Badrinath In Hindi, : चार धामों में से एक बद्रीनाथ प्रकृति के बेहद करीब है। चारों ओर पहाड़ और यहां होने वाली बर्फबारी लोगों का मन मोह लेती है। लेकिन एक मशहूर पर्यटन स्थल होने से ज्यादा बद्रीनाथ धाम अब लोगों की गहरी आस्था का केंद्र बन गया है। बद्रीनाथ के इस मंदिर में भक्ति में डूबे लोग भगवान विष्णु का आर्शीवाद लेने पहुंचते हैं। बता दें कि यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित एक हिंदू मंदिर है। यह मंदिर उत्तराखंड के बद्रीनाथ शहर के पास अलकनंदा नदी के किनारे स्थित है।
भारत के सबसे व्यस्त और प्राचीन मंदिर होने के नाते यहां हर साल लाखों की संख्या में तीर्थयात्री आते हैं। माना जाता है कि बद्रीनाथ के दर्शन के बिना केदारनाथ की यात्रा अधूरी है। इसलिए केदारनाथ यात्रा करने वाले तीर्थयात्री पहले बद्रीनाथ की यात्रा जरूर जाते है। गढ़वाल क्षेत्र के बीच बसे इस मंदिर की ऊंचाई 3133 मीटर है। हिमालय क्षेत्र में मौसम की स्थिति के चलते यहां बर्फ जम जाती है, जिस कारण ये मंदिर साल में छह महीने के लिए ही खुलता है।अप्रैल से नवंबर तक यह मंदिर तीर्थयात्रियों के लिए खुला रहता है जहाँ हर दिन 20 हजार से 30 हजार यात्री दर्शन के लिए पहुंचते हैं।
बद्रीनाथ मंदिर को “बद्रीनारायण मंदिर” भी कहा जाता है इस मंदिर में बद्रीनारायण के रूप में भगवान विष्णु की काली पत्थर की मूर्ति की पूजा होती है, जो 3.3 फीट लंबी है। माता मूर्ति मेला हर साल यहां आयोजित होने वाला सबसे बड़ा मेला है, जिसकी खूब मान्यता है। प्राचीन धार्मिक ग्रंथों जैसे विष्णु पुराण और स्कंद पुराण में बद्रीनाथ मंदिर का उल्लेख किया गया है। तो आइए आज हम आपको बताते हैं बद्रीनाथ मंदिर से जुड़े इतिहास और तथ्यों के बारे में। अगर आप पहली बार बद्रीनाथ की यात्रा के लिए जा रहे हैं, तो ये जानकारी आपके काम आएगी।
वैसे बद्रीनाथ का नामकरण होने के पीछे कई कहानियां हैं। कहा जाता है कि इस जगह पर पहले बद्री यानि बेर के घने पेड़ हुआ करते थे, इसलिए इस जगह का नाम बद्रीनाथ पड़ा। वहीं दूसरी कथा इस तरह प्रचलित है। एक बार नारद मुनि ने माता लक्ष्मी को भगवान विष्णु के पैर दबाते देखा, जब नारद मुनि ने भगवान से इस संदर्भ में बात की, तो उन्हें बड़ा अपराध बोध महसूस हुआ और वे इस जगह को छोड़कर हिमालय पर्वत पर तपस्या करने चले गए। वहां हिमपात होने के कारण भगवान विष्णु पूरी तरह से ढंक गए थे, तब माता लक्ष्मी ने उन्हें इस हिमपात से बचाने के लिए बद्री के पेड़ का रूप धारण कर लिया। जब विष्णु जी ने देखा तो उनसे कहा कि हे देवी तुमने भी मेरे बराबर घोर तपस्या की है। बद्री के वृक्ष के रूप में मेरी रक्षा की है, इसलिए आज से मुझे बद्री के नाथ यानि बद्रीनाथ के नाम से पहचाना जाएगा।
बस तभी से इस जगह का नाम बद्रीनाथ पड़ गया।
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माना जाता है कि 19वीं शताब्दी ईसवीं में आदि शंकराचार्य ने बद्रीनाथ मंदिर का निर्माण किया था। मान्यता तो यह भी है कि शंकराचार्य खुद छह सालों तक छह महीने बद्रीनाथ और छह महीने केदारनाथ में रहते थे। बताया जाता है कि ये मंदिर आंठवीं सदी तक बौद्ध मठ था। देवताओं ने यहां बद्रीनाथ की मूर्ति की स्थापना की, लेकिन जब बौद्धों को इस बारे में मालूम चला, तो उन्होंने मूर्ति को अलकनंदा नदी में बहा दिया। तब शंकराचार्य ही थे, जिन्होंने इस मूर्ति की खोज कर इसे तप्त कुंड के पास स्थित एक गुफा में स्थापित कर दिया था।
