Jantar Mantar Ujjain In Hindi, जंतर मंतर उज्जैन में स्थित वास्तु चमत्कार है जिसे 17 वीं शताब्दी में स्थापित किया गया था। आपको बता दें कि जंतर मंतर को वेद शाला भी कहा जाता है जो भारत में निर्मित पांच वेधशालाओं (जयपुर, दिल्ली, उज्जैन, मथुरा, और वाराणसी) में से एक है और इन समूह की सबसे पहली वेद शाला का निर्माण दिल्ली में किया गया था। उज्जैन के जंतर मंतर का निर्माण महाराजा जय सिंह ने 1719 में अपने शोध और अध्ययन के साथ हिंदू विद्वानों और ज्योतिषियों की मदद के लिए शुरू किया था। जंतर मंतर, महान परिश्रम का एक परिणाम है जिसने न सिर्फ पुराने समय में खगोलविदों के लिए अनुसंधान केंद्र के रूप में कार्य किया।
बल्कि यह आज भी अपने खगोलीय और साथ ही पर्यटन उद्देश्य के लिए कार्य करता है। अगर आप उज्जैन के जंतर मंतर के बारे में और जानना चाहते हैं तो इस लेख को अवश्य पढ़ें, जिसमे हम आपको उज्जैन के जंतर मंतर के बारे में पूरी जानकारी दे रहें हैं।
उज्जैन में वेधशाला को खगोलीय तालिकाओं और सूर्य, ग्रहों और चंद्रमा की गतिविधियों की भविष्यवाणी के लिए बनाया गया था। राजा जय सिंह की खगोल विज्ञान में गहरी रुचि थी और उन्होंने खगोल-गणित से संबंधित कई पुस्तकों का अध्ययन किया। जय सिंह ने उज्जैन में वेधशाला की स्थापना के लिए महान योगदान दिया है और बाद में 1923 में इस वेधशाला का माधवराव सिंधिया द्वारा बहाल किया गया था। उज्जैन जंतर मंतर में जय सिंह द्वारा लगाए गए वाद्ययंत्रों में सन-डेल, नादिवलययंत्र, दिगंशयंत्र और पारगमन यंत्र शामिल हैं। इस वेधशाला में एक स्वचालित दूरबीन है जिसकी मदद से आप ब्रह्मांड में ग्रहों के दृश्य देख सकते हैं। बता दें कि इन उपकरणों की मदद से ही हर साल एक पंचांग तैयार और प्रकाशित किया जाता है।
उज्जैन के जंतर मंतर का निर्माण 1725 और 1730 ई के बीच सवाई राजा जय सिंह द्वारा किया गया था। उज्जैन में जंतर मंतर ऐतिहासिक स्थल होने साथ ही खगोलीय अनुसंधान के लिए एक महत्वपूर्ण संरचना है। यह उज्जैन काफी समय से हिंदू ज्योतिषियों और विद्वानों के लिए अनुसंधान केंद्र रहा है। जंतर मंतर का विकास 18 वीं शताब्दी की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक था। जंतर मंतर नाम एक संस्कृत शब्द ‘यंत्र’ और ‘मंत्र’ से प्राप्त है जिसका अर्थ है जादुई यंत्र होता है। कुछ भारतीय खगोलविदों का कहना है कि कर्क रेखा को उज्जैन से गुजरना चाहिए, जो जंतर मंतर को हिंदू भूगोलविदों के लिए भी एक महत्वपूर्ण वेधशाला बनाता है। साल 1923 में ग्वालियर के तत्कालीन महाराजा माधव राव सिंधिया ने का जीर्णोद्धार कराया था। आज भी यह जंतर मंतर विभिन्न खगोलीय अध्ययनों का एक घर है।
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उज्जैन में स्थित जंतर मंतर सवाई राजा जय सिंह ब्रेनपावर का नतीजा है। इसे उज्जैन में ‘ग्रीनविच ऑफ इंडिया’ के रूप में बनाया गया था। राजा जय सिंह ने इस यंत्र के निर्माण के साथ ग्रह और धार्मिक विज्ञान की दुनिया में अपना कदम रखा था।
भारतीय पर्यटकों के लिए : 10 रूपये
विदेशी पर्यटकों के लिए ; 100 रूपये
स्टूडेंट्स के लिए : 5 रूपये
तारामंडल का शुल्क ; 20 रूपये
उज्जैन की जंतर मंतर में कई अन्य स्मारक शामिल हैं जिनके बारे में हमने नीचे विस्तार से बताया है।
शंकु यंत्र यहां स्थित एक ऐसा यंत्र है जो एक क्षितिज वृत्त के धरातल में बना हुआ है जिसकी छाया से सात रेखा खींची गई है जो 12 राशियों को बताती है। ये रेखाएं 22 जून को सबसे बड़ा दिन, 22 दिसंबर को सबसे छोटा दिन और 21 मार्च एवं 23 सितंबर को दिन और रात बराबर बताती है। बता दें कि यहां निर्मित शंकु की छाया दिन की अवधि बढ़ने या घटने के साथ कम ज्यादा होती रहती हैं, जिससे यह रेखाएं निर्मित हैं।
