत के सात अजूबों को कैसे पहचाना गया है – How Are Seven Wonders Of India Recognized In Hindi
भारत के सात अजूबों के नाम – Name Of Seven Wonders Of India In Hindi
दुनिया की सबसे खूबसूरत मानव द्वारा निर्मित और प्रकृतिक चीजों की लिस्ट तैयार करने के लिए दुनिया के सात अजूबों की सूची बनाई गयी हैं। लेकिन टाइम्स ऑफ इंडिया समाचार पत्र ने भारत के सबसे सुंदर और प्राकृतिक 20 मध्यकालीन तथा प्राचीन स्थलों में से भारत के सात आश्चर्य के चुनाव के लिए 2007 में एक मतदान (Simple Mobile Massage) करवाया। जिसमे उन्होंने भारत के सात अजूबों के बारे में जानकारी मांगी आपको बता दें की भारत के सात आश्चर्यों में से चार यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल हैं।
ताज महल भारत के उत्तर-प्रदेश राज्य में युमना नदी के किनारें पर बसे एक खूबसूरत शहर आगरा में स्थित है। आगरा शहर में स्थित यह एक सफ़ेद संगमरमर का मकबरा है। ताज महल के वास्तुकार उस्ताद अहमद लाहोरी थे। दुनिया के सात अजूबों में इस स्मारक का नाम भी शामिल है। ताज महल का निर्माण सन 1631 में मुग़ल शासक शाहजहाँ के द्वारा अपनी पत्नी मुमताज महल के लिए करवाया
गया था। मुमताज महल की मृत्यु अपने चौदहवे बच्चे के जन्म के दौरान हो गयी थी। सन 1983 में यूनेस्को द्वारा ताज महल को विश्व विरासत स्थल में शामिल किया गया था। ताज महल के चारों तरफ एक 300 वर्ग मीटर का एक उद्यान है, जिसे मुगल उद्यान के नाम से भी जाना जाता है। ताज महल के निर्माण के दौरान लगी सामग्री जैंसे कीमती रत्न, पत्थर और अन्य वस्तुए आदि को एकत्रित करने में लगभग 1000 हाथियों की सहायता ली गयी थी।
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स्वर्ण मंदिर भारत का सबसे आध्यात्मिक स्थलों में से एक हैं। श्री हरमिंदर साहिब के नाम से फेमस यह मंदिर सिख धर्म का सबसे पवित्र मंदिर माना जाता है। जो धार्मिक उत्साह और पवित्रता के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं। यह एक ऐसा स्थान हैं जिसे केवल महसूस किया जा सकता है लेकिन शब्दों में इसका वर्णन नही किया जा सकता है। स्वर्ण मंदिर का दौरा दुनिया भर के लोगो द्वारा किया जाता हैं और यहां आने वालो को पर्यटकों के मन को धार्मिक और आध्यात्मिक शांति की पूर्ती होती हैं। स्वर्ण मंदिर दूर से ही बहुत खूबसूरत और चमकता हुआ दिखाई देता हैं।
स्वर्ण मंदिर पंजाब के खूबसूरत शहर अमृतसर में स्थित एक खूबसूरत और भव्य मंदिर हैं। इस मंदिर के निकट ही अमृत सरोवर है, जिसके पानी में मंदिर की चमकदार रौशनी केंद्रीय मंदिर को घेरती हुई प्रतीत होती है। अमृतसर इस खूबसूरत अमृत सरोवर से अपना नाम पुकारता है। इस सरोवर की खुदाई 1577 में सिक्खों के चौथे गुरु, गुरु राम दास जी ने करवायी थी। यहां पर एक आध्यात्मिक फोकस टैंक भी हैं। स्वर्ण मंदिर एक संगमरमर के मार्ग के माध्यम से जुड़ा हुआ है, जिसे गुरु के पुल के नाम से जाना जाता हैं। माना जाता हैं कि यह मार्ग मृत्यु के बाद आत्मा की यात्रा के प्रतीक के रूप में है। स्वर्ण मंदिर में अप्रैल के महीने में आमतौर पर 13 अप्रैल के दिन मनाया जाने वाला त्यौहार सबसे खास माना जाता हैं।
