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तिरुपति बालाजी का रहस्य और उनकी कहानी –  Tirupati Balaji Story In Hindi

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Tirupati Balaji Story In Hindi : भारत के आंध्रप्रदेश के चित्तूर जिले के तिरुपति में तिरूमाला की पहाड़ी पर विराजमान “तिरुपति बालाजी” विश्व के सबसे प्रतिष्ठित देवी देवतायों में से एक है। तिरुपति बालाजी मंदिर समुद्र तल से 853 फीट ऊंचाई पर स्थित है और सात चोटियों से घिरा हुआ हुआ है जिस वजह से तिरुपति बालाजी मंदिर को “सात पहाडिय़ों का मंदिर” भी कहा जाता है। भारत के इस प्रसिद्ध मंदिर में प्रतिदिन 50 हजार से 1 लाख भक्त वेंकटेश्वर के दर्शन के लिए पहुंचते हैं, वहीं विशेष अवसरों पर तीर्थयात्रियों की संख्या 5 लाख तक हो जाती है। जबकि दान और धर्म के संदर्भ में ये देश का सबसे अमीर मंदिर है, जहाँ हर साल करोड़ों रूपय का दान किया जाता है।

तिरुपति बालाजी से प्राचीन की कई पौराणिक कथायें जुडी है, जिनकी बारे में जानने के लिए हर श्रद्धालु और पर्यटक हमेशा से ही उत्साहित होत  है तो चलिए आज हम इस लेख में तिरुपति बालाजी की स्टोरी, तिरुपति बालाजी का रहस्य, मंदिर से जुडी मान्यतायों और मंदिर से जुडी खास बातों को जानते है जो के लिए श्रधालुयों के लिए आकर्षण का केंद्र बनी हुई है –

तिरुपति बालाजी में विराजित देवता – Deity Virajit in Tirupati Balaji in Hindi

जैसा की आप जानते है तिरुपति बालाजी मंदिर भारत का एक प्रसिद्ध मंदिर है और इस मंदिर में भगवान विष्णु जी एक अवतार स्वामी “वेंकटेश्वर” विराजमान है। इसी वजह से मंदिर को प्रसिद्ध रूप से स्वामी वेंकटेश्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। भगवान वेंकटेश्वर भगवान को विष्णु जी एक मात्र उस रूप में जाना जाता है जिन्होंने जिन्होंने कलियुग के कष्टों से लोगों को बचाने के लिए अवतार लिया है।

तिरुपति बालाजी की कहानी – Tirupati Balaji Story in Hindi

पौराणिक कथायों के अनुसार तिरुपति बालाजी के बारे में दो कहानियां प्रसिद्ध हैं। पहली कहानी में उनके आदि वराह अवतार को बताया गया है जबकि दूसरी कहानी मंदिर में विराजित स्वामी वेंकटेश्वर के रूप की महिमा का बखान करती है।

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आदि वराह अवतार से जुडी कहानी Adi Varaha Avatar Story in Hindi

पौराणिक कथायों के अनुसार एक बार माता पृथ्वी पाताल लोक में डूब गईं थी क्योंकि पवन देव ने भारी अग्नि को रोकने के लिए उग्र रूप से उड़ान भरी जिससे बादल फट गये और बहुत बारिश हुई जिससे पूरी पृथ्वी पाताल लोक समा गयी थी।

तब भगवान विष्णु ने धरती माता को बचाने का फैसला किया और आदि वराह (एक जंगली सूअर) का अवतार लिया। आदि वराह ने पाताल लोक से पृथ्वी को वापस खींचने के लिए अपने तुस्क का उपयोग किया। इस घटना के बाद आदि वराह ने लोगों के कल्याण के लिए पृथ्वी लोक में रहने का फैसला किया। भगवान ब्रम्हा के अनुरोध के अनुसार, आदि वराह ने एक रचना का रूप धारण किया और अपने बेहतर आधे (4 हाथों वाले भूदेवी) के साथ कृदचला विमना पर निवास किया और लोगों को ध्यान योग और कर्म योग जैसे ज्ञान और वरदान देने का फैसला किया।

महालक्ष्मी और तिरुपति बालाजी से जुडी कहानी – Mahalaxmi And Tirupati Balaji Story In Hindi

Image Credit : Monisha Anand

कलियुग के प्रारंभ में भी भगवान आदि वराह वेंकटाद्री को छोड़कर अपने स्थायी आराध्य वैकुंठ चले गए। जिससे भगवान ब्रम्हा बहुत चिंतित थे और उन्होंने नारद से कुछ करने को कहा, क्योंकि भगवान ब्रम्हा चाहते थे कि भगवान विष्णु का अवतार पृथ्वी पर हो। उसके बाद नारद गंगा नदी के तट पर गए जहां ऋषियों का समूह भ्रमित था और यह तय नहीं कर पा रहा था कि उनके यज्ञ का फल भगवान, ब्रम्हा, भगवान शिव और भगवान विष्णु में किसे मिलेगा।

