Temples Of Varanasi In Hindi : भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में गंगा नदी के किनारे स्थित “वाराणसी एक ऐसा पवित्र शहर है जिसका नाम हिंदुओं के प्रमुख तीर्थस्थलों में शामिल है। वाराणसी देश भर में अपने कई प्राचीन मंदिरों की वजह से प्रसिद्ध है, इस जगह पर आकर यहाँ के मंदिरों के दर्शन करने के बाद यात्री अपने आप को बेहद हल्का महसूस करते हैं। बनारस कई लोग मुक्ति और शुद्धिकरण लिए भी आते हैं। वाराणसी में कई विशाल मंदिरों अलावा यहां कई घाट और कई पर्यटन स्थल भी हैं जो यहां आने वाले पर्यटकों और तीर्थयात्रियो को आकर्षित करते हैं। बनारस एक ऐसा अध्यात्मिक शहर है, जहाँ के मंदिरों के दर्शन करने के लिए सिर्फ भारत से ही नहीं बल्कि विदेशों से भी पर्यटक आते हैं।
काशी या बनारस के नाम से प्रसिद्ध वाराणसी शहर दुनिया का सबसे प्राचीन शहर बताया जाता है। गंगा नदी के किनारे बड़ा यह जगह अपने संस्कृति, पौराणिक कथाओं, साहित्य और कला के लिए जानी-जाती है। इस शहर की उत्पत्ति लगभग 2500 वर्ष पहले की बताई जाती है जब भगवान शिव ने देवी पार्वती से शादी की थी और इस पवित्र शहर में रहे थे। इसके बाद आर्यों ने शहर में शासन किया और यहां पर रेशम, मलमल, हाथी दांत और इत्र आदि चीजों का व्यापार शुरू किया। अफगान आक्रमण और मुस्लिम शासन के समय यह शहर विनाशकारी दौर से गुजरा था जिसमें कई मंदिरों का विनाश हुआ था। लेकिन मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल ने इस शहर का गौरव वापस दिलाया।
दशाश्वमेध घाट वाराणसी में गंगा नदी पर स्थित मुख्य घाट है जो अपनी आध्यात्मिकता के लिए बहुत लोकप्रिय है। इस घाट की खास बात यह है कि इस कि यहां पर भगवान ब्रह्मा ने एक यज्ञ किया था, जिसमें उन्होंने 10 घोड़ों की बलि दी थी। जिसकी वजह से इसका नाम दशाश्वमेध पड़ा। दशाश्वमेध वाराणसी के खास दर्शनीय स्थलों में से एक है जहां पर कई तरह के अनुष्ठान किए जाते हैं। इस घाट पर शाम को गंगा आरती का आयोजन होता है, जिसमें सैकड़ों की संख्या में लोग शामिल होते हैं। अगर आप वाराणसी के प्रमुख मंदिरों के दर्शन करने जा रहे हैं तो आप दशाश्वमेध घाट जरुर देखने जाए और गंगा आरती का आनंद लें।
तुलसी मानसा मंदिर वाराणसी के प्रमुख मंदिरों में एक हैं। इस मंदिर को 1964 में बनवाया गया था जो भगवान राम को समर्पित है। इस मंदिर का नाम संत कवि तुलसी दास के नाम पर रखा गया था। माना जाता है कि यह वही जगह है जहां पर तुलसीदास ने हिंदी भाषा की अवधी बोली में हिंदू महाकाव्य रामायण लिखी थी। इस मंदिर में जुलाई – अगस्त के महीनों में कठपुतलियों का एक विशेष खेल प्रदर्शन होता है, जिसका संबंध रामायण से होता है। अगर आप वाराणसी के मंदिरों के दर्शन करने आये हैं और कठपुतलियों यह मजेदार खेल देखने का अनुभव लेना चाहते हैं तो सावन के महीनों इस जगह की यात्रा करें।
