केदारनाथ यात्रा के बारे में जानकारी – Kedarnath Ki Yatra In Hindi

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Kedarnath In Hindi, केदारानाथ मंदिर चार धामों में से एक है, उत्तराखंड के हिमालय पर्वत की गोद में बसे केदारानाथ मंदिर की बहुत मान्यता है। केदारनाथ माउंटेन रेंज के बीच स्थित एक प्रमुख तीर्थस्थल है, जहां भगवान शिव की ज्योर्तिलिंग स्थापित है। 3584 मीटर की ऊंचाई पर स्थित केदारानाथ मंदिर का ये ज्योर्तिलिंग सभी 12 ज्योर्तिलिंगों में सबसे महत्वपूर्ण है। केदारानाथ मंदिर की खास बात है कि यह मंदिर सिर्फ अप्रैल से नवंबर महीने के बीच ही दर्शन के लिए खुलता है और सालभर लोग केदारानाथ मंदिर में आने के लिए इंतजार करते हैं। यहां की प्रतिकूल वायु के कारण सर्दी के दिनों में केदारघाटी बर्फ से पूरी तरह ढंक जाती है। खास बात यह है कि इसके बाद इसके खुलने और बंद होने का मुहूर्त भी निकाला जाता है, लेकिन फिर भी ये सामान्यतौर पर नवंबर महीने की 15 तारीख से पहले बंद हो जाता है और 6 महीने बाद अप्रैल में फिर से खुलता है। इस स्थिति में केदारानाथ मंदिर की पंचमुखी प्रतिमा को उखीमठ में लाया जाता है, जहां इसकी पूजा अर्चना रावलजी करते हैं। कहा जाता है कि जो बद्रीनाथ गया और केदारनाथ के दर्शन नहीं किए, उसकी यात्रा अधूरी मानी जाती है।

केदारनाथ मंदिर का इतिहास – History Of Kedarnath In Hindi

History Of Kedarnath In Hindi

वैसे केदारानाथ मंदिर का इतिहास बहुत गौरवशाली है, जिससे कई कथाएं जुड़ी हैं। बताया जाता है कि हिमालय के केदार श्रृंग पर भगवान विष्णु के अवतार नर और नारायण ऋषि तपस्या करते थे। उनकी सच्ची अराधना देखकर भगवान शंकर प्रकट हुए और उनकी प्रार्थना को स्वीकार करते हुए ज्योर्तिलिंग में हमेशा यहां वास करने का उन्हें वरदान दिया। जबकि दूसरी कथा पंचकेदार से जुड़ी है। माना जाता है कि महाभारत के युद्ध में जीतने के बाद पांडव भात्रहत्या के पाप से मुक्त होना चाहते थे। भगवान शंकर के दर्शन के लिए पांडव काशी गए, लेकिन जब शंकर भगवान उन्हें यहां नहीं मिले तो वे उनके दर्शन के लिए हिमालय तक पहुंच गए। लेकिन शंकर भगवान उन्हें दर्शन नहीं देना चाहते थे, इसलिए वह केदार घाटी में जाकर बस गए, लेकिन पांडव भी अपनी जिदद् के पक्के थे, वे उनके पीछे -पीछे केदार पहुंच गए। भगवान शंकर उनका संकल्प देखका खुश हुए और उन्हें दर्शन दिए। केदारानाथ को पंचकेदार भी कहा जाता है। शिव की भुजाएं तंगुनाथ में, मुख रूद्रनाथ में, नाभि मदमेश्वर में और जटा कलपेश्वर में प्रकट हुई थी, इसी वजह से इन चार जगहों सहित केदारनाथ को पंचकेदार कहा जाता है।

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केदारनाथ की वास्तुकला – Architecture Of Kedarnath In Hindi