इस दिन यह त्यौहार खालसा की स्थापना के लिए मनाया जाता हैं। इसके अलावा गुरु नानक जी का जन्म दिन भी यहां बड़े हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है, गुरु तेग बहादुर का शहादत दिवस, गुरु राम दास जी की जयंती इसके अलावा हरमंदिर में दिवाली के दिन दीपो के साथ-साथ शानदार आतिशबाजी देखने को मिलती है।
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भगवान सूर्य को समर्पित कोणार्क मंदिर भारत के ओडिशा राज्य में जगन्नाथ पुरी से 35 किलोमीटर की दूरी पर कोर्णाक नामक स्थान पर हैं। इस मंदिर के निर्माण का श्रेय 1250 इस्वी पूर्व गंगा राजवंश के राजा नरसिंह देव प्रथम को दिया जाता हैं। यह मंदिर हिन्दू धर्म से सम्बंधित भगवान सूर्य का मंदिर हैं। इस मंदिर में भगवान सूर्य देव का 100 फिट ऊँचा रथ हैं, जिसमें सात घोंड़े भी जुते हुए हैं इन घोड़ों के नाम संस्कृत अभियोग में बृहती, गायत्री, उषनी, जगती, त्रिसबत, अनुष्टुभ, और पांति रखे गए हैं। सन 1984 में इस मंदिर को यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल में शामिल किया जा चुका हैं।
इस मंदिर का अधिकांश भाग अब खंडर के रूप में बदल गया हैं इसके विनाश की वजह अभी तक सामने नही आयी हैं। लेकिन जो संरचनाये बच गयी हैं वह उनकी कला कृतियों, विषयों और प्रतिमा विज्ञान (Iconography) के लिए प्रसिद्ध हैं। इसमें मुमुक्षु दृश्य और कामुक काम शामिल हैं। यह कलिंग वास्तुकला की ओडिशा शैली का एक अधभुत चित्रण है। इस मंदिर को 1676 के दौरान “ब्लैक पगौडा” के नाम से भी जाना जाता था क्योंकि इसका महान टॉवर काला दिखाई देता था। इसी तरह जगन्नाथ पुरी मंदिर को “सफ़ेद पगौडा” के नाम से जाना जाता था। कोणार्क मंदिर हिन्दू धर्म के श्रद्धालुओं के लिए एक प्रमुख तीर्थ स्थल हैं और यहां फरवरी माह में लगने वाला चंद्रभान मैला लोगो में अति-लोकप्रिय हैं।
एक प्राचीन कथा के अनुसार द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण और जाम्बती के पुत्र साम्ब को श्राप के कारण कोढ़ रोग हो गया था। इसी रोग से छुटकारा पाने के लिए साम्ब ने मित्रवन में चंद्रभान नदी के किनारे भगवान सूर्य देव की तपस्या की जिसके बाद उनके कष्ट का निवारण हुआ। इसके बाद जब उन्होंने स्नान करने के लिए नदी में डुबकी लगाई तो उनके हाथ में सूर्य देव के अंश की एक छोटी सी प्रतिमा आ गयी जो विश्वकर्मा जी के द्वारा निर्मित की गयी थी। तो साम्ब ने उस मूर्ती को उसी स्थान पर स्थापति कर दिया। इसके बाद यह स्थल एक पवित्र स्थान के रूप में जाना जाने लगा।