इसके समाधान के रूप में नारद ने ऋषि भृगु को तीनों सर्वोच्च देवताओं का परीक्षण करने का विचार दिया। ऋषि भृगु ने प्रत्येक भगवान के पास जाने और उनकी परीक्षा लेने का फैसला किया। लेकिन जब वह भगवान ब्रम्हा और भगवान शिव के पास गए तो उन दोनों ने ऋषि भृगु पर ध्यान नहीं दिया जिससे ऋषि भृगु नाराज हो गए। अंत में वह भगवान विष्णु के पास गए और उन्होंने भी ऋषि भृगु पर ध्यान नहीं दिया, इससे ऋषि क्रोधित हो गए और उन्होंने भगवान विष्णु की छाती पर लात मार दी। क्रोधित होने के बावजूद भगवान विष्णु ने ऋषि के पैर की मालिश की और पूछा कि उन्हें चोट लगी है या नहीं। इसने ऋषि भृगु को जवाब दिया और उन्होंने निर्णय लिया कि यज्ञ का फल हमेशा भगवान विष्णु को समर्पित होगा।

लेकिन भगवान विष्णु की छाती पर लात मारने की इस घटना ने माता लक्ष्मी को क्रोधित कर दिया, वह चाहती थीं कि भगवान विष्णु ऋषि भृगु को दंडित करें, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। परिणामस्वरूप उन्होंने वैकुंठ को छोड़ दिया और तपस्या करने के लिए धरती पर आ गई और करवीरापुरा (जिसे अब महाराष्ट्र में कोल्हापुर के रूप में जाना जाता है) में ध्यान करना शुरू कर दिया।

स्वामी वेंकटेश्वर भगवान के धरती पर अवतरित होने से जुडी कहानी – Story related to Swami Venkateswara’s incarnation on Earth in Hindi 

भगवान् विष्णु माता लक्ष्मी जी के वेकुंड छोड़कर जाने पर बहूत दुखी थी और उन्होंने माता लक्ष्मी की तलाश में एक दिन वैकुंठ को छोड़ दिया और विभिन्न जंगलों और पहाड़ियों में माता लक्ष्मी की खोज में भटकने लगे भटक। लेकिन उसके बाबजूद भी माता लक्ष्मी को खोज नही पा रहे थे और परेशान होकर भगवान विष्णु जी वेंकटाद्री पर्वत में एक चींटी के आश्रय में विश्राम करने लगे।

भगवान विष्णु को परेशान देखकर भगवान शिव और भगवान ब्रम्हा ने भगवान विष्णु की मदद करने का फैसला किया। इसलिए वे गाय और बछड़े का रूप लेकर  माता लक्ष्मी के पास गए। देवी लक्ष्मी ने उन्हें देखा और सत्तारूढ़ चोल राजा को सौंप दिया। लेकिन वह गाय सिर्फ श्रीनिवास को दूध देती थी जिस कारण चरवाहे ने उस गाय को मारने की कोशिश की और भगवान विष्णु जी के रूप श्रीनिवास के चरवाहे पर हमला करके गाय को बचाया। इससे क्रोधित होकर उन्होंने चोल राजा को एक राक्षस के रूप में जन्म लेने का श्राप दे दिया। राजा की दया की प्रार्थना सुनकर, श्रीनिवास ने कहा कि राजा को मोचन तब मिलेगा जब वह अपनी बेटी पद्मावती का विवाह श्रीनिवास के साथ करेंगे।

माना जाता है जब विवाह होने वाला तो देवी लक्ष्मी ने इस बारे में सुना और विष्णु का सामना किया। जिसके बाद भगवान् विष्णु और लक्ष्मी जी एक दूसरे से लिपट गये और तब पत्थर में बदल गए। इसके बाद ब्रह्मा और शिव ने हस्तक्षेप किया और उनके इस अवतार के मुख्य उद्देश्य से अवगत कराया। इसके बाद कलियुग के कष्टों से लोगों को बचाने के लिए भगवान् विष्णु जी ने अपने आपको वेंकटेश्वर रूप को तिरुपति माला पर्वत पर स्थापित किया जिन्हें आज पूरे विश्व में तिरुपति बालाजी के नाम से जाना जाता है।

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तिरुपति बालाजी में बाल दान करने की कहानी – Tirupati Balaji Hair Donation Story In Hindi