यह मंदिर वास्तुकला का आकर्षक व अद्भुत नमूना है। केदारानाथ मंदिर की जितनी मान्यता है इसकी कारीगरी उतनी ही देखने लायक है। यह मंदिर छह फीट ऊंचे चौकोर चबूतरे पर बना हुआ है। ये मंदिर असलार शैली में बना हुआ है, जिसमें पत्थर स्लैब या सीमेंट के बिना ही एक दूसरे में इंटरलॉक्ड हैं। महाभारत में भी मंदिर क्षेत्र का उल्लेख मिलता है। मंदिर में एक गर्भगृह है। इस गर्भ गृह में नुकीली चट्टान भगवान शिव के सदाशिव रूप में पूजी जाती है, जबकि  बाहर प्रांगण में नंदी बैल वाहन के रूप में विराजमान है। मंदिर के पीछे कई कुंड बने हुए हैं, जिनमें आचमन और तर्पण किया जा सकता है।

केदारनाथ मंदिर का निर्माण – Who Built Kedarnath In Hindi

केदारनाथ मंदिर का निर्माण

बताया जाता है कि इस मंदिर का निर्माण पांडव वंश के जनमेजय ने कराया था। आदि शंकराचार्य ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था। ये मंदिर कितना पुराना है इसका तो कोई प्रमाण नहीं मिलता, लेकिन कहा जाता है कि ये मंदिर 12वे-13वीं शताब्दी का है। मान्यतानुसार ये मंदिर 8वीं शताब्दी में शंकराचार्य ने बनवाया था।

क्या है केदारनाथ शिवलिंग की कहानी – Story Of Kedarnath Shivling In Hindi

केदारनाथ यात्रा करने वाले श्रद्धालुओं में केदारानाथ शिवलिंग की कहानी के बारे में जानने की उत्सुकता बहुत रहती है। इसके पीछे भी एक दिलचस्प कहानी  है, जैसा कि हमने इतिहास वाले भाग में बताया है, कि भगवान शिव पांडवों से मिलना नहीं चाहते थे। लेकिन पांडव भी अपनी लगन के पक्के थे और वे भगवान शिव के दर्शन के लिए हर जोखिम उठाने के लिए तैयार थे। जैसे ही पांडव भगवान शंकर से मिलने केदार पहुंचे तो भगवान ने बैल का रूप धारण कर लिया और अन्य पशुओं में जाकर मिल गए। हालांकि इस बात का आभास पांडवों को हो गया था, लेकिन इस सच को सामने लाने के लिए पांडव भीम ने अपना विशाल रूप धारण कर दो पहाड़ों पर अपना पैर फैला दिया। अन्य सब पशु तो बाहर निकल गए, लेकिन बैल के रूप में शंकरजी पांडव के पैर से नीचे से जाने के लिए तैयार नहीं हुए, जब भीम ने झपट कर बैल की त्रिकोणात्मक पीठ का भाग पकड़ा। बस उसी समय से भगवान शंकी की बैल की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में बस गए और आज तक केदारनाथ के रूप में पूजे जाते हैं।

केदारनाथ में दर्शन करने का समय – Darshan Timings In Kedarnath In Hindi

  • केदारनाथ के मंदिर के द्वार दर्शनार्थियों के लिए सुबह 6 बजे खोल दिए जाते हैं। जिसके लिए रात से ही लंबी लाइन लगना शुरू हो जाती है।
  • दोपहर तीन से पांच बजे तक विशेष पूजा की जाती है, जिसके बाद मंदिर बंद हो जाता है।
  • पांच बजे फिर मंदिर दर्शन के लिए खोल दिया जाता है।
  • इसके थोड़ी देर बाद भगवान शिव का श्रृंगार होता है, जिस दौरान कपाट थोड़ी देर के लिए बंद कर दिए जाते हैं। फिर 7:30 से 8:30 तक आरती होती है। बता दें कि भगवान शिव की ये मूर्ति पांच मुख वाली होती है।
  • अगर आप कभी केदारनाथ यात्रा पर जाएं तो ध्यान रखें कि ये मंदिर रात 8:30 बजे बंद हो जाता है।
  • यहां आरती के लिए मंत्र कन्नड़ भाषा में बोले जाते हैं। पूजा अनुष्ठानों की श्रृंखला में नुसार महाभिषेक, रूद्राभिषेक, लघु रूद्राभिषेक और शोदाशोपचार पूजा, शिव सहश्रमणम पथ, शिव महिमा स्त्रोतपथ और शाम को शिव तांडव स्त्रोत मार्ग की परंपरा निभाई जाती है। शाम को महाभिषेक पूजा शाम 4 से 7 बजे के बीच की जाती है।

