Taj ul masjid in Hindi : ताज-उल मस्जिद भारत ही नहीं बल्कि एशिया की सबसे बड़ी मस्जिदों में से एक है। मध्यप्रदेश का भोपाल शहर झीलों का शहर कहा जाता है, लेकिन यहां स्थित ताज-उल मस्जिद मुस्लिम धर्म के लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थल है। ताज-उल मस्जिद भोपाल के मोतिया तालाब के पास स्थित है। अगर आप भोपाल जाएं, तो ताज-उल मस्जिद जाए बिना आपके भोपाल का सफर अधूरा है। ताज-उल का अर्थ है “मस्जिदों का ताज”। देखने में ये मस्जिद काफी खूबसरत है और यहां सजे गुंबद वाकई किसी ताज से कम नहीं दिखते। भोपाल की ताज-उल मस्जिद भारत ही नहीं बल्कि एशिया की सबसे बड़ी मस्जिदों में से एक है। ताज-उल मस्जिद एशिया की दूसरी सबसे बड़ी मस्जिद मानी जाती है, लेकिन अगर क्षेत्रफल के हिसाब से देखा जाए तो ये दुनिया की सबसे बड़ी मस्जिद है। इस मस्जिद की संरचना काफी आकर्षक और राजसी है। बस ताज-उल मस्जिद का इतिहास कुछ ऐसी थी कि इसका निर्माण कार्य बमुश्किल पूरा हो पाया और आज ये इमारत दुनिया की खूबसूरत इमारतों में से एक है।
गुलाबी रंग से रंगी ताज-उल मस्जिद में सफेद गुंबदों के साथ विशाल मीनारें हैं। बलुआ पत्थर से बनी इस इमारत के बारे में बताया जाता है कि ताज-उल मस्जिद दिल्ली की जामा मस्जिद से प्रेरणा लेकर बनाई गई थी। ताज-उल मस्जिद जामा मस्जिद की नकल है। इसके पीछे भी एक दिलचस्प कहानी है। यहां हर साल तीन दिन का इज्तिमा उर्स होता है, जिसमें दुनियाभर के जमाते शिरकत करते हैं। तो चलिए आज इस आर्टिकल के जरिए हम आपको भोपाल शहर और एशिया की सबसे बड़ी मस्जिदों में से एक ताज-उल मस्जिद का इतिहास के बारे में बताते हैं।
ताज-उल मस्जिद का निर्माण भोपाल की नवाब शाहजहां बेगम द्वारा मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर के शासनकाल के दौरान शुरू हुआ था। बता दें कि शाहजहां बेगम बांकी मोहम्मद की पत्नी थीं। उनके बाद अपने जीवनकाल में इस मस्जिद का निर्माण उनकी बेटी सुल्तान जहां बेगम ने जारी रखा। हालांकि फंड की कमी के कारण इस मस्जिद का निर्माण पूरा नहीं हो सका और शाहजहां बेगम का ये सपना अधूरा रह गया। 1857 के युद्ध के लंबे समय बाद भोपाल के अलामा इमरान मोहम्मद खान और मौलाना शहीद हाशमत अली साहब के प्रयासों से 1971 में इसका निर्माण एक बार फिर शुरू हुआ, जो 1985 तक चला। हालांकि इसके निर्माण में भारत सरकार का भी दखल था, जिसके बाद ये सुंदर इमारत बनकर पूरी हो सकी और दुनिया में आज ताज-उल मस्जिद खूबसूरत स्मारक में से एक मानी जाती है।
सबसे पहले ताज-उल मस्जिद को दुनिया की सबसे बड़ी मस्जिद बनाने का ख्वाब सिकंदर बेगम ने देखा था। सिकंदर बेगम भोपाल के बहादुर शांह जफर की पत्नी थी। इसलिए आज भी सिकंदर बेगम का नाम ताज-उल मस्जिद का इतिहास से जुड़ा हुआ है। सिंकदर बेगम 1861 में दिल्ली की जामा मस्जिद में गईं तो उन्होंने देखा कि जामा मस्जिद को ब्रिटिश सेना की घुड़साल में बदल दिया गया है। तब उन्होंने अपनी वफादारी के चलते इस मस्जिद को हासिल