Vindhyachal Temple In Hindi, विंध्याचल मंदिर देवी विंध्यवासनी के लिए प्रसिद्ध हैं जोकि हिंदू धर्म की नव देवियों में से एक हैं और 51 शक्तिपीठो में शामिल हैं। विंध्यवासनी मंदिर भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में मिर्जापुर और वाराणसी के करीब विंध्याचल शहर में स्थित हैं। विन्ध्यावासनी देवी मंदिर के निकट कई दर्शनीय मंदिर बने हुए हैं जिनके दर्शन का लाभ भक्तगढ़ भारी तादाद में उठाते हैं। मिर्जापुर शहर का देवी गंगा के निकट होने के वजह से यशगान और अधिक बढ़ जाता हैं।
विंध्याचल पर्वत पर स्थित देवी का यह पावन धाम अपनी यश गाथा चारो दिशाओं में फैल रहा है। पर्यटक यहाँ विंध्यवासिनी, अष्टभुजा और काली खोह तीनो मंदिरों के दर्शन करने के लिए दूर-दूर से आते हैं। सबसे दिलचस्प नजारा यहाँ नवरात्री के अवसर पर होता है जब पूरे शहर को नव देवी की पूजा, अर्चना और भक्ति के लिए दीयों, मंत्रो और फूलो से सजाया जाता हैं। यदि आप विन्ध्याचल धाम की यात्रा पर जाना चाहते हैं या जानकारी लेना चाहते हैं तो हमारे इस आर्टिकल को एक बार पूरा जरूर पढ़े –
विंध्याचल सिद्ध देवी पीठ अति प्राचीन काल से ही महर्षियों, योगियों, तपस्वियों की श्रधा, आस्था, सात्विकता और मुक्तिप्रदाता का मंगल क्षेत्र रहा है। इस पावन भूमि पर अनेक सिद्ध तपस्वियों ने तपस्या की थी। विंध्याचल में बने अशंख मंदिर इस तथ्य की पुष्टि करते हैं। विंध्याचल धाम में त्रिशक्तियों महालक्ष्मी, महाकाली और देवी सरस्वती का निवास स्थान हैं। देवी पार्वती ने इसी स्थान पर तपस्या करके अपना नाम पाया था और भगवान भोलेनाथ को प्राप्त किया। भगवान श्री राम ने यहाँ के गंगा घाट पर अपने पितरो को श्राध्य दर्पण किया और रामेश्वर लिंग की स्थापना की। विंध्याचल तपोवन में भगवान विष्णु का अपने सुदर्शन चक्र की प्राप्ति हुई थी। देवी लक्ष्मी का मंदिर विंध्याचल के मध्य में एक ऊँचे स्थान पर स्थित हैं और मंदिर के पश्चमी भाग के प्रांगढ में बारह भुजी देवी स्थित हैं। मंदिर के भीतर कई कक्ष बने हुए हैं।
विंध्यवासनी देवी दुर्गा बुराई पर अच्छाई की जीत के लिए जानी जाती है। विंध्याचल वह स्थान हैं जहां देवी दुर्गा और दानव राजा महिषासुर के बीच बहुत भायंकर युद्ध हुआ था जिसमे देवी दुर्गा ने महिषासुर देत्य का बध करके मानव जाती की रक्षा की और श्रेष्टी को पाप मुक्त किया था। महिषासुर दानव का बध करने के कारण देवी दुर्गा को महिषासुर मर्दनी भी कहते हैं। यह प्राचीन मंदिर समाज की पुरुषवादी ताकतों पर दैवीय नारी शक्ति की इस महान जीत की गाथा को बयान करता हैं।
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विंध्याचल और देवी विंध्यवासिनी की उदारता का उल्लेख भारत वर्ष के कई प्राचीन शास्त्रों और ग्रंथो में किया गया है। इनमे से कुछ विशेष ग्रन्थ जैसे मार्कंडेय पुराण, मत्स्य पुराण, महाभारत, वामन पुराण, देवी भागवत, राजा तरंगिनी, बृहत् कथा, हरिवंश पुराण, स्कंद पुराण, कदंब्री और कई तंत्र शास्त्र में मिल जाता हैं। खास तौर पर मार्कंडेय पुराण में देवी दुर्गा और महिषासुर के बीच हुए युद्ध का विस्तृत वर्णन देखने को मिलता हैं। विंध्याचल मंदिर के इतिहास पर नजर डालने पर हमें कई प्राचीन कथाओं का वर्णन देखने को मिलता हैं।
विंध्याचल मंदिर में दर्शन करने का समय
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विंध्याचल मंदिर के दर्शन करने के बाद यदि आप यहां के अन्य पर्यटन स्थलों की सैर करना चाहते हैं तो हम आपको बता दें कि विन्ध्यासनी देवी मंदिर के आसपास कई पर्यटन स्थल हैं जिनकी यात्रा करके आप अपनी यात्रा को और अधिक यादगार बना सकते हैं।