कैसे जा सकते हैं केदारानाथ – Route Of Kedarnath Yatra In Hindi

कैसे जा सकते हैं केदारानाथ

केदारानाथ आप ट्रेन से जा सकते हैं। ऋषिकेश केदारनाथ के सबसे पास रेलवे स्टेशन है जिसके बीच की दूरी 216 किमी है। ऋषिकेश से गौरीकुंड पहुंचने के लिए आप टैक्सी या बस की सर्विस ले सकते हैं। सोनप्रयाग और गौरीकुंड के बीच की दूरी मात्र 5 किमी है। यहां सड़क खत्म हो जाती है। 2013 में आई बाढ़ के खतरनाक हादसे के बाद सरकार ने रामबाढ़ा के बाद एक नया ट्रेङ्क्षकग रूट तैयार कर दिया है। नए ट्रेक से आप जाएंगे तो गौरीकुंड से केदारनाथ की दूरी 16 किमी है। 2016 में केदारनाथ तक जाने के लिए दो ट्रैक और तैयार किए हैं। जिसमें से पहला चौमासी से होते हुए खाम, फिर रामबाड़ा और फिर केदारनाथ पहुंचने का है। इस रूट की कुल दूरी18 किमी है। वहीं दूसरा रास्ता त्रिजुगीनारायण से केदारानाथ जाने का है, जिसके बीच की दूरी 15 किमी है।

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क्या केदारनाथ यात्रा के दौरान ऑक्सीजन सिलेंडर साथ ले जाना चाहिए – Is It Necessary To Carry Oxygen Cylinder In Kedarnath Yatra In Hindi

केदारानाथ मंदिर काफी ऊंचाई पर स्थिति है, ऐसे में सरकार जरूरत पडऩे पर ऑक्सीजन सिलेंडर की टेम्पोरेरी फेसिलिटी उपलब्ध कराती है। इसलिए आपको अपने साथ ऑक्सीजन सिलेंडर ले जाने की कतई जरूरत नहीं है। हां, लेकिन किसी को अस्थमा या सांस से जुड़ी कोई समस्या है, तो ऑप्शन के लिए साथ ले जा सकते हैं। इसकी जगह पर आप कैंम्फूर टैबलेट्स साथ ले जा सकते हैं। इसे साथ ले जाना काफी कंफर्टेबल है और ये जगह भी नहीं घेरतीं।

केदारानाथ के आसपास क्या है देखने लायक – Places To Visit Near Kedarnath In Hindi

केदारानाथ के आसपास क्या है देखने लायक

वासुकी ताल

वासुकीताल एक खूबसूरत झील है, जिसकी केदारानाथ से दूरी महज 8 किमी है। यहां आने वाले यात्री झील के पास स्थित चौखंभा चोटी का भरपूर आनदं ले सकते हैं।

शंकराचार्य समाधि

आदि गुरू शंकराचार्य की समाधि केदारानाथ के पास ही स्थिति है। इसलिए यहां जाने वाले लोग उनकी समाधि पर जरूर जाते हैं। वो शंकराचार्य वही थे जिन्होंने 8वीं शताब्दी में केदारानाथ मंदिर का पुर्ननिर्माण कराया और चारों मठों की स्थापना की।

अगस्त्यमुनि

1000 मीटर की ऊंचाई पर मंदाकिनी नदी के तट पर स्थित अगस्त्यमुनि हिंदू मुनि अगस्त्य ऋषि का घर मानी जाती है ये जगह।

चंद्रशिला

यह 3679 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह ट्रेकिंग करने के लिए काफी अच्छी जगह है। लेकिन दिसंबर से जनवरी में बफ पडऩे के कारण यहां ट्रेकिंग रोक दी जाती है। पहली बार ट्रेकिंग करने वाले लोगों के लिए ये जगह अच्छा अनुभव है।

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सोनप्रयाग

सोनप्रयाग केदारानाथ के पास 19 किमी की दूरी पर स्थित है। इसकी ऊंचाई1829 किमी है। यह वही जगह है जहां बासुकी और मंदाकिनी नदी आपस में मिलती हैं।

