Bhoramdeo Temple in Hindi : भोरमदेव मंदिर छत्तीसगढ़ के कबीरधाम जिले के चौरागाँव में स्थित एक प्राचीन मंदिर है, जिसे लगभग 1000 बर्ष पुराना माना जाता है। भोरमदेव मंदिर भगवान शिव को समर्पित है, जिसका निर्माण 1089 ई. में फनीनागवंशी शासक गोपाल देव द्वारा करबाया गया था। इस मंदिर की सरंचना कोणार्क मंदिर और खुजराहो से मिलती जुलती है, जिस कारण भोरमदेव मंदिर को लोकप्रिय से छत्तीसगढ़ का खुजराहो भी कहा जाता है। यह मंदिर भगवान शिव और भगवान गणेश की छवियों के अलावा, भगवान विष्णु के दस अवतारों की छवियों को भी चित्रित करता है। भोरमदेव मंदिर नागर शैली और जटिल नक्काशीदार चित्र कला का एक शानदार नमूना है जो श्र्धालुयों के साथ साथ देश भर से इतिहास और कला प्रेमियों को भी आकर्षित करता है।
यदि आप भी छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध मंदिर में से एक भोरमदेव मंदिर की यात्रा पर जाने वाले है या फिर इस प्राचीन मंदिर के बारे में जानना चाहते है तो आपको हमारे इस आर्टिकल को पूरा जरूर पढना चाहिये –
ऐतिहासिक और पुरातात्विक विभाग द्वारा की गयी खोज और यहाँ मिले शिलालेखो के अनुसार भोरमदेव मंदिर का इतिहास 10 वीं से 12 वीं शताब्दी के बीच कलचुरी काल का माना जाता है। भोरमदेव मंदिर के निर्माण का श्रेय फैनिनगवंश वंश के लक्ष्मण देव राय और गोपाल देव को दिया गया है। मंदिर परिसर को अक्सर “पत्थर में बिखरी कविता” के रूप में जाना जाता है। इस क्षेत्र के गोंड आदिवासी भगवान शिव की पूजा करते थे, जिन्हें वे भोरमदेव कहते थे इसीलिए इस मंदिर को भोरमदेव मंदिर के नाम से जाना जाने लगा। इतिहासकारों की माने तो यह मंदिर पूरे खजुराहो समूह से भी पुराना है।
भोरमदेव मंदिर के आर्किटेक्चर के बारे में बात करें तो इस मंदिर की सरंचना कोणार्क मंदिर और खुजराहो से मिलती जुलती है। जी हाँ इस मंदिर में भी कोणार्क मंदिर और खुजराहो के समान स्थापत्य शैली में कामुक मूर्तियों के साथ कुछ वास्तुशिल्प विशेषताओं को जोड़ा गया है। गर्भगृह मंदिर का प्राथमिक परिक्षेत्र है जहाँ शिव लिंग के रूप में पीठासीन देवता शिव की पूजा की जाती है।
मंदिर पूर्व की ओर एक प्रवेश द्वार के साथ बनाया गया है जो एक ही दिशा का सामना करता है। इसके अतिरिक्त, दक्षिण और उत्तर दिशाओं के लिए दो और दरवाजे खुलते हैं। हालांकि, पश्चिमी दिशा की ओर कोई दरवाजा नहीं है। मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार में गंगा और यमुना की प्रतिमाएँ दिखती हैं। मंदिर में भगवान शिव और भगवान गणेश के साथ साथ भगवान विष्णु के दस अवतारों की छवियों को भी दीवारों में चित्रित देखा जा सकता है।
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मंदिर परिसर के भीतर एक ओपन-एयर संग्रहालय भी स्थित है। यह संग्रहालय पुरातात्विक कलाकृतियों का एक विशाल संग्रह है जिसमे 2 या 3 वीं शताब्दी के कुछ अवशेषो को देखा जा सकता है। सती स्तंभ ’भी यहाँ प्रदर्शन पर हैं। उनके पास एक अद्वितीय वास्तुशिल्प रूपांकन है, जो जोड़ों को शोकपूर्ण मुद्राओं में दिखाते हैं। संग्रहालय परिसर में संग्रहित चित्रों जैसे लिंग और नंदी की झालरें भी हैं।
भोरमदेव मंदिर परिसर में हालही में हनुमान जी के लिए एक मंदिर का निर्माण भी करबाया गया है। यह मंदिर प्रांगण के एक तरफ स्थित है।
मड़वा महल मुख्य मंदिर परिसर के 1 किमी के आसपास में स्थित है। इसका निर्माण नागवंशी राजा, रामचंद्र देव और राज कुमारी अंबिका देवी की शादी के उपलक्ष्य में किया गया था। दिलचस्प बात यह है कि इस मंदिर की संरचना मैरिज हॉल या पंडाल के समान है, इसलिए इसे इसका नाम मड़वा मिला। इस मंदिर के प्रवेश द्वार पर पारंपरिक वास्तुशिल्प अलंकरण हैं।