विंध्याचल का दर्शनीय कंकाली देवी मंदिर का नाम कंकाल से मिला है, जिसका अर्थ है कंकाल या मां काली हैं। ऐसा कहा जाता है कि देत्यों का नास करने के लिए शांतस्वरूपा देवी दुर्गा ने देवी काली का रूप धारण कर लिया और दुष्टो का नाश किया। माना जाता हैं कि उनका क्रोध इतना अधिक बढ़ गया था कि उनका शरीर कंकाल में बदलने लगा तभी भगवान शिव ने उनकी गुस्सा शांत करने के लिए उनका मार्ग रोका और रास्ते में सो गए।
विंध्याचल का प्रसिद्ध रामगया घाट विंध्याचल से लगभग 2 किलोमीटर की दूरी पर है। माना जाता है कि भगवान राम ने अपने माता-पिता की आत्मा की शांति के लिए इस स्थान पर प्रार्थना की थी। राम गया घाट पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है।
विंध्याचल का प्रसिद्ध अष्टभुजा मंदिर देवी सरस्वती को समर्पित है जोकि साहित्य, विद्या और ज्ञान की देवी हैं। माना जाता हैं कि अष्टभुजा देवी भगवान श्री कृष्ण की बहन के रूप में जन्म लिया था जिसे असुरराज कंस ने मारने की चेष्टा की लेकिन वह उनके हाथो से छूट कर आसमान में आकाशवाणी करने के बाद अदृष हो गई थी। इसी स्थान पर उनके कुछ साक्ष्य मिले और उन्हें यहा पूजा जाने लगा।
विंध्याचल में घूमने वाली जगह सीता कुंड वह स्थान हैं जहां वनवास काल के दौरान सीता माता की प्यास बुझाने के लिए श्री लक्ष्मण ने अपने तीर से जमीन में छेद कर दिया जहां से पानी की प्राप्ति हुई और माता सीता ने अपने कंठ की प्यास इसी जल से बुझाई आगे चल के यह स्थान सीता कुंड के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
विंध्याचल का दर्शनीय काली खोह मंदिर काली माँ को समर्पित है और एक गुफा के रूप में निर्मित है। माना जाता है कि देवी काली ने राक्षस रक्तबीज का वध करने के लिए अवतार लिया गया था। रक्तबीज नामक दानव को वरदान प्राप्त था कि उनके रक्त की प्रत्येक बूंद से कई रक्तबीज उत्पन्न होंगे और इस विकट परिस्थिति में सभी देवताओं ने देवी की शरण में जाना उचित समझा। माना जाता हैं कि देवी काली ने रक्तबीज को मारने के लिए अपनी जीभ को जमीन पर फैला दिया और उनका रक्त अपनी जीभ पर ही रख लिया। काली खोह मंदिर में देवी काली की खूबसूरत मूर्ती स्थापित है जिसके दर्शन करने के लिए दूर-दूर से पर्यटक आते हैं।
विंध्याचल के प्रसिद्ध रामेश्वर घाट पर स्थित दर्शनीय रामेश्वर महादेव मंदिर मिर्जापुर से लगभग 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह मंदिर विंध्यवासिनी देवी मंदिर से मात्र एक किलोमीटर की दूरी पर है। प्राचीन कथाओं से पता चलता हैं कि इस मंदिर में भगवान राम द्वारा स्थापित किया गया शिवलिंग विधमान हैं।
विंध्याचल के नजदीक ही वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर के दर्शन करने के लिए भी आप जा सकते हैं। काशी विश्वनाथ मंदिर वाराणसी के सबसे प्रमुख मंदिर में से एक हैं जो भगवान शिव को समर्पित है। इस मंदिर में विराजित शिव की ज्योतिर्लिंग देश के सभी 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है, जिसकी वजह से इस मंदिर को वाराणसी का एक खास मंदिर कहा जाता है। इस मंदिर में प्रतिदिन लगभग 3000 भक्त भगवान शिव के दर्शन के लिए आते हैं।
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विंध्याचल पावन स्थान की यात्रा के बाद पर्यटक यहाँ से कुछ ही दूरी पर स्थित वाराणसी के दुर्गा मंदिर की यात्रा पर भी जा सकते हैं जोकि एक दर्शनीय स्थल हैं और इस मंदिर को बंदर मंदिर के नाम से भी जाना जाता हैं। माना जाता है कि इस मंदिर में विराजित देवी दुर्गा की मूर्ती अपने आप प्रकट हुई थी इसका निर्माण नहीं किया गया था।
विंध्याचल पर्यटन के धार्मिक टूरिस्ट प्लेस में वाराणसी का सबसे पुराना और ऐतिहासिक कालभैरव मंदिर भगवान शिव के सबसे आक्रामक और विनाशकारी रूप को समर्पित है। कालभैरव मंदिर 17 वीं शताब्दी ईस्वी में बनाया गया था जिसके बारे में कहा जाता है कि यह अपने भक्तों की सभी समस्याओं को दूर करता है। वाराणसी आने वाले सभी तीर्थयात्रियों को शिव जी के इस मंदिर के दर्शन करने के लिए जरुर आना चाहिए।