बद्रीनाथ मंदिर के नीचे एक तप्त कुंड है, जिसे गर्म चश्मा के नाम से जाना जाता है। नाम सुनने में बड़ा अजीब है, लेकिन आपको बता दें कि इस पानी को बरसों से औषधि का दर्जा दिया जा रहा है। ये पानी सल्फरयुक्त है। कहा जाता है कि बद्रीनाथ में दर्शन से पहले इस चश्मे में स्नान जरूर करना चाहिए। इस पानी के स्नान से जहां रोग दूर होते हैं, वहीं पापों से भी मुक्ति मिलती है। इस चश्मे का तापमान सालभर 55 डिग्री सेल्सियस रहता है, जबकि बाहरी तापमान 17 डिग्री सेल्सियस के नीचे रहता है।
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बद्रीनाथ के कपाट सुबह 4:30 बजे खुल जाते हैं। यहां सुबह विशेष आरती है और मंदिर श्रद्धालुओं के लिए 7 से 8 बजे के बीच दर्शन के लिए खुलता है। यहां दोपहर 1 बजे तक बद्रीनाथ के दर्शन हो सकते हैं। इसके बाद शाम 4 बजे तक मंदिर के पट बंद हो जाते हैं और फिर 4 बजे से दर्शन के लिए यहां लाइन लगना शुरू हो जाती हैं। बद्रीनाथ के मंदिर में आखिरी दर्शन रात 9 बजे तक होते हैं ।
मई से जून माह के बीच बद्रीनाथ की यात्रा पर जाना अच्छा माना जाता है। या फिर सितंबर से अक्टूबर के बीच यहां जाना चाहिए। गर्मियों में बद्रीनाथ धाम का तापतान 18 डिग्री रहता है वहीं सालभर यहां न्यूनतम तापमान 8 डिग्री तक रहता है।
अगर आप बद्रीनाथ की यात्रा पर गए और इसके आसपास की खूबसूरत जगहें नहीं देखीं तो क्या देखा। मन को मोह लेने वाली यहां बहुत ही खूबसूरत जगहें हैं, जहां हर यात्री को जरूर जाना चाहिए। बद्रीनाथ मंदिर के पीछे एक नीलकंठ चोटी है, जिसे घड़वाल क्वीन भी कहा जाता है। ये पिरामिड के आकार की एक बर्फीली चोटी है, जिससे बद्रीनाथ का बैकग्राउंड बनता है। इसके साथ आप सतोपंथ की सैर कर सकते हैं। ये एक सरोवर है जिसका नाम ब्रहा, विष्णु और महेश के नाम पर रखा गया है। हिंदू धर्म के अनुसार तीनों देवता हिंदू कैलेंडर के अनुसार हर एकादशी को इस सरोवर में स्नान करने आते थे। वहीं तप्त कुंड, गणेश गुफा, व्यास गुफा, भीम पुल, माढ़ा गांव, जोशीमठ, चरणपादुका, माता मूर्ति मंदिर, घंटाकर्ण मंदिर, वासुकी ताल, वसुंधरा फॉल्स, लीला ढोंगी, उर्वशी मंदिर, पंच शिला और सरस्वती नदी पर जा सकते हैं। माना जाता है कि यहां से अलाहाबाद तक सरस्वती गुप्त बहती है।
बद्रीनाथ उत्तराखंड में चमोली जनपद के पास स्थित है। बद्रीनाथ की यात्रा पर जाने के लिए पहले आपको ऋषिकेश जाना पड़ेगा। यहां से ब्रदीनाथ की दूरी 294 किमी है। ऋषिकेश के लिए सीधी बस मिलती हैं। ऋषिकेश से बद्रीनाथ तक पूरा रास्ता पहाड़ी से घिरा है। ऋषिकेश से अगर आप अपने वाहन से या बस से बद्रीनाथ जाते हैं, तो सुबह चलकर शाम तक यहां पहुंच जाएंगे। बता दें कि बद्रीनाथ में कोई स्टेशन नहीं है, इसके पास हरिद्वार स्टेशन है। हरिद्वार से बद्रीनाथ की दूरी 154 किमी है। अगर आप विमान से जा रहे हैं, जो जॉली ग्रांट एयरपोर्ट ब्रदीनाथ से 311 किमी की दूरी पर स्थित है। यहां से बद्रीनाथ धाम जाने के लिए आप टैक्सी हायर कर सकते हैं। जबकि ट्रेन से सफर के दौरान हरिद्वार स्टेशन करीब है। बता दें कि बद्रीनाथ जाने के लिए परमिट मिलते हैं, जिसे जोशीमठ के एमडी बनाते हैं। मंदिर में एंट्री के लिए आपके पास अपना पहचान पत्र होना जरूरी है।
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