Jhansi Fort Information In Hindi : झाँसी का किला भारत के उत्तर-प्रदेश राज्य के झाँसी शहर में स्थित है। सन 1613 में झांसी के किले का निर्माण ओरछा के राजा बीर सिंह जूदेव ने करवाया था। यह किला एक चट्टानी पहाड़ी के ऊपर स्थित है। इस किले के चारो ओर झाँसी शहर बसा हुआ है। झाँसी का किला सन 1857 की क्रांति के दौरान सिपाही विद्रोह के मुख्य केंद्रों में से एक माना जाता है। इस किले में एक कड़क बिजली टैंक रखा हुआ है, जो संग्रहालय के साथ-साथ बुंदेलखंड की कलाकृतियों और मूर्तिकलाओं का अच्छा संग्रह प्रस्तुत करता है। सबसे ज्यादा इस किले को झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई के लिए जाना जाता है। जिन्होंने अंग्रेजो के साथ लड़ते हुए 18 जून 1858 (29 वर्ष की उम्र में) को अपने प्राणों का वलिदान कर दिया था। अगर आप झाँसी का किला घूमने की योजना बना रहे है तो हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से झाँसी के किले के बारे में सारी जानकारी उपलब्ध कराने जा रहे है इसलिए आप इस आर्टिकल को पूरा पढ़े।
झांसी के किले का निर्माण सन 1613 में ओरछा राज्य के शासक वीर सिंह जूदेव बुंदेला ने करवाया था। झाँसी का किला बुंदेलों के गढ़ों में से एक है। सन 1728 में मोहम्मद खान बंगश ने महाराज छत्रसाल को पराजित करने के इरादे से उन पर हमला किया। इस युद्ध में पेशवा बाजीराव ने महाराज छत्रसाल की सहायता मुगल सेना को पराजित करने के लिए की। इसी का आभार प्रकट करने के लिए महाराज छत्रसाल ने निशानी के रूप में अपने राज्य का एक हिस्सा पेश किया। सन 1766 से 1769 तक विश्वास राव लक्ष्मण ने झांसी के सूबेदार के रूप में काम किया। इसके बाद रघुनाथ राव नेवलकर (दिवतीय) को झाँसी का सूबेदार नियुक्त किया गया। उन्होंने झाँसी राज्य के राजस्व में वृद्धि, महालक्ष्मी मंदिर और रघुनाथ मंदिर का निर्माण करवाया।
राव की मृत्यु के बाद उनके पोते रामचंद्र राव के हाथो में झासी की सत्ता आ गयी और उनका कार्यकाल 1835 में उनकी मृत्यु के साथ ही समाप्त हो गया। उनके उत्तराधिकारी रघुनाथ राव (तृतीय) थे जिनकी मृत्यु सन 1838 में हो गयी। उनके अक्षम प्रशासन ने झाँसी को बहुत ख़राब वित्तीय स्थिति में लाके खड़ा कर दिया था। इसके बाद ब्रिटिश सरकार ने गंगाधर राव को झांसी के राजा के रूप में स्वीकार कर लिया। सन 1842 में राजा गंगाधर राव ने मणिकर्णिका (मनु) से शादी की जो बाद में रानी लक्ष्मी बाई के नाम से जानी गयी। लक्ष्मी बाई ने एक पुत्र को जन्म दिया। जिसे दामोदर राव नाम से संबोधित किया गया। लेकिन चार महीने के अन्तराल के बाद उनकी मृत्यु हो गई। महाराज अपने बेटे की मृत्यु के पश्चात कुछ उदास रहने लगे और इसके बाद धीरे-धीरे उनका स्वास्थ भी ख़राब रहने लगा। इन सभी परिस्थियों को देखते हुए उन्होंने झाँसी राज्य की मंगलकामना और झाँसी के उतराधिकारी के लिए अपने चचरे भाई के बेटे आनंद राव को गोद लिया जिसका नाम उन्होंने दामोदर राव रखा और इसकी सूचना ब्रिटिश गवर्नमेंट को एक पत्र के माध्यम से दी नवंबर 1853 में महाराज की मृत्यु के पश्चात ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने गवर्नर-जनरल लॉर्ड डलहौजी के अधीन “डॉक्ट्रिन ऑफ़ लैप्स” कानून लागू किया जिसके मुताविक दामोदर राव (आनंद राव) के सिंहासन के दावे को खारिज कर दिया गया।
लक्ष्मी बाई को 60,000 रूपये वार्षिक पेंशन देने के साथ-साथ महल छोड़ने का आदेश दिया गया। मार्च-अप्रैल 1858 में कैप्टेन हयूरोज की कंपनी बलों ने किले को चारो तरफ से घेर लिया और 4 अप्रैल 1858 को किले पर कब्जा कर लिया। सन 1861 में ब्रिटिश सरकार ने झांसी किला और झांसी शहर को ग्वालियर के महाराज जियाजी राव सिंधिया के हवाले कर दिया। लेकिन बाद में अंग्रेजों ने 1868 में ग्वालियर से झांसी वापस ले लिया।