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खजुराहो भारत के मध्य प्रदेश राज्य के छतरपुर जिले का एक छोटा शहर है। खजुराहो भारत के सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थलों में शुमार हैं। यह स्थल यूनेस्को की विश्व धरोहर में भी अपना स्थान बना चुका हैं। खजुराहो का यह मंदिर मध्ययुगीन काल के दौरान की भारतीय वास्तुकला और संस्कृति का एक अनूठा उदाहरण है। दीवारों पर की गयी खूबसूरत नक्काशी कामुकता का सौन्दर्य चित्रण प्रस्तुत करती है। 950 से 1050 के दरम्यान की गयी यह नक्काशी सरासर भारतीय आदर्शो के साथ एक पारंपरिक टकराव और विरोधाभास को प्रकट करती हैं और हर किसी को मन्त्रमुग्ध करती हैं।
खजुराहो में प्राचीन भारत के गौरवशाली इतिहास के अवशेष पाए गए हैं खास तौर पर चंदेला राजवंश द्वारा निर्मित की गयी हिंदू और जैन मंदिरों की प्रसिद्ध श्रृंखला इन्ही में से एक हैं। जिसमें उदार आतिथ्य और धार्मिक सहिष्णुता के बारे में बात की गई है। खजुराहों मंदिर में भारी संख्या में पर्यटकों के आने का विशिष्ट कारण यहां पर मौजूद कामुक मूर्तिकला हैं, जो भावुक प्रेमप्रंसग की कुछ विशेष मुद्राओं को प्रदर्शित करती है जैसा कि वात्स्यायन महाकाव्य के कामसूत्र में प्रदर्शित किया गया है। खजुराहों को लुटेरों ने नष्ट करने के बहुत कोशिश की लेकिन फिर भी वह इसे नष्ट करने में नाकाम रहे। हालाकि वह मंदिरों और गुफाओं की संख्या को कम करने में कामयाब रहे हैं।
माना जाता हैं कि चंदेला शासकों ने मुख्य रूप से सबसे अच्छे ढंग से प्रेम और वासना को परिभाषित करने के लिए इन मंदिरों का निर्माण करवाया था। यहां पर स्थित कुछ मूर्तियां आपको उकसाने का काम करती हैं तो कुछ विस्मयकारी बना देगी जबकि कुछ मूर्तियां आपको निराशा के दौर की कहानी वयान करेगी और कुछ आपको उलझन में डालते हुए आश्चर्यचकित कर सकती हैं।
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नालंदा विश्वविद्यालय भारत के बिहार राज्य की राजधानी पटना के करीब सरीफ शहर से 95 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं एक विश्वविद्यालय हैं। यह विश्वविद्यालय दुनिया का पहला ऐसा विश्वविद्यालय हैं जिसकी स्थापना 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व में की गयी थी। भगवान बुद्ध द्वारा अपने जीवनकाल के दौरान यहां का दौरा किया गया था।
नालंदा विश्वविद्यालय में कुल 2000 शक्षकों को 10,000 छात्रों को शिक्षित करने के लिए रखा गया था। इस विश्वविद्यालय का दौरा चीन के प्रथम यात्री हवेन त्सांग ने भी किया हैं और उन्होंने अपने जीवन के कुछ वर्ष यहां विध्यार्थी और शिक्षक के रूप बिताए हैं। प्राचीन काल के दौरान की सबसे लोकप्रिय, महाबिहार, अकादमिक उत्कृष्टता और बौद्ध सीट की एक जीती जागती मिसाल हैं।
नालंदा विश्वविद्याल होने के साथ-साथ एक तीर्थस्थल भी हैं। जो सभी आध्यात्मिकता की श्रेणी में परिपक्वत हैं और आज भी अपनी समृद्धशाली ख्याति के लिए विश्व विख्यात हैं। यह संस्कृति, आध्यात्मिकता, वास्तुकला, इतिहास और पर्यटन को जीवंत परिवेश प्रदान करता हैं। यह विश्व विद्यालय दुनिया के सबसे पुराने विद्यालयों में से एक हैं, जो अपने समय के दौरान की वास्तुशिल्पी कृति थी। इस परिसर में एक मनमोहक सुंदर चित्र प्रदर्शित किया गया है। नालंदा विश्व विद्यालय के पूर्व में बिहार (मठ) हैं जबकि पश्चिम में चिया (मंदिर) हैं।