कर लिया और यहां शाही इमाम की स्थापना की। जामा मस्जिद से प्रेरित होकर उन्होंने भोपाल में एक ऐसी ही मस्जिद बनाने का संकल्प लिया। सिंकदर बेगम का ये सपना उनके जीते जी अधूरा रह गया, जिसके बाद उनकी बेटी नवाब शाहजहां बेगम ने इसे अपना सपना बना लिया। हालांकि धन की कमी की वजह से उनका भी ये ख्वाब अधूरा रह गया, जिसका जिम्मा उनकी बेटी सुल्तान जहां ने संभाला। लेकिन ये ताज-उल मस्जिद का इतिहास का दुर्भाग्य रहा कि उनके जीते जी भी ताज-उल मस्जिद का निर्माण पूरा नहीं हो सका।
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ताज-उल मस्जिद मुगल शैली में बनवाई गई थी। बताया जाता है कि नवाब शाहजहां बेगम अपनी मां से बेहद प्यार करती थीं। उनके सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने ताज-उल मस्जिद का वैज्ञानिक नक्शा तैयार कराया था। उन्होंने साउंड वेव्स की थ्योरी को ध्यान में रखते हुए 21 खाली पड़े गुंबदों की एक संनचना तैयार कराई कि मुख्य गुंबद के नीचे खड़े होकर जब कोई इमाम कुछ कहेगा तो उसकी आवाज पूरी मस्जिद में गूंजेगी। शाहजहां बेगम ने मस्जिद को आकर्षक रूप देने के लिए विदेश से खासतौर से 15 लाख का पत्थर भी मंगवाया था। ये पत्थर ऐसा था जिसमें अक्स नजर आता था, इसलिए मौलवियों ने इस पत्थर को मस्जिद में लगवाने पर रोक लगा दी। लेकिन याद के तौर पर आज भी ऐसे कुछ पत्थर दारूल उलम में रखे हुए हैं। बताया जाता है कि धन की कमी और गालों का कैंसर होने के कारण नवाब शाहजहां बेगम का ये सपना अधूरा रह गया और मस्जिद का निर्माण भी रूक गया। उनके बाद बेटी सुल्तान जहां भी उनका ये सपना पूरा न कर सकी। लेकिन कुछ समय बाद भारत सरकार के दखल के बाद मस्जिद का निर्माण पूरा हो सका। बता दें कि इस मस्जिद का मुख्य वास्तुविद अल्लारखां था।
ताज-उल मस्जिद भोपाल स्टेशन से कुल 3 किमी की दूरी पर स्थिति है, जहां पहुंचने में मात्र 8 से 10 मिनट का समय लगता है। अगर आप फ्लाइट से जाएं तो भोपाल में राजा भोज एयरपोर्ट है, जहां से शहर 15 किमी की दूरी पर है। अगर आप एयरपोर्ट से बड़ी मस्जिद के लिए टैक्सी करेंगे तो 150-200 रूपए चार्ज लगेगा। इसके अलावा बस या ट्रेन से भी आप आसानी से भोपाल स्टेशन पहुंच सकते हैं। यहां से ताज-उल मस्जिद जाने के लिए आपको टैक्सी या ऑटो हायर करना होगा, जो सीधे आपको ताज-उल मस्जिद पर ही छोड़ेगा।
ताज-उल मस्जिद दुनियाभर की बड़ी इमारतों में मशहूर है। इसे देखने के लिए हर साल कई लोग आते हैं। खासतौर से इज्तिमा के दिनों में यहां भारी संख्या में लोगों की भीड़ होती है। बड़ी मस्जिद की यात्रा आप किसी भी महीने में कर सकते हैं। यहां कोई एंट्री फीस नहीं है। किसी भी धर्म के लोग ताज-उल मस्जिद में प्रवेश कर सकते हैं, लेकिन शुक्रवार के दिन मुस्लिम लोगों को छोड़कर अन्य धर्म के लोगों को अंदर जाने की अनुमति नहीं होती।
ताज उल मस्जिद भोपाल, NH 12, Kohefiza, Bhopal, Madhya Pradesh 462001, India
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