केदारगिरीपिंड

ये वही जगह है जहां से कई मंदाकिनी जैसी कई हिमनदियां बहती हैं। केदार गिरीपिंड केदारनाथ, केदारनाथ गुंबद और भारतेकुन्था नम के पहाड़ों से मिलकर बना है।

गौरीकुंड

1972 मीटर की ऊंचाई पर स्थित गौरीकुंड केदारानाथ के पास एक छोटा सा गांव है, बताया जाता है कि ये वही जगह है जहां भगवान शिव को पाने के लिए देवी पार्वती ने घोर तपस्या की थी।  यहां पर गौरीकुंड नाम का पानी का सोता है, जिसे पीकर कई बीमारियां दूर हो जाती हैं।

केदारानाथ जाने से पहले जरूर बरतें ये सावधानियां – Take Precautions Before Go For Kedarnath Yatra In Hindi

Take Precautions Before Go For Kedarnath Yatra In Hindi

  • अगर किसी यात्री को पैदल चलने में तकलीफ होती है, तो इन लोगों के लिए केदारानाथ मंदिर तक पहुंचने के लिए हेलीकॉप्टर की व्यवस्था है।
  • एक सामान्य यात्री को गौरीकुंड से केदारानाथ मंदिर पहुंचने में 5 घंटे लगते हैं। इसलिए जल्दी पहुंचने के लिए रास्तों पर भागें नहीं, धैर्यपूर्वक चलें।
  • सोनप्रयाग से टट्टू या घोड़े बिल्कुल भी हायर न करें। ये आपकी केदारनाथ यात्रा के दो घंटे और बढ़ा देगा। बेहतर हैं कि गौरीकुंड से टट्टू लें या फिर यहीं से अपनी पैदल यात्रा शुरू करें।
  • गौरीकुंड से अपनी यात्रा सुबह जल्दी शुरू करें, ताकि दोपहर तक आप केदारानाथ मंदिर तक पहुंच सकें। दर्शन करें और मंदिर में मौजूद जीएमवीएन सुविधा के तहत यहां रहें। सुबह होते ही अपनी यात्रा गौरीकुंड से शुरू कर दें।
  • अगर कोई केदारनाथ यात्रा पुरी करके शाम तक यहां लौटने की प्लानिंग कर रहा है तो वह आसानी से शाम तक यहां लौट सकता है। लेकिन गौरीकुंड से सोनप्रयाग तक जाना बहुत मुश्किल है। इस समय तक यहां बहुत भीड़ होती है। दूसरा यहां लॉज में भी ठहरने के लिए कमरे मिलना मुश्किल हो जाता है। मई-जून में तो यहां इतनी भीड़ होती  है कि 4 से 5 हजार यात्री फूटपाथ पर सोते हैं।
  • केदारनाथ यात्रा पर 12 साल से कम उम्र के बच्चों को अपने साथ लेकर ना जाएं। यहां बर्फ गिरने के साथ तूफान की आशंका भी बहुत रहती है। यहां ऑक्सीजन लेवल 3000 मीटर कम है।
  • केदारनाथ यात्रा का सबसे आरामदायक तरीका है पैलेनक्विन या डोली ये यात्रा करना। जिसके लिए 8 से 19 हजार के बीच चार्ज किया जाता है। जबकि हेलीकॉप्टर टिकट 7 हजार के आसपास है।
  • अच्छे कम्यूनिकेशन नेटवर्क के लिए आप बीएसएनल, वोडाफोन, रिलायंस और जियो की सिम साथ ले जा सकते हैं। इनमें से एक सिम तो यहां जरूर काम करेगी।
  • अपने सामान के साथ रेनकोट, रजाई या जैकेट, विंड शीटर, दवाईयां लेकर जांए। सामान के लिए सूटकेस ले जाने से परहेज करें। इसकी जगह छोटे छोटे बैग में सामान पैक करें।
  • केदारनाथ यात्रा मेे अपना यात्रा कार्ड हमेशा अपने साथ रखें।
  • रात को केदारनाथ यात्रा करने से बचें क्योंकि केदार घाटी में कालू भालू बहुत देखे जाते हैं।

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