Khatu Shyam Ji Story In Hindi : खाटू श्याम जी का मंदिर राजस्थान में जयपुर के सीकर जिले में स्थित है। खाटू श्याम जी का यहाँ मंदिर भारत देश में कृष्ण भगवान के मंदिरों में सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है, जिन्हें कलयुग का सबसे मशहूर भगवान माना जाता है। हिंदू धर्म के मुताबिक खाटू शम जी को कलयुग में कृष्ण का अवतार माना गया है। खाटू श्याम मंदिर के बारे में बताया जाता है कि खाटू श्याम जी का ये मंदिर महाभारत काल में बना था, इस मंदिर का इतिहास भी महाभारत की लड़ाई से भी जुड़ा है। इसी बजह से देश भर के श्रद्धालु और पर्यटक खाटू श्याम जी की कहानी और उनकी जीवन कथा को जानने के बारे में दिलचस्पी रखते है यदि आप भी खाटू श्याम जी की जीवन कथा को जानने के लिए उत्साहित है तो इस लेख को पूरा अवश्य पढ़े जिसमे आप आपको खाटू श्याम जी की कहानी और खाटू श्याम के चमत्कार को जानने वाले है –
हिन्दू पौराणिक कथायों के अनुसार खाटू श्याम जी का जन्म या बर्बरीक का जन्म महभारत काल के दौरान हुआ था वे गदाधारी भीम और नाग कन्या मौरवी के पुत्र थे।
भारत के सबसे प्रसिद्ध कृष्ण मंदिरों में से एक खाटू श्याम जी का मंदिर मुख्य रूप से बर्बरीक नामक महाभारत के दानव को समर्पित है। इसीलिए खाटू श्याम जी की जीवन कथा की शरुआत महाभारत से शुरू होती है। आपको बता दें कि पहले खाटू श्याम जी का नाम बर्बरीक था। वे बलवान गदाधारी भीम और नाग कन्या मौरवी के पुत्र थे। बचपन से ही उनमें वीर योद्धा बनने के सभी गुण थे। उन्होंने युद्ध करने की कला अपनी मां और श्रीकृष्ण से सीखी थी। उन्होंने भगवान शिव की घोर तपस्या करके तीन बाण प्राप्त किए। ये तीनों बाण उन्हें तीनों लोकों में विजयी बनाने के लिए काफी थे। एक बार जब उन्हें पता चला कि कौरवों और पांडवों के बीच युद्ध होने वाला है, तो उन्होंने भी युद्ध में शामिल होने की इच्छा जताई। इसके लिए जब वे अपनी मां के पास आशीर्वाद लेने पहुंचे तो उन्होंने हारे हुए पक्ष की ओर से युद्ध लड़ने का वचन दिया।
जब उन्हें बर्बरीक के इस वचन का पता चला तो वे ब्राह्मण का रूप धारण कर उनका मजाक उड़ाने लगे और कहने लगे कि वे तीन बाण से क्या युद्ध लड़ेंगे। तब बर्बरीक ने कहा कि उनका एक बाण ही शत्रु सेना को मारने के लिए काफी है, ऐसे में अगर उन्होंने तीन तीरों का इस्तेमाल किया तो ब्रह्मांड का विनाश हो जाएगा। ये जानकर भगवान श्रीकृष्ण ने बर्बरीक को चुनौती दी कि पीपल के इन सभी पत्तों को वेधकर बताओ। बर्बरीक ने चुनौती स्वीकार की। उनकी परीक्षा लेने के लिए श्रीकृष्ण ने एक पत्ती अपने पैरों के नीचे दबा ली। बर्बरीक ने एक बाण से सभी पत्तियों पर निशान कर दिए और श्रीकृष्ण के पैरों के पास चक्कर लगाने लगे और श्रीकृष्ण से कहा कि एक पत्ता आपके पैर के नीचे दबा हुआ है, अपने पैर हटा लीजिए वरना आपके पैरों पर चोट लग जाएगी।
इसके बाद श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से पूछा कि वे युद्ध में किसकी तरफ से शामिल होंगे। बर्बरीक ने जवाब दिया कि जो पक्ष हारेगा वे उनकी तरफ से युद्ध लड़ेंगे। श्रीकृष्ण को ज्ञात था कि युद्ध में हार तो कौरवों की होनी है, ऐसे में अगर बर्बरीक ने उनके साथ यद्ध लड़ा तो गलत परिणाम सामने आ सकते हैं। उन्होंने बर्बरीक को रोकने के लिए उनसे दान की मांग व्यक्त की। दान में उन्होंने बर्बरीक का सिर मांगा। बर्बरीक ने कहा कि मैं दान जरूर दूंगा। उन्होंने श्रीकृष्ण के चरणों में अपना सिर काट कर रख दिया और उनसे आखिरी इच्छा व्यक्त की। उन्होंने कहा कि वे महाभारत का युद्ध अंत तक अपनी आंखों से देखना चाहते हैं। श्रीकृष्ण ने उनकी इच्छा स्वीकार करते हुए बर्बरीक के सिर को युद्ध वाली जगह पर एक पहाड़ी के ऊपर रख दिया जहां से बर्बरीक ने अपनी आंखों से अंत तक महाभारत युद्ध देखा। युद्ध के बाद पांडव लड़ने लगे कि युद्ध में जीत का श्रेय किसको जाता है। तब बर्बरीक ने कहा कि श्रीकृष्ण के कारण वे युद्ध जीते हैं। श्रीकृष्ण बर्बरीक के इस बलिदान से बहुत प्रसन्न हुए और उन्हें कलयुग में श्याम के नाम से पूजे जाने का अनमोल वचन दिया।
