Mount Everest In Hindi : माउंट एवरेस्ट पर्वत दुनिया का सबसे ऊंचा पहाड़ है जिस पर चढ़ाई करने का सपना लाखों लोग देखते हैं। एवरेस्ट का शिखर बहुत ठंडा स्थान है जहां किसी भी जीवन के होने कि संभावना नहीं है। माउंट एवरेस्ट और माउंट एवरेस्ट पर्वतारोहियों पर कई फिल्में और किताबें लिखी जा चुकी हैं और हाल ही में जॉन क्रकौएर (Jon Krakauer) नामक पर्वतारोही ने अपनी किताब में दिल दहला देने वाले एवरेस्ट पर चढ़ाई के अनुभव को साझा किया है। माउंट एवरेस्ट इतना लंबा है कि इसे अंतरिक्ष से भी देखा जा सकता है लेकिन अंतरिक्ष से यह विशाल पहाड़ पृथ्वी गृह के एक छोटे से हिस्से के रूप में ही दिखाई पड़ता है।
एवरेस्ट अनुभवी पर्वतारोहियों के साथ-साथ कम अनुभवी पर्वतारोहियों को भी आकर्षित करता है जो यहां हर साल चढ़ाई पर जाते हैं। माउंट एवरेस्ट से जुड़े कई रोचक वर्ल्ड रिकार्ड्स हैं जैसे कि सबसे कम और सबसे बड़ी उम्र के पर्वतारोही, जोड़ीं में शिखर तक पहुंचने वाले पर्वतारोही, बिना ऑक्सीजन के शिखर तक पहुंचने वाला अकेला पर्वतारोही आदि। आइये जानते है माउंट एवरेस्ट और माउंट एवरेस्ट पर्वतारोहियों के बारे में।
दुनिया का सबसे ऊंचा पर्वत माउंट एवरेस्ट दक्षिणी एशिया में हिमालय के शिखर पर स्तिथ है। यह हिमालय के महालंगुर खंड में नेपाल और तिब्बत स्वायत्त (Autonomous) क्षेत्र के बीच की सीमा पर पड़ता है जो कि 27°59′ N 86°56′ E अक्षांश देशांतर पर स्तिथ है। यह समुद्र तल से 29,3535 फीट (8,850 मीटर) कि ऊंचाई पर है।
माउंट एवरेस्ट को आम तिब्बती भाषा में चोमोलुंगमा कहा जाता है जिसका अर्थ है “दुनिया की देवी मां” या “घाटी की देवी”। इसका संस्कृत में नाम सागरमाथा है जिसका अर्थ “स्वर्ग का शिखर” है। पहले माउंट एवरेस्ट को पृथ्वी की सतह पर उच्चतम बिंदु के रूप में पहचाना नहीं गया था। सन 1852 में, भारत के सरकारी सर्वेक्षण ने माउंट एवरेस्ट के सबसे ऊंचें स्थल होने के तथ्य की स्थापना की। पहले माउंट एवरेस्ट को पीक एक्सवी (Peak XV) के रूप में जाना जाता था और 1830 से 1843 तक भारत के ब्रिटिश सर्वेक्षक रहे जनरल सर जॉर्ज एवरेस्ट के नाम पर पीक एक्सवी (Peak XV) का नाम बदल कर माउंट एवरेस्ट रखा गया था।
माउंट एवरेस्ट पर्वत के शिखर की सटीक ऊंचाई बर्फ के स्तर, गुरुत्वाकर्षण विचलन (gravity deviation), और हल्के अपवर्तन (gravity deviation) पर निर्भर है इसलिए इसकी सटीक हाईट कहना मुश्किल है। 1952 और 1954 के बीच भारत के सर्वेक्षण द्वारा एवरेस्ट कि ऊचाई को 29,2828 फीट (8,848 मीटर), स्थापित किया गया था और यह व्यापक रूप से स्वीकार्य हो गया था। अधिकांश शोधकर्ताओं, मैपिंग एजेंसियों और प्रकाशकों द्वारा सन 1999 तक इसी जानकारी का उपयोग किया गया था।
वर्ष 1999 के अंत होने पर कई देशों और एजेंसिओं ने पहाड़ की ऊंचाई को फिर से मापने का प्रयास किया था। सन 1999 में अमेरिकी नेशनल ज्योग्राफिक सोसायटी और अन्य ने एक अमेरिकी सर्वेक्षण में जीपीएस उपकरण का उपयोग करके पहाड़ की सटीक उंचाई को माप लिया था जो कि 29,3535 फीट (8,850 मीटर), प्लस या माइनस 6.5 फीट (2 मीटर) थी। इस खोज को समाज द्वारा और भूगर्भीय और कार्टोग्राफी के क्षेत्रों में विभिन्न विशेषज्ञों द्वारा स्वीकार कर लिया गया था।