प्राचीन काल के दौरान इस किले की दीवार झाँसी नगर को पूरी तरह से घेरती थी। इस दीवार में दस द्वार थे। इनमे से कई द्वार समय के साथ-साथ विलुप्त होते चले गए हैं लेकिन कुछ अभी भी खड़े हुए हैं। गेट के पास के स्थान अभी भी गेट के नाम से लोकप्रिय हैं।
पहाड़ी क्षेत्र में खड़े झाँसी के किले से पता चलता है कि किले का निर्माण की उत्तर भारतीय शैली और दक्षिण भारतीय शैली से कैसे भिन्न है। इस किले की ग्रेनाइट दीवारें 16 से 20 फीट मोटी हैं और दक्षिण की तरफ शहर की दीवारों से मिलती हैं। किले का दक्षिण भाग लगभग लंबवत है। किले में प्रवेश करने के लिए 10 द्वार है। इनमे से उन्नाव गेट, ओरछा गेट, बड़गांव गेट, लक्ष्मी गेट, खंडेराव गेट, दतिया दरवाजा, सागर गेट, सैनिक गेट और चांद गेट हैं। इस किले में उल्लेखनीय और दर्शनीय जगह शिव मंदिर, प्रवेश द्वार पर गणेश मंदिर और 1857 के विद्रोह में इस्तेमाल की जाने वाली कड़क बीजली तोप है। किले के पास में ही रानी महल है जिसे 19वीं शताब्दी में निर्मित किया गया था और वर्तमान में यहा एक पुरातात्विक संग्रहालय है। यह किला 15 एकड़ के एरिया में फैला हुआ है।
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साउंड एंड लाइट शो झाँसी किले में आयोजित किया जाता है और यह रानी लक्ष्मी बाई के जीवन और 1857 में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम पर आधारित है।
स्थान – झाँसी का किला
फीस – रु 50 / – (भारतीय), रु 300 / – (विदेशी)
समय – शाम 7.45 बजे। हिंदी (ग्रीष्म ऋतु में) (अप्रैल से ऑक्टेबर)
समय – रात 8.45 बजे। अंग्रेज़ी
समय – शाम 6.30 बजे। हिंदी (सर्दियों में) (नवंबर से मार्च)
समय – शाम 7.30 बजे। अंग्रेजी (नवंबर से मार्च)
झाँसी का हर्बल गार्डन बहुत ही सुन्दर जगह है इस स्थान पर 20000 प्रजातियों के अलग-अलग पेड़-पौधे लगे हुए है। जो यहा आने वाले सभी उम्र के पर्यटकों के लिए सुखद अनुभव का एहसास कराते है। सेल्फी लेने के लिए यह स्थान युवाओं के दरमयान बहुत ही लोकप्रिय है। यदि आप कभी झाँसी जाए तो हर्बल गार्डन की सैर करना बिल्कुल न भूले। टाइगर प्रॉल के रूप में लोकप्रिय यह स्थान अपने आप को फिर से जीवंत करने के लिए एक सुखद अनुभव है।
रानी महल भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के झाँसी शहर में एक शाही महल है। इस महल का निर्माण नेवलकर परिवार के रघुनाथ दिवतीय द्वारा किया गया था। इसी महल को बाद में रानी लक्ष्मीबाई के लिए एक निवास स्थान बनाया गया। वास्तुकला की दृष्टि से यह महल एक सपाट छत वाली दो मंजिला इमारत है। जिसमें एक कुआँ और एक फव्वारा है। महल में छह हाल, समानांतर गलियारा और कई छोटे-छोटे कमरे हैं।
रानी लक्ष्मी बाई पार्क यहा के स्थानीय निवासियों के साथ-साथ यहा आने वाले पर्यटकों की भी पसंदीदा जगह बन चुकी है। शाम होने के साथ ही यह पार्क रंग-बिरंगी रौशनीयों से जगमगा जाता है। जिससे इस स्थान पर परम सौंदर्य की अनुभूति होती है। रानी लक्ष्मी बाई पार्क में अपने प्रियजनों और परिवार के साथ जाने के लिए एक आदर्श स्थान है।
यह छत्री झाँसी के महाराजा गंगाधर राव को समर्पित है। गंगाधर राव झाँसी के राजा होने के साथ-साथ लक्ष्मी बाई के पति भी थे। इस छत्री का निर्माण उनकी पत्नी लक्ष्मी बाई के द्वारा ही करवाया गया था। महाराज गंगाधर राव की छत्री झाँसी के महत्वपूर्ण स्मारकों में से एक है और यह छत्री झाँसी आने वाले पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बनी हुयी है।