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महाभारत युद्ध के बाद बर्बरीक का सिर खाटू गांव में दफनाया गया था इसलिए उन्हें खाटू श्याम बाबा कहा जाता है। एक बार एक गांव में एक गाय अपने स्तनों से इस जगह पर दूध बहा रही थी, जब लोगों ने देखा तो आश्चर्य किया। जब इस जगह को खोदा गया, तो बर्बरीक का कटा हुआ सिर मिला। इस सिर को एक ब्राह्मण को सौंप दिया गया। वह उसकी रोज पूजा करने लगा। एक दिन खाटू नगर के राजा रूपसिंह को स्वप्न में मंदिर का निर्माण कर बर्बरीक का सिर मंदिर में स्थपित करने के लिए कहा गया। कार्तिक महीने की एकादशी को बर्बरीक का शीश मंदिर में सुशोभित किया गया, जिसे बाबा खाटू श्याम जी के नाम से जाना जाने लगा, तब से यह मंदिर प्रसिद्ध हो गया।
भारत देश के सबसे पूज्यनीय देवी देवतायों में से एक खाटू श्याम जी की हिंदू भक्तों में बहुत मान्यता है। जहाँ भारत देश ही नही बल्कि विदेशो से भी पर्यटक और श्रद्धालु खाटू श्याम के चमत्कार देखने और उनके दर्शन के लिए यहाँ आते है। आज के समय खाटू श्याम के चमत्कार पुरे देश में चर्चित है मान्यता है की श्याम बाबा से जो भी मांगों, वो लाखों-करोड़ों बार देते हैं, यही वजह है कि खाटू श्याम जी को लखदातार के नाम से भी जाना जाता है। यही वजह है कि आज खाटू श्यामजी देश में करोड़ों भक्तों द्वारा पूजे जाते हैं।
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यहाँ हमने खाटू श्याम जी की जीवनी या उनकी जीवन कथा को तो जान लिया लेकिन अब एक यह प्रश्न और बचता है की खाटू श्यामकुंड जी के मंदिर की उत्त्पत्ति कलयुग में केसे हुई या फिर खाटू श्यामकुंड जी के मंदिर का निर्माण किसने करवाया। यदि आप भी इसे बारे में सोच रहे है तो हम आपको बता दे जयपुर के सीकर जिले में स्थित प्रसिद्ध खाटू श्याम जी का मंदिर का निर्माण खाटू गांव के शासक राजा रूपसिंह चौहान और उनकी पत्नी नर्मदा कंवर द्वारा सन् 1027 में करवाया गया था। पौराणिक कथा के अनुसार एक बार राजा रूपसिंह को सपना आया, जिसमें उन्हें खाटू के कुंड में श्याम का सिर मिलने के बाद उनका मंदिर बनवाने के लिए कहा गया था। तब राजा रूपसिंह ने खाटू गांव में खाटू श्याम जी के नाम से मंदिर का निर्माण करवाया। जबकि 1720 में एक मशहूर दीवान अभयसिंह ने इसका पुर्ननिर्माण कराया।
खाटू श्याम जी के मंदिर के पास पवित्र तालाब है जिसका नाम है श्यामकुंड। माना जाता है कि इस कुंड में नहाने से मनुष्य के सभी रोग ठीक हो जाते हैं और व्यक्ति स्वस्थ हो जाता है इसीलिए प्र्तिबर्ष लाखो श्रद्धालु इस पवित्र कुंड में स्नान करते है, खासतौर से वार्षिक फाल्गुन मेले के दौरान यहां डुबकी लगाने की बहुत मान्यता है।
प्राचीन प्रचलित कथायों के अनुसार माना जाता है खाटू श्यामकुंड का निर्माण या उत्पत्ति खुदाई के दौरान हुई थी। जी हाँ एक बार की बात है लगभग 1100 ईस्वी के आसपास रूपसिंह चौहान की पत्नी नर्मदा कंवर को एक स्वप्न आया था जिसमे उन्हें जमीन के अन्दर गड़ी एक मूर्ति दिखाई दी थी जिसके बाद उस स्थान की खुदाई की गयी थी जिससे वास्तव में खाटू श्याम जी के सिर को निकाला गया था। उसी खुदाई से एक कुंड का निर्माण हुआ था जिसे खाटू श्यामकुंड के नाम से जाना जाता है।
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इस लेख में आपने खाटू श्याम जी की जीवन कथा, खाटू श्याम के चमत्कार, खाटू श्यामकुंड जी के मंदिर का इतिहास, खाटू श्यामकुंड का इतिहास सहित अन्य जानकारी को जाना है आपको हमारा यह लेख केसा लगा हमे कमेंट्स में बताना ना भूलें।
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