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माउंट एवरेस्ट कई महत्वपूर्ण चोटियों से घिरा हुआ है, जो कि इस प्रकार हैं –
माउंट एवरेस्ट पर्वतारोहियों न्यू ज़ीलैंडर एडमंड हिलेरी और शेरपा टेनज़िंग नोर्गे ने 1953 में माउंट एवरेस्ट के शिखर पर पहुंचने वाले पहले व्यक्ति थे। वर्ष 2017 तक, 7,600 से भी अधिक लोग इस पहाड़ के शीर्ष पर पहुंच चुके हैं, और लगभग 300 लोग इसकी चढ़ाई करते समय अपनी जान गवां चुके हैं।
हिमालय के पर्वतीय श्रंखलायें पृथ्वी की टेक्टोनिक गतिविधियों (प्लेट विवर्तन) के कारण समुद्र से ऊपर की ओर बढ़ीं और पहाड़ों के रूप में स्थापित हो गयीं। 40 से 50 मिलियन वर्ष पहले भारत और ऑस्ट्रेलिया के प्लेट टेक्टोनिक गतिविधियों के कारण दक्षिण से उत्तर की तरफ चली थीं और यूरेशियन प्लेट के साथ टक्कर होने के बाद के यह प्लेटें नीचे कि ओर मुड़ गयीं। हिमालय 25 से 30 मिलियन वर्ष पहले बढ़ने लगा, और ग्रेट हिमालय ने प्लेस्टोसेन एपोक (Pleistocene Epoch) के समय लगभग 2,600,000 से 11,700 साल पहले अपना वर्तमान रूप लेना शुरू कर दिया था। एवरेस्ट और इसके आसपास के चोटियां एक बड़े पर्वत द्रव्यमान का हिस्सा है जो हिमालय के टेक्टोनिक कार्रवाई का केंद्र बिंदु या गाँठ है। 1990 के उत्तरार्ध में एवरेस्ट पर स्तिथ ग्लोबल पोजीशनिंग उपकरणों (global positioning instruments) की जानकारी से संकेत मिलता है कि यह पर्वत पूर्वोत्तर में हर साल कुछ इंच आगे बढ़ता रहता है और प्रत्येक वर्ष इसमें एक इंच ऊचाई की बढ़त होती है।
एवरेस्ट का वातावरण हमेशा से जीवित चीजों के लिए हानिकारक रहा है। यहां शिखर पर जुलाई के समय में औसतन केवल -2 डिग्री फारेनहाइट (-19 डिग्री सेल्सियस) रहता है, इसके अलावा जनवरी में ऐवरेस्ट में सबसे ठंडा महीना होता है और इस समय औसत तापमान -33 डिग्री फारेनहाइट (-36 डिग्री सेल्सियस) रहता है और यह -76 डिग्री फारेनहाइट (-60 डिग्री सेल्सियस) तक भी गिर सकता है। माउंट एवरेस्ट में अचानक से तूफान आ सकते हैं, और तापमान अप्रत्याशित रूप से कम हो सकता है। माउंट एवरेस्ट की चोटी इतनी ऊंची है कि यह जेट स्ट्रीम की निचली सीमा तक पहुंच जाती है, और यह करीब 100 मील (160 किमी) प्रति घंटे की निरंतर हवाओं में रहती है। यहां पर बर्फ गर्मियों में मई से मध्य सितंबर तक के दौरान गिरती है। एवरेस्ट पर चढ़ाई करने वाले पर्वतारोहियों के लिए फ्रोस्टबाइट (frostbite) का जोखिम सबसे अधिक होता है।
माउंट एवरेस्ट के उच्चतम हिस्से जीवन को सपोर्ट नहीं करते हैं लेकिन यहां के निचले क्षेत्र में बर्च, जूनिपर, नीली पाइंस, फिर्स, बांस और रोडोडेंड्रॉन पौधे पाए जा सकते हैं। माउंट पर्वत की 18,690 फीट (5,750 मीटर) की ऊचाई से ऊपर जाने पर कोई भी पौधा दिखाई नहीं देता है।
माउंट एवरेस्ट पर्वत के निचले हिस्सों में वन्यजीवों में मस्क हिरण, जंगली याक, लाल पांडा, बर्फ तेंदुए और हिमालयी काले भालू कम ऊंचाई में रहते हैं। हिमालयी थार, हिरण, लंगूर बंदर, खरगोश, पर्वत लोमड़ी, मार्टन और हिमालयी भेड़िये भी छोटी संख्यां में मौजूद हैं।