झाँसी का महालक्ष्मी मंदिर यहा का एक प्राचीन मंदिर है जो धन की देवी महालक्ष्मी को समर्पित है। महालक्ष्मी मंदिर झाँसी के अन्य पर्यटक स्थलों में से एक महत्वपूर्ण स्थल है। झाँसी का यह पवित्र मंदिर पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता हैं। यदि आप झाँसी घूमने जाते है तो यहाँ के महालक्ष्मी मंदिर में जाकर देवी माँ के दर्शन करना भूले।
यदि आप झाँसी का किला घूमने की योजना बना रहे है तो हम आपको बता दे कि यहा घूमने के लिए सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च तक माना जाता है। क्योंकि झाँसी शहर घूमने के लिए यह मौसम शीतल और अनुकूल होता है और आप पूरा झाँसी शहर बिना किसी परेशानी के घूम कर आनंद उठा सकते है। जबकि मार्च के बाद गर्मी का मौसम शुरू हो जाता है और इस मौसम में यहा गर्म हवाए और धूल की वजह से आपको असुविधा का सामना करना पड़ सकता है। जबकि बारिश के मौसम में झाँसी शहर में अधिक वर्षा देखने को मिलती है। जिसकी वजह से आप झाँसी शहर के प्रसिद्ध स्थानों का आनंद उठाने से वंचित रह सकते है।
झाँसी के किले में आप रोजाना सुबह 7 बजे से शाम के 6 बजे तक घूमने जा सकते है।
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यदि आप झाँसी का किला घूमने का मन बना चुके है तो हम आपको बता दें कि यहाँ घूमने के लिए कुछ शुल्क अदा करनी होती है जिसकी जानकारी हम आपको देते है-
झाँसी का किला पहुँचने के लिए आप फ्लाइट, ट्रेन, बस और अपने व्यक्तिगत साधन में से किसी का भी चुनाव अपनी सुविदानुसार कर सकते है। झाँसी किला पहुँच कर आप इस पर्यटन स्थल की खूबसूरती और इस किले से जुड़े रोचक तथ्यों का आनंद उठा सकते है।
यदि आप हवाई मार्ग से झांसी पहुंचना चाहते है तो हम आपको बता दे कि ग्वालियर हवाई अड्डे के माध्यम से आप झाँसी पहुँच सकते है। यह हवाई अड्डा मुख्य शहर झाँसी से लगभग 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। पर्यटक ग्वालियर हवाई अड्डे से झांसी पहुँचने के लिए टैक्सी सेवा का लाभ उठा सकते है। अंतर्राष्ट्रीय यात्री दिल्ली हवाई अड्डे से कनेक्टिंग फ्लाइट की सुविधा ले सकते हैं। ग्वालियर हवाई अड्डा भारत के प्रमुख शहरों जैसे भोपाल, वाराणसी, आगरा, मुंबई और जयपुर आदि से नियमित उड़ानों के माध्यम से जुड़ा हुआ है।
ट्रेन के माध्यम से झाँसी पहुँचना काफी आरामदायक और आसान है। झांसी जंक्शन रेलवे स्टेशन भारत के प्रमुख शहरों के साथ लगातार ट्रेनों के माध्यम से जुड़ा हुआ है और दिल्ली-मुंबई रेलवे मार्ग पर स्थित है। आप रेलवे स्टेशन से यहाँ चलने वाले स्थानीय साधनों के माध्यम से किला तक पहुँच सकते है।
यदि आपने झांसी की यात्रा के लिए सड़क मार्ग को चुना है तो बता दें कि झाँसी शहर सड़क मार्ग के माध्यम से पहुंचना बहुत ही आसान है। झाँसी का सफ़र तय करने और घूमने के लिए आप राज्य परिवहन की बस या टैक्सी की सुविधा ले सकते हैं। झाँसी से ग्वालियर की दूरी लगभग 102 किमी, माधोगढ़ से 139 किमी और आगरा से 233 किमी है। आप झाँसी के इन तमाम बस स्टॉप- झांसी का किला टर्मिनल बस स्टॉप, बड़ा बाजार टर्मिनल बस स्टॉप, गंगा मार्केट मिनर्वा क्रॉसिंग बस स्टॉप और खंडेराव गेट बस स्टॉप पर उतर कर यहा के स्थानीय साधनों की मदद से किला पहुँच जाएंगे।
यदि आप झाँसी का किला घूमने जा रहे है तो हम आपको बता दें कि झाँसी शहर में लो-बजट से लेकर हाई-बजट तक की होटल मौजूद है। तो आप अपनी सुविदा और बजट के अनुसार किसी भी होटल का चुनाव कर सकते है ओर झाँसी शहर में जब तक आपका मन करे रुक सकते है।
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