नादिवलय यंत्र यहां निर्मित एक ऐसा यंत्र है जिसके दो भाग होते हैं और जो धरातल पर बना हुआ है। इस यंत्र का एक भारत उत्तरी और एक दक्षिणी हैं। इसमें लगी उत्तरी डिस्क तब रोशन होती है जब सूर्य उत्तरी गोलार्ध में होता है और जब सूर्य दक्षिण गोलार्द्ध में रहता है तो इसका दक्षिणी डिस्क या भाग रोशन होता है। बता दें कि नादिवलय यंत्र का इस्तेमाल उतरी व दक्षिणी गोलार्द्ध में गृह व् नक्षत्र की स्थिति जानने के लिए किया जाता है।
सम्राट यंत्र 22 फीट लंबा उपकरण है जिसमें एक झुकाव 23 डिग्री और 10 डिग्री है। इस यंत्र के बीच में एक सीढ़ी लगी हुई है जिसकी ऊपरी सतह पृथ्वी की धुरी के सामानांतर होने की वजह से इसकी में ध्रुव तारा दिखाई देता है। सीढ़ी की दीवारों के पूर्व और पश्चिम दिशा समय दर्शाने के लिए एक चौथाई गोल भाग बना हुआ है। इस भाग में घंटे, मिनट और मिनट का तीसरा भाग बने हुए हैं। जब सूरज चमकता है तो दीवारी की परछाई पूर्व या पश्चिम दिशा के समय बतलाने वाले किसी भी एक भाग पर पड़ती है। इस निशान से उज्जैन का समय ज्ञात होता है।
यज्ञशाला यंत्र में 32 फीट और 10 इंच के व्यास के साथ एक गोलाकार दीवार है। बता दें कि इस यंत्र का उपयोग किसी भी खगोलीय पिंड की ऊंचाई और अज़ीमुथ का पता लगाने के लिए किया जाता है।
उजैन मध्यप्रदेश के प्रमुख पर्यटक और तीर्थ स्थलों में से एक है, जो जंतर मंतर के साथ साथ अन्य प्रसिद्ध मंदिर और पर्यटक स्थलों से सजा हुआ है।
यदि आप अपनी फैमली या फ्रेंड्स के साथ जंतर मंतर या उज्जैन की वेधशाला की यात्रा पर जा रहे है, तो आपको अपनी यात्रा में नीचे दिए गये प्रमुख मंदिरों और पर्यटक स्थलों की यात्रा भी अवश्य करनी चाहिये-
उज्जैन की यात्रा के लिए अक्टूबर से मार्च सबसे अच्छे महीने हैं क्योंकि इस दौरान यहां का मौसम खुशनुमा और हवा भरा होता है। यह मौसम दर्शनीय स्थलों की यात्रा के लिए सही समय है। इस दौरान शहर का मौसम 20 डिग्री सेल्सियस रहता है। सर्दियों के दौरान पूरा शहर सुबह के समय धुंध से भरा होता है और रात के समय काफी ठंड होती है। ग्रीष्मकाल के मौसम में यहां भीषण गर्मी पड़ती है और तापमान 45 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है। इसलिए, उज्जैन में सर्दियों के दौरान यात्रा करना सबसे अच्छा रहेगा।
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अगर उज्जैन के जंतर मंतर की यात्रा करना चाहते हैं तो बता दें कि उज्जैन सड़कों और रेलवे के अच्छे नेटवर्क के माध्यम से भारतीय शहरों से जुड़ा हुआ है।
उज्जैन का निकटतम हवाई अड्डा इंदौर हवाई अड्डा है जो शहर से 55 किमी दूर है। इंदौर वायु के माध्यम से भारत के सभी प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है और इंदौर से उज्जैन तक पहुंचने के बस ट्रेन और कैब आसानी से उपलब्ध है। आप इंदौर से जंतर मंतर जाने के लिए टैक्सी भी किराये पर ले सकते हैं।
उज्जैन शहर राज्य सड़क परिवहन सार्वजनिक बस सेवाओं द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। मध्य प्रदेश शहर के प्रमुख राज्यों से यहां आने के लिए बस आसानी से उपलब्ध हैं। आप अपने वाहन से भी उज्जैन आसानी से पहुंच सकते हैं।
उज्जैन जंक्शन रेलवे स्टेशन यहां का प्रमुख रेलवे स्टेशन है और देश के सभी प्रमुख स्टेशनों से जुड़ा हुआ है। आप रेलवे स्टेशन से जंतर मंतर के लिए टैक्सी या कैब किराये से ले सकते हैं।
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इस लेख में आपने उज्जैन के जंतर मंतर के बारे में जाना है आपको हमारा ये लेख केसा लगा हमे कमेंट्स में जरूर बतायें।
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