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माउंट एवरेस्ट रॉक (पत्थर) की कई परतों से बना है जो आपस में मुड़ी हुई हैं। माउंट एवरेस्ट पर्वत की निचली ऊंचाई पर चट्टानों में अग्निमय सूक्ष्म जीवों (metamorphic schists) और नीस (gneisses) हैं, जो अग्निमय ग्रेनाइट्स (igneous granites) के ऊपर मौजूद हैं। पहाड़ के ऊपरी हिस्से में समुद्री तल के तलछट चट्टान (sedimentary rocks) पाए जाते हैं जो कि दो प्लेटों की टक्कर के बाद बंद हुए प्राचीन समय के टेथिस सागर के अवशेष हैं। एक येलो बैंड (Yellow Band), जो कि चूने के पत्थर का गठन ( limestone formation) है वह पिरामिड के आकर के इस पहाड़ के शिखर के ठीक नीचे दिखाई देता है।
एवरेस्ट एक तीन तरफा पिरामिड की तरह दिखाई देता है। इसकी तीन तरफों को आम तौर पर फेस कहा जाता है, और जिस रेखा से ये दो फेस मिलते हैं उसे रिज के रूप में जाना जाता है। पहाड़ दो फेसों में तिब्बत और एक फेस में नेपाल कि ओर फैला हुआ है। इसे अंतरिक्ष से भी देखा जा सकता है।
एवरेस्ट का शिखर पत्थर जैसी सख्त बर्फ से ढका हुआ है जो नरम बर्फ की एक परत के रूप में परिवर्तित होता रहता है और इसमें सालाना 5-20 फीट (1.5-6 मीटर) तक का उतार-चढ़ाव होता है, मानसून के बाद सितंबर में बर्फ का स्तर सबसे ज्यादा होता है, और उत्तर-पश्चिमी की सर्द हवाओं के समाप्त होने के बाद मई में इसमें सबसे कम बदलाव होता है। माउंट एवरेस्ट पर्वत का शिखर और ऊपरी ढलान, पृथ्वी के वायुमंडल में इतनी ऊंची ऊंचाई पर स्तिथ हैं कि यहां सांस लेने के लिए ऑक्सीजन समुद्र तल कि तुलना में एक-तिहाई मात्रा में मौजूद है। ऑक्सीजन की कमी, शक्तिशाली सर्द हवाओं, और बेहद ठंडे तापमान कि वजह से इस पर किसी भी पौधे या पशु के जीवन के विकास का होना नामुमकिन है।
एवरेस्ट की ढलानें ग्लेशियर से ढकीं हुईं हैं। माउंट एवरेस्ट पर्वत के पूर्व में कंगशुंग ग्लेशियर है; पूर्व, मध्य, और पश्चिम में रोंगबुक (रोंगपू) ग्लेशियर है। इसके अलावा एवरेस्ट पर पुमोरी ग्लेशियर और खुंबू ग्लेशियर मौजूद हैं। एवरेस्ट और अन्य उच्च हिमालयी चोटियों के भारी और निरंतर क्षरण के पीछे ग्लेशियल एक्शन प्राथमिक रूप से जिम्मेदार रहा है।
एवरेस्ट इतना लंबा है और इसका वातावरण इतना गंभीर है कि यह इंसानों के रहने योग्य नहीं है, लेकिन माउंट एवरेस्ट पर्वत के नीचे कि घाटियों में तिब्बती भाषी लोगों रहते हैं। इनमें से उल्लेखनीय शेरपा हैं, जो नेपाल की खुंबू घाटी और अन्य स्थानों में लगभग 14,000 फीट (4,270 मीटर) तक की ऊंचाई पर स्तिथ गांवों में रहते हैं।
दुनिया के सबसे ऊंचे पहाड़ों के नजदीक में रहते हुए, शेरपा परंपरागत रूप से हिमालय को एक पवित्र बौद्ध मठ के रूप में मानते हैं जहां वे पहाड़ कि ढलानों पर प्रार्थना के झंडे लगते हैं, और वे घाटी के वन्यजीवन के लिए अभयारण्यों का निर्माण करते हैं जिसमें कस्तूरी हिरण भी शामिल है।
माउंट एवरेस्ट पर्वतारोहियों की सूची में निम्न नाम शामिल हैं:
माउंट एवरेस्ट जाने की लागत लगभग 30000 – 45000 अमेरिकी डॉलर्स है।
माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने में लगभग दो महीने लग जाते हैं।
आप किसी भी उम्र में एवरेस्ट पर जा सकते हैं।
माउंट एवरेस्ट पर्वत को चढ़ने कि ट्रेनिंग दी जाती है और आप ऑक्सीजन के साथ या बिना उसके वहां जा सकते हैं। आम तौर पहाड़ में शेरपा नामक गाइड की सहायता से जाया जाता है। आपको मेडिकल एड, संचार, चढ़ाई के उपकरण, सर्वाइवल टिप्स आदि कि जानकारी माउंट एवरेस्ट कि वेबसाइट पर मिल सकती है।
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