इन सब के बावजूद परिसर में एक छोटा मगर आकर्षक संग्रहालय है। जिसमें उस समय के मूल बौद्ध स्तूप, हिंदू और बौद्ध कांस्य, जले हुए चावल का एक नमूना, टेराकोटा जार, सिक्के आदि का संग्रह है। बौद्ध धर्म के अलावा भी यहां जैन धर्म, हिदू धर्म, और सूफीवाद के लिए भी महत्वपूर्ण केंद्र माना जाता हैं। नालंदा पहले एक छोटा गांव था जो एक समय मगध राज्य की राजधानी के रूप में जाना जाता था। ऐसा माना जाता हैं कि जैन धर्म के 24वें तीर्थकर महावीर जैन ने नालंदा में अपने जीवन की 14 वर्षा ऋतुओं के समय को आते-जाते देखा हैं।
गौतम बुद्ध ने भी इस स्थान पर व्याख्यान दिए हैं 17वीं शताब्दी के दौरान मोर्य वंश के महान सम्राट अशोक और बौद्ध धर्म के सम्राट ने अपनी श्रद्धा और आस्था के लिए यहां एक मंदिर का निर्माण करवाया था। शिक्षा प्रदान करने के लिए नागार्जुन और आर्यदेव को संस्था में प्रमुख स्थान दिया गया था। लेकिन राजा कुमारगुप्त के काल के दौरान की मिली मोहरों के अनुसार नालंदा के इतिहास का उल्लेख गुप्त काल के दौरान शुरू हुआ माना जाता हैं। कुमार गुप्त के उत्तराधिकारियों ने कई मंदिरों और मठों का निर्माण करके अपने साम्राज्य का विस्तार किया। गुप्त काल के बाद नालंदा का यह खूबसूरत परिसर सम्राट हर्ष के शासन में फूलता फलता हुआ नजर आया। मार्च 1987 में बिहार सरकार के द्वारा प्रख्यापित अध्यादेश के माध्यम से विश्वविद्यालय की स्थापना की गई। बिहार विधानमंडल द्वारा बाद में नालंदा ओपन यूनिवर्सिटी को अधिनियम 1995 में अध्यादेश के स्थान पर पारित किया गया था। इसके बाद विश्वविद्यालय स्वचालित रूप से नए अधिनियमों के अधिकार क्षेत्र में आ गया।
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भारत के कर्नाटक राज्य में श्रवणबेलगोला नामक एक गांव हैं। जो बेंगलुरु से लगभग 158 किलोमीटर की दूरी पर और मैसूर से 83 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं। कर्नाटक का यह शहर मंदिरों और तालाबों के लिए भी प्रसिद्ध हैं। श्रवणबेलगोला यह स्थान दक्षिण भारत का प्रसिद्ध जैन तीर्थ स्थल है। यह स्थान कर्नाटक राज्य की मूल्यवान प्रख्यात धरोहरों में से एक है। अपने गोमतेश्वर मंदिर के लिए श्रवणबेलगोला स्थान दुनिया भर में जाना जाता है। इस मंदिर का एक अन्य नाम बाहुबली मंदिर भी है।
श्रवणबेलगोला में दो पहाड़ियां विधमान हैं, एक विंध्यगिरि और दूसरी चंद्रगिरि। बाहुबली मूर्ती जिसकी ऊंचाई लगभग 58 फुट हैं। यह अखंड प्रतिमा विन्ध्यगिरी पहाड़ी पर ही सुशोभित हैं। इस प्रतिमा के आधार पर एक शिलालेख मौजूद है, जो उस राजा की प्रशंसा में बनाया गया हैं जिसने इस प्रयास को सफल बनाने में अहम योगदान दिया हैं। चवुंडराय जिन्होंने अपनी माँ के लिए प्रतिमा का निर्माण करवाया था। श्रवणबेलगोला में गोमतेश्वर की मूर्ति की ऊंचाई इतनी अधिक हैं कि यह आपको 30 किलोमीटर की दूरी से नजर आने लगती हैं।