तिरुपति बालाजी में बालों को दान करने की परंपरा काफी पुरानी है। हिंदू मान्यता के अनुसार इस दान को देने के पीछे का कारण बताया जाता है कि भगवान वेंकटेश्वर कुबेर से लिए गए ऋण को चुकाते हैं। जिससे एक बेहद रोचक पौराणिक कथा जुडी हुई है, माना जाता है जब देवी लक्ष्मी ने पद्मावती और भगवान विष्णु ने वेंकटेश्वर रूप में अवतार लिया था तब  भगवान वेंकटेश्वर ने पद्मावती के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा। तब एक परंपरा के अनुसार वर को शादी से पहले कन्या के परिवार को एक तरह का शुल्क देना होता था, लेकिन भगवान वेंकटेश्वर ये शुल्क देने में असमर्थ थे, इसलिए उन्होंने धन के देवता कुबेर से कर्ज लेकर पद्मावती रूपी देवी लक्ष्मी से विवाह किया और वचन दिया कि कलयुग के अंत तक वे कुबेर को सारा कर्ज चुका देंगे।

उन्होंने देवी लक्ष्मी की ओर से भी वचन देते हुए कहा कि जो भी भक्त उनका कर्ज लौटाने में उनकी मदद करेंगे देवी लक्ष्मी उन्हें उसका दस गुना ज्यादा धन देंगी। इस तरह तिरुपति जाने वाले और विष्णु भगवान पर आस्था रखने वाले भक्त बालों का दान कर भगवान विष्णु का ऋण चुकाने में उनकी मदद करते हैं। भक्तों का ये भी कहना है कि ऐसा करने से भगवान उनकी हर मनोकामना पूर्ण करते हैं।

तिरुपति बालाजी मंदिर का रहस्य – Tirupati Balaji Rahasya In Hindi

तिरुपति बालाजी मंदिर देश का प्रसिद्ध तीर्थ स्थल होने के साथ साथ कई रहस्यमयी कहानियों घटनायों को गवाह भी है–

  • कहा जाता है मंदिर में स्थापित वेंकटेश्वर स्वामी की दिव्य काली मूर्ति किसी ने बनाई नही है बल्कि यह मूर्ति वही मूर्ति है जो जमीन से स्वयं प्रकट हुई थी इसीलिए कहाँ जाता है, वेंकटेश्वर स्वामी यहाँ खुद विराजित हुए थे।
  • इतना ही नही मंदिर एक और रहस्यमयी घटना बेहद प्रचलित है जिसके बारे में कहा जाता है भगवान वेंकटेश्‍वर की मूर्ति पर लगे बाल असली हैं, जो कभी उलझते नहीं हैं।
  • तिरुपति बालाजी से जुडी एक और रहस्यमयी और दिलचस्प घटना यह है की भगवान वेंकटेश्‍वर की पीठ को कितना भी साफ़ कर लो लेकिन हमेशा वहां गीलापन बना रहता है, और वहा कान लगाने पर समुद्र जैसी ध्वनि सुनी जाती है।

तिरुपति बालाजी से जुडी रोचक बातें – Facts About Tirupati Temple In Hindi

  • क्या आप जानते है तिरुपति बालाजी मंदिर भारत का सबसे अमीर मंदिर है जिसकी बार्षिक संपति लगभग 650 करोड़ रुपये है जिसका एक बड़ा हिस्सा दान किये गये बालों से आता है।
  • भगवान वेंकटेश्‍वर की मूर्ति पर लगे बाल बाल रेशमी, चिकने, उलझन रहित और बिल्कुल असली हैं।
  • तिरुपति बालाजी मंदिर में स्थापित देवताओं की अनुष्ठान पूजा के लिए तिरुपति से लगभग बाईस किलोमीटर दूर स्थित एक अज्ञात गांव से फल – फूल, मक्खन, दूध, मक्खन-दूध, पवित्र पत्ते इत्यादि मंगवाए जाते हैं। इस छोटे से गाँव में आज भी बाहरी व्यक्तियों के प्रवेश पर प्रितिबध है।
  • देखने पर लगता है की तिरुपति बालाजी जी की मूर्ति मंदिर के केंद्र में विराजित है लेकिन तकनीकी रूप से, ऐसा नहीं है। मूर्ति को वास्तव में मंदिर के दाहिने हाथ के कोने में रखा गया है।
  • क्या आप जानते है इस मंदिर के गर्भगृह में जलने में वाले द्वीप कभी बुझते नही है माना जाता है ये द्वीप कई हजार सालों से जल रहे है।

और पढ़े : तिरुपति बालाजी मंदिर टूर यात्रा और इतिहास

इस प्रकार इस लेख में आपने तिरुपति बालाजी की कहानी (Tirupati Balaji Story In Hindi), तिरुपति बालाजी मंदिर का रहस्य (Tirupati Balaji Rahasya In Hindi) और तिरुपति बालाजी मंदिर से जुडी रोचक बातों को जाना है, आपको हमारा ये लेख केसा लगा हमे कमेंट्स में जरूर बतायें।

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