अगर आप वाराणसी के मंदिरों के दर्शन करने जा रहे हैं तो काशी विश्वनाथ मंदिर के दर्शन करने बिना आपकी यात्रा अधूरी रह जाएगी। काशी विश्वनाथ मंदिर वाराणसी के सबसे प्रमुख मंदिरों में से एक हैं जो भगवान शिव को समर्पित है। इस मंदिर में विराजित शिव की ज्योतिर्लिंग देश के सभी 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है, जिसकी वजह से इस मंदिर को वाराणसी का एक खास मंदिर कहा जाता है। इस मंदिर में प्रतिदिन 3,000 भक्त आते हैं और खास उत्सव पर इस मंदिर में आने वाले लोगों की संख्या 1,00,000 तक हो जाती है। काशी विश्वनाथ मंदिर इसलिए लोकप्रिय है क्योंकि यह हिंदुओं के कई पवित्र ग्रंथों में उल्लेख करता है।
दुर्गा मंदिर वाराणसी के प्रमुख मंदिरों में से एक हैं और इस मंदिर को बंदर मंदिर भी कहा जाता है। एक बंगाली महारानी द्वारा 18 वीं शताब्दी में निर्मित यह मंदिर को गेरू से लाल रंग में रंगा गया है। इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इस मंदिर में विराजित देवी दुर्गा की मूर्ती अपने आप प्रकट हुई थी, इसका निर्माण नहीं किया गया था। अगर आप वाराणसी की यात्रा करने जा रहे हैं तो इस मंदिर को भी अपनी लिस्ट में जरुर शामिल करें।
भारत माता मंदिर शहर वाराणसी के सबसे महत्वपूर्ण मंदिरों में से एक है। महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ परिसर के इस मंदिर में रोजाना नियमित वाराणसी के सभी कोनों से लोगों का आना-जाना लगा रहता है। कहा जाता है कि यह मंदिर उन कुछ मंदिरों में से एक है, जो भारत माता को समर्पित हैं।
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संकटा देवी मंदिर देश में सबसे प्रमुख मंदिरों में से एक है जो बनारस में सिंधिया घाट के पास स्थित है। इस मंदिर को बनारस के सबसे महत्वपूर्ण मंदिरों में से एक माना जाता है। इस मंदिर में संकटा देवी की पूजा की जाती है जिसके अंदर आने पर आपको माता की एक विशाल मूर्ति मिलेगी जो एक शेर के ऊपर विराजित है।
बनारस में स्थित संकट मोचन मंदिर शक्तिशाली भगवान हनुमान को समर्पित है। जब भी कोई तीर्थयात्री बनारस की यात्रा के लिए आता है तो वो अपनी समस्याओं से मुक्ति पाने और हनुमान जी के दर्शन करने इस मंदिर में जरुर आता है। संकट मोचन का अर्थ होता है संकट को मिटाने वाला। यहां आने वाले भक्तों का विश्वास होता है कि हनुमान जी उनकी समस्याओं को दूर कर देंगे। इस मंदिर में आप भक्तों को भगवान् के मंत्रो का जाप करते हुए देख सकते हैं। इस मंदिर में कई जातीय त्योहारों को आयोजित करता है।
बनारस के सभी मंदिरों के बीच ललिता गौरी मंदिर सबसे महत्वपूर्ण है। इस मंदिर प्रसिद्ध काशी विश्वनाथ मंदिर के पास स्थित है। यह मंदिर देवी पार्वती (भगवान शिव की पत्नी) के एक रूप देवी अन्नपूर्णा समर्पित हैं जो भोजन की देवी के रूप में मानी जाती हैं। अगर आप बनारस के प्रमुख मंदिरों के दर्शन करने आये हैं तो ललिता गौरी मंदिर को भी अपनी लिस्ट में शामिल कर लें।
वाराणसी के सबसे पुराने और ऐतिहासिक मंदिरों में से एक कालभैरव मंदिर भगवान शिव के सबसे आक्रामक और विनाशकारी रूप को समर्पित है। कालभैरव मंदिर 17 वीं शताब्दी ईस्वी में बनाया गया था जिसके बारे में कहा जाता है कि यह अपने भक्तों की सभी समस्याओं को दूर करता है। बनारस आने वाले सभी तीर्थयात्रियों को शिव जी के इस मंदिर के दर्शन करने के लिए जरुर आना चाहिए।