संकट मोचन हनुमान जी महाराज का मंदिर विंध्याचल में सबसे प्रमुख मंदिरों में से एक है। अगर आप विंध्याचल धाम की तीर्थयात्रा यात्रा पर है तो इस मंदिर में जाकर संकटमोचन महाराज के दर्शन अवश्य करे। यह प्राचीन मंदिर राम भक्त हनुमान जी को समर्पित है जिन्हें भक्त हनुमान के रूप में पूजते हैं। यदि इस मंदिर की स्थापना की वास्तविक तिथि के बारे में बात करे तो यह एक रहस्य है लेकिन प्राचीन काल से ही इसकी पूजा की जाती रही है।
व्याधम जलप्रपात विंध्याचल के बाहरी इलाके में स्थित हैं और विंध्याचल के मंदिरों की यात्रा करने के बाद यह पर्यटकों के लिए घूमने के लिए एक शानदार स्थान हैं। पर्यटक यहाँ पिकनिक मानाने के इरादे से भी पहुँचते हैं। यह झरना धीरे बहने वाला झरना है जो ऊंचे-ऊँचे और हरे-भरे पेड़ों से ढका हुआ है। यह स्थान विशेष रूप से बारिश के मौसम में खूबसूरत शांत वातावरण में का नजारा प्रस्तुत करता हैं।
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विंध्याचल मंदिर आप वर्ष में किसी भी वक्त जा सकते हैं, मौसम के लिहाज से देखे तो विंध्याचल मंदिर जाने के लिए अक्टूबर से मार्च का महिना अच्छा होता हैं। यदि आप प्रकृति प्रेमी है तो बारिश का मौसम यहाँ कि यात्रा के लिए आदर्श माना जाता हैं। लेकिन विंध्याचल देवी माँ का स्थान हैं जोकि नवरात्री के अवसर पर अदभुत नजरा प्रस्तुत करता हैं इसलिए आप नवरात्रि के त्यौहार के अवसर पर भी विंध्याचल का सफ़र आदर्श माना जाता हैं।
विंध्याचल धाम की यात्रा के बाद यदि आप यहाँ रूकना चाहते हैं तो हम आपको बता दें की विंध्याचल स्टेशन से कुछ ही दूरी पर आपको कुछ लों-बजट से हाई-बजट के होटल मिल जायेंगे। जिनका चुनाव आप अपनी जरूरत के हिसाब से कर सकते हैं।
विंध्याचल की भोजन सामग्री इलाहाबाद, मिर्जापुर और वाराणसी से मेल खाती हैं। यहाँ अधिकांश लोग दाल बाटी खाना बहुत पसंद करते हैं जोकि तुवर दाल के साथ होती हैं। यहां बनने वाली बाटी हार्ड गेहूं की रोल की होती हैं जिसमें आलुओं की थोड़ी स्टफिंग देखने को मिलती हैं। विंध्याचल के एक अन्य व्यंजन में लिट्टी चोखा भी शामिल हैं जोकि वाराणसी के व्यंजनों की स्वादिष्टता को ओर अधिक बढ़ा देता हैं और इसमें गेहूं और सत्तू की मसालेदार गेंद होती है और फिर घी से भरी जाती है। इनके अलावा यहाँ के व्यंजनों में आप कुछ स्वादिष्ट आल्लु पुरी, ठंडाई और लस्सी भी ले सकते हैं जोकि ताज़ा पेय पदार्थ हैं।
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विंध्याचल मंदिर जाने के लिए आप फ्लाइट, ट्रेन और बस में से किसी का भी चुनाव कर सकते हैं।
विंध्याचल जाने के लिए यदि आपने हवाई मार्ग का चुनाव किया हैं तो हम आपको बता दें कि यहां का सबसे नजदीकी हवाई अड्डा वाराणसी में से है जो विंध्याचल से लगभग 68 किलोमीटर की दुरी पर स्थित हैं। एयर पोर्ट से आप बस या टैक्सी के माध्यम से विंध्याचल आसानी से पहुँच जायेंगे।
विंध्याचल की यात्रा के लिए यदि आपने ट्रेन का सफ़र चुना हैं तो हम आपको बता दें कि रेल मार्ग से आप आसानी से विंध्याचल पहुँच जायेंगे। विंध्याचल रेलवे स्टेशन के अलावा मिर्जापुर रेलवे स्टेशन बिलकुल नजदीक ही हैं।
विंध्याचल जाने के लिए यदि आपने सड़क मार्ग का चुनाव किया है तो बता दें कि मिर्जापुर सड़क मार्ग के जरिए आसपास के इलाको से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ हैं। इसलिए आपको सड़क मार्ग या बस से सफ़र करने में कोई परेशानी नही होगी।
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इस लेख में आपने मां विन्ध्यवासिनी मंदिर विंध्याचल धाम के दर्शन की जानकारी को जाना है आपको हमारा यह लेख केसा लगा हमे कमेंट्स में बताना ना भूलें।
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Featured Image Credit: Anuj Yadav
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