जैन ग्रंथो के अनुसार गोमतेश्वर या बाहुबली जोकि आदिनाथ या ऋषभदेव पहले तीर्थकर के दूसरे पुत्र थे। आदिनाथ के 100 पुत्र थे लेकिन जब ऋषभ देव ने अपना राजपाट छोड़ दिया और भरत के हाथों में राज्य की भागदौड थमा दी और भरत के 98 भाइयों ने उनकी दास्तान स्वीकार कर ली लेकिन जब भरत ने अपने दूत को बाहुबली के पास भेजा तो बाहुबली ने भरत को युद्ध की चुनौती दें दी। लेकिन इस युद्ध में सैनिकों के अकारण ही प्राण गवाने की बात से परेशान बुद्धिजीवीयों ने इसका एक उपाय सोचा और दो सेना नहीं बल्कि दोनों भाइयों के बीच हुए युद्ध से इसका अंतिम फैसला किया जाएगा।
दोनों भाइयों के मध्य तीन चरणों में युद्ध हुआ। यह चरण थे- मल-युद्ध, द्रष्टि-युद्ध और जल-युद्ध इसमें बाहुबली ने युद्ध जीत लिया। लेकिन भरत को राज्य सोप कर तपस्या करने चले गए जहाँ उन्हें “केवल ज्ञान” की प्राप्ति हुयी बाद में भरत ने उन्हें प्रणाम किया। जिससे बाहुबली के अंदर सुलग रही अपमान ज्वाला शांत हुयी। कर्नाटक के कन्नड़ लोग इस प्रतिमा को गोमतेश्वर की प्रतिमा के रूप में जानते हैं जबकि जैनियों द्वारा इस प्रतिमा को बाहुबली के नाम से जाना जाता हैं।
कर्नाटक राज्य में बाहुबली की पांच विशाल मूर्तियां बनी हुयी जिनकी ऊंचाई लगभग-
श्रवणबेलगोला 58 फुट, करकला 42 फुट, धर्मस्थल 39 फुट,वनुर 35 फुट और गोमटगिरी में 20 फुट ऊँची प्रतिमा बनी हुयी हैं
हम्पी भारत के कर्नाटक राज्य में पहाड़ियों और घाटियों पर स्थित एक खूबसूरत स्थान हैं। यह स्थान पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता हैं। यहा पर बनी बड़ी-बड़ी प्रतिमाएं इसकी गौरवशाली साम्राज्य की कहानी वयान करती हैं। विजयनगर साम्राज्य में 500 प्राचीन स्मारकों, खूबसूरत मंदिरों, स्ट्रीट मार्केट, खजाने की इमारत और मनोरम अवशेषों से घिरा हुआ स्थान हैं। हम्पी एक खुला हुआ संग्रहालय है।
हम्पी 1500 ईस्वी के दरम्यान विजय नगर सम्राज्य की राजधानी के रूप में जानी जाती थी और यह दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा शहर भी था। हम्पी के आस-पास के इलाके रहस्यमयी खंडरों से भरे पड़ें हुए हैं। यह शहर बहुत सारे बोल्डरों से भरा हुआ हैं। यदि आप शहर का द्रश्य देखना चाहते हैं तो आप इनके ऊपर जाकर देख सकते हैं। हम्पी स्थल तुंगभद्रा नदी के तट पर स्थित है और कर्नाटक राज्य की भव्यता में चार चाँद लगा रहा हैं। अपने सुंदर नक्काशीदार, विशाल मंदिरों के लिए प्रसिद्ध, खास कर के विरुपाक्ष मंदिर जोकि साम्राज्य के संरक्षक देवता को समर्पित किया गया है। हम्पी को सन 1986 में एक यूनेस्को विश्व धरोहर स्थलों में शामिल जा चुका हैं और इसके खोये हुए गौरवशाली वैभव को दौवारा वहाल करने की कोशिश की जा रही हैं। संगीत, थिएट्रिक्स और नृत्य हम्पी की संस्कृति के सभी एकीकृत भाग माने जाते हैं।
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