2 या 3 वीं शताब्दी में सूखे या जले हुए मिट्टी की ईंटों से इस्तलीक मंदिर भोरमदेव मंदिर के पास स्थित एक और प्राचीन मंदिर है। इस मंदिर की संरचना को मुख्य भोरमदेव मंदिर से सटे हुए पाया जा सकता है। यह वर्तमान में जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है, जिसमें केवल मण्डप है और जिसमें मण्डप और प्रवेश द्वार नहीं है। उमा महेश्वर की छवियों के साथ यहां एक मूर्ति शिवलिंग की पूजा की जाती है।
भोरमदेव मंदिर की यात्रा पर जाने वाले पर्यटकों और श्र्धालुयों को बता दे भोरमदेव मंदिर श्र्धालुयों के घूमने के लिए प्रतिदिन सुबह 5.00 बजे से 12 बजे तक और शाम 5.00 बजे से रात 9.00 बजे तक खुलता है।
बता दे भोरमदेव मंदिर पर्यटकों के घूमने और देवता के दर्शन के लिए बिलकुल निशुल्क है।
भोरमदेव मंदिर जाने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से फरवरी तक सर्दियों के महीनों के दौरान है। इन महीने में छत्तीसगढ़ के मौसम की स्थिति काफी सुखद रहती है जो भोरमदेव मंदिर की यात्रा के लिए सर्वश्रेष्ठ होती है।
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यदि आप भोरमदेव मंदिर की यात्रा पर जा रहे है तो अपनी यात्रा को और अधिक स्पेशल बनाने के लिए यहाँ के फेमस खाने को एन्जॉय कर सकते है। छत्तीसगढ़ राज्य अपने व्यंजनों में समृद्धि और रंग के लिए जाना जाता है जो आपके इस राज्य के हर हिस्से में देखने को मिलेगी। यहाँ के भोजन में कुरकुरे जलेबी, एक जिनी राखिया बदी और एक बहुत ही पारंपरिक पेठा शामिल है। मक्का, गेहूं और ज्वार यहां की प्राथमिक और मुख्य खाद्य सामग्री है।
जो भी पर्यटक भोरमदेव मंदिर की यात्रा में रुकने के लिए होटल्स सर्च कर रहे है हम उन्हें बता दे भोरमदेव मंदिर के आसपास रुकने के लिए काफी सीमित विकल्प मौजूद है। भोरमदेव मंदिर का सबसे नजदीकी प्रमुख शहर कबीरधाम जिला है जहाँ आपको रुकने के लिए कई होटल्स मिल जायेगी।
भोरमदेव मंदिर एक मानव निर्मित झील के किनारे पर स्थित है, जो मैकाल पर्वतमाला की पहाड़ियों के तल पर स्थित है। यह कबीरधाम जिले के तहसील शहर, करवाड़ा के उत्तर-पश्चिम दिशा में लगभग 18 किमी की दूरी पर स्थित है। रायपुर और जबलपुर जैसे प्रमुख शहरों से करवाड़ा के लिए नियमित बसें। और करवाड़ा से, कई टैक्सी सेवाएं उपलब्ध हैं जो आपको भोरमदेव मंदिर तक ले जा सकती हैं।
यदि आपने भोरमदेव मंदिर जाने के लिए फ्लाइट से ट्रेवल करना चाहते है तो हम आपको बता दें कि भोरमदेव मंदिर का सबसे नजदीकी हवाई अड्डा रायपुर है, जो आप भोरमदेव मंदिर से लगभग 135 कि.मी. की दूरी पर हैं। एयर पोर्ट पर उतरने के बाद टेक्सी या यहां चलने वाले स्थानीय साधनों के माध्यम से भोरमदेव मंदिर पहुंच सकते है।
जो भी पर्यटक ट्रेन से ट्रेवल भोरमदेव मंदिर आना चाहते है हम उन्हें बता दे भोरमदेव मंदिर का सबसे प्रमुख रेलवे स्टेशन भी राज्य की राजधानी रायपुर में स्थित है। रायपुर के लिए पर्यटक किसी भी प्रमुख शहर से ट्रेन ले सकते है और रेलवे स्टेशन पर उतरने के बाद बस या एक टेक्सी बुक करके अपनी गंतव्य तक पहुच सकते है।
भोरमदेव मंदिर सड़क मार्ग से माध्यम से रायपुर, बिलासपुर, दुर्ग शहरों जुदा है जिस वजह से बजह से सड़क मार्ग या बस से यात्रा करके पर्यटक बड़े आसानी से भोरमदेव मंदिर आ सकते है।
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इस आर्टिकल में आपने भोरमदेव मंदिर की यात्रा से जुड़ी जानकारी को जाना है आपको हमारा यह लेख केसा लगा हमे कमेंट्स में बताना ना भूलें।
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