डंडी राज गणेश मंदिर वाराणसी के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है, जो काशी विश्वनाथ मंदिर की गली में स्थित है। ऐसा माना जाता है कि जो लोग इस मंदिर के दर्शन करने आते हैं, उन्हें सभी प्रकार की चिंताओं और बाधाओं से मुक्ति मिलती है। जानकारों की माने तो जब भगवान शिव काशी आये थे तब उनके पुत्र भगवान गणेश ने उनका अनुसरण किया था और कुछ समय के लिए यही बस गए थे।
वाराणसी से 13 किमी की दूरी पर स्थित सारनाथ भारत में प्रसिद्ध बौद्ध तीर्थस्थलों में से एक है। वाराणसी के आस-पास घूमने वाली जगहों में यह एक बेहद खास स्थान है। काशी के घाटों और गलियों में घूमने के बाद आप इस जगह आकर एकांत में शांति का अनुभव कर सकते हैं। माना जाता है कि बोधगया में ज्ञान प्राप्त करने बाद भगवान बुद्ध अपने पूर्व साथियों की तलाश में सारनाथ आये थे और उन्होंने यहां अपना पहला उपदेश दिया था। सारनाथ के लोकप्रिय दर्शनीय स्थलों में चौखंडी स्तूप, अशोक स्तंभ, धमेख स्तूप, पुरातत्व संग्रहालय, मूलगंध कुटी विहार, चीनी, थाई मंदिर और मठ शामिल हैं।
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वाराणसी में संस्कृतियों का आदान-प्रदान शुरू से ही भारतीय सभ्यता का हिस्सा रहा है। क्रमिक साम्राज्यों ने बनारस को अपना व्यापारिक और सांस्कृतिक केंद्र बना लिया है जिससे यह शहर कई संस्कृतियों के संपर्क में आ गया। मौर्यों और गुप्तों जैसे प्रारंभिक राजवंशों के बाद मुगलों के मध्यकाल और बाद में ब्रिटिश साम्राज्य में यूनानी, हिंदू, इस्लामिक, बौद्ध, ईसाई और जैन जीवन पद्धति ने वाराणसी शहर को काफी प्रभावित किया है। वर्तमान में यह शहर हिंदू धर्म के बड़ी संख्या में मंदिरों के लिए जाना जाता है। बता दें कि बनारस एक लंबे समय तक एक बहुत धनी शहर था, जिसके घाट, सार्वजनिक स्थल और पूजा स्थल इसकी भव्यता को दर्शाते हैं।
प्रतिदिन शाम को वाराणसी में घाटो पर गंगा आरती की जाती है जो बेहद प्रसिद्ध है। इस गंगा आरती को देखना यहां आने वाले तीर्थयात्रियों को एक अलग अनुभव देता है। यह शानदार आरती दशाश्वमेध घाट पर होती है जो भोर के समय शुरू होती है। सर्दियों में गंगा आरती शाम को 6 बजे और गर्मियों में 7 बजे शुरू होती है। इस आरती में शामिल होने के लिए 90 मिनट पहले दर्शन इकट्ठा होते लगते हैं। इसके साथ ही मंदिर के आस-पास के घरों, दुकानों की छतों और नदी किनारों पर भरी नौकाओं को भी देख सकते हैं। बता दे कि गंगा आरती सात लकड़ी के तख्तों पर होती है जिसमें से एक-एक को भगवा वस्त्र और अगरबत्ती, शंख, पीतल के दीपक जैसी पूजा सामग्रियों से सजाया जाता है।
इस आरती को सात पंडितों द्वारा किया जाता है जिसमें मंत्रो की लय और प्रार्थनाओं की गूंज सुनाई देती है। वाराणसी की सबसे मंत्रमुग्ध और गौरवशाली गंगा आरती को हजारों दर्शक देखते हैं। गंगा आरती का समापन शंख बजाने और कपूर के दीपक जलाने से शुरू होता है। इस पूरी आरती में 45 मिनट लगते हैं, जिसके अंत में आप पंडितों, तीर्थयात्रियों और पर्यटकों को तितर-बितर होते हुए देख सकते हैं। अगर आप बनारस घूमने आ रहे हैं तो आपको दशाश्वमेध घाट पर होने वाली प्रतिदिन होने वाली गंगा आरती में जरुर शामिल होना चाहिए।
वाराणसी में गंगा नदी पर नाव की सवारी करना आपके लिए बहुत खास हो सकता है। गंगा नहीं बनारस शहर में बहती है इसमें कई घाट इस नदी जो जमीन से जोड़ते हैं। बता दें कि गंगा नदी के कई घाट पर सुबह से शाम तक कई बड़ी और छोटी नावें यहां घूमने आने वाले लोगों के इंतज़ार में खड़ी रहती है। अगर आप वाराणसी आते हैं तो आप यहां नाव की सवारी का मजा ले सकते हैं।
अगर आप के मन में यह सवाल आ रहा है कि वाराणसी जाने के लिए अच्छा समय क्या है तो बता दें कि अगर आप वाराणसी की यात्रा करना चाहते हैं तो अक्टूबर से मार्च तक के महीनों में जायें। इन महीनों में वहां का मौसम यात्रा के लिए अनुकूल होता है। नवंबर में हर साल वाराणसी में एक पांच दिवसीय उत्सव गंगा महोत्सव मनाया जाता है, यह उत्सव आने वाले पर्यटकों को बहुत आकर्षित करता है।
अगर आप बनारस जा रहे हैं और यहां मिलने वाले खाने के बारे में जानना चाहते हैं तो आपको बता दें कि इस जगह मिलने वाले में दम आलू, बाटी, आलू-टिक्की, कचोरी, पानी पुरी, जलेबी, राबड़ी और केकंद जैसे व्यंजक शामिल हैं। अगर आप पान खाना पसंद करते हैं तो तो बनारस के मशहूर पान का भी मजा ले सकते हैं। अगर आप हल्का कुछ खाना चाहते हैं तो बनारस के स्वादिष्ट स्ट्रीट फूड की ओर भी जा सकते हैं।
वाराणसी एक ऐसा शहर है जिसको काशी और बनारस के नाम से भी जाना जाता है, जो भारत के सबसे प्राचीन शहरों में से एक है। एक प्रमुख सांस्कृतिक और धार्मिक केंद्र शहर होने की वजह से यहां हर साल बड़ी संख्या में देशी और विदेशी पर्यटक आते हैं। वाराणसी के लिए आपको देश के बड़े शहरों से फ्लाइट, ट्रेन और बस आसानी उपलब्ध हो जाएगी।
अगर आप हवाई जहाज से वाराणसी की यात्रा करना चाहते हैं तो बता दें कि लाल बहादुर शास्त्री हवाई अड्डा या वाराणसी हवाई अड्डा मुंबई और दिल्ली से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। खजुराहो, बैंगलोर, मुंबई और गोवा से एयर इंडिया और इंडिगो जैसी घरेलू विमान सेवाएं आपको वाराणसी पहुंचा देंगी।
वाराणसी रेलवे जंक्शन और काशी रेलवे स्टेशन वाराणसी में दो मुख्य रेलवे स्टेशन हैं। आप इन दोनों में से किसी भी स्टेशन के लिए टिकट बुक करा सकते हैं। दोनों रेलवे स्टेशन रेल नेटवर्क के माध्यम से भारत के प्रमुख शहरों से जुड़े हुए हैं। दिल्ली से आपको वाराणसी के लिए कई ट्रेनें मिल मिल जाएगी। रेलवे स्टेशन पहुंचने के बाद आपको बाहर से ऑटो रिक्शा ऑटो और रिक्शा आसानी से मिल जायेंगे।
वाराणसी सड़क मार्ग द्वारा इलाहाबाद, लखनऊ, पटना, गोरखपुर, रांची और दिल्ली जैसे शहरों से सड़क मार्ग द्वारा कनेक्ट है। इनमें से कई शहरों से आपको वाराणसी के लिए कईआरामदायक वातानुकूलित लक्जरी बसों के अलावा कई राज्य बसें और निजी बसें मिल जायेंगी। राष्ट्रीय राजमार्ग, एनएच 2 और एनएच 28 लखनऊ से वाराणसी तक जाता है जिसकी यात्रा में आपको लगभग 6 से 7 घंटे का समय लगेगा।
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