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महाराणा प्रताप की कहानी – History Of Maharana Pratap In Hindi

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Maharana Pratap In Hindi : महाराणा प्रताप उत्तर-पश्चिमी भारत के एक प्रसिद्ध राजपूत योद्धा (Rajput Warrior) और राजस्थान में स्थित मेवाड़ (Mewar) के राजा थे। वे सबसे महान राजपूत योद्धाओं में से एक थे जो अपने क्षेत्र को जीतने के लिए मुगल शासक अकबर के प्रयासों को असफल करने के लिए पहचाने जाते हैं।

अन्य पड़ोसी राजपूत शासकों के विपरीत, महाराणा प्रताप ने बार-बार शक्तिशाली मुगलों से संधि करने से मना कर दिया और अंतिम सांस तक (Last Breath) वे साहसपूर्वक लड़ते रहे। वे परिश्रम और राजपूत वीरता (Rajput Gallantry) के प्रतीक माने जाने वाले एकमात्र राजपूत योद्धा थे, जिन्होंने मुगल सम्राट अकबर से लोहा लिया। उन्हें राजस्थान में एक नायक के रूप में सम्मानित किया जाता है।

1. महाराणा प्रताप का बचपन और प्रारंभिक जीवन – Childhood And Early Life Of Maharana Pratap In Hindi

महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 को कुंभलगढ़ किले (Kumbhalgarh Fort) में जयवंता बाई और उदय सिंह द्वितीय के यहाँ हुआ था। उनके तीन छोटे भाई और दो सौतेले भाई थे। उनके पिता, उदय सिंह द्वितीय, मेवाड़ के राजा (King Of Mewar) थे और उनकी राजधानी (Capital) चित्तौड़ थी।

1567 में, मुगल सेनाओं ने मेवाड़ की राजधानी चित्तौड़ को घेर लिया। मुगल सेनाओं से लड़ने के बजाय, उदय सिंह ने राजधानी छोड़ दी और अपने परिवार को गोगुंडा (Gogunda) स्थानांतरित कर दिया। हालाँकि प्रताप ने इस फैसले का विरोध (Resist) किया और वापस आने पर जोर दिया, लेकिन उनके बुजुर्गों ने उन्हें समझाया कि वह जगह छोड़ना सही निर्णय था।

1572 में, उदय सिंह के निधन (Demise) के बाद, रानी धीर बाई (Rani Dheer Bai) ने जोर देकर कहा कि उदय सिंह के बड़े बेटे, जगमाल को राजा के रूप में ताज पहनाया जाना चाहिए, लेकिन वरिष्ठ दरबारियों को लगा कि प्रताप मौजूदा स्थिति को संभालने के लिए सबसे बेहतर हो सकते हैं। इस प्रकार महाराणा प्रताप अपने पिता के सिंहासन (Throne) पर बैठे।

2. महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक और शासन – Maharana Pratap Ka Rajyabhishek Aur Shashan In Hindi

जब राणा प्रताप को उनके पिता की जगह सिंहासन पर बैठाया गया, तो उनके भाई जगमल सिंह, जिन्हें उदय सिंह द्वारा क्राउन प्रिंस (Crown Prince) की उपाधि दी गयी थी, ने राणा प्रताप से बदला लिया और मुगल सेना में शामिल हो गए। मुगल राजा अकबर ने उसे सहायता प्रदान की और उसे जहाजपुर (Jahazpur) शहर भेंट में दिया।

जब राजपूतों ने चित्तौड़ को छोड़ा तब मुगलों ने वहां अपना कब्जा कर लिया, लेकिन मेवाड़ राज्य को हड़पने में वे कामयाब नहीं हुए। अकबर ने महाराण प्रताप से गठबंधन (Alliance) पर बात करने के लिए अपने कई दूतों (Envoys) को भेजा लेकिन उन्होंने इससे साफ मना कर दिया।

1573 में अकबर ने छह बार कूटनीतिक संबंध बनाने का प्रयास किया लेकिन महाराणा प्रताप ने इसे ठुकरा दिया। इन अभियानों में से अंतिम का नेतृत्व अकबर के बहनोई राजा मान सिंह ने किया था। जब शांति संधि (Peace Treaty) पर हस्ताक्षर करने के प्रयास सभी विफल हो गए, तो अकबर ने शक्तिशाली मुगल सेना का सामना करने का मन बना लिया।

3. महाराणा प्रताप और हल्दीघाटी का युद्ध हिंदी में – Maharana Pratap Aur Haldighati Ka Yudh In Hindi

18 जून, 1576 को हल्दीघाटी के मैदान में मुगलों की तरफ से आसफ खान और राजपूतों की तरफ से मान सिंह के नेतृत्व में दोनों सेना आमने-सामने खड़ी हुई। इतिहासकारों के अनुसार यह अब तक लड़ी गई लड़ाईयों में एक भयंकर लड़ाई (Fiercest Battles) थी, जिसमें मुगल सेनाओं (Mughal Forces) ने राजपूत सेना (Rajput Army) को मात दे दी। मेवाड़ की सेना राम शाह तंवर और उनके पुत्रों अर्थात चंद्रसेनजी राठौर, रावत कृष्णदासजी चुंडावत और मान सिंहजी झाला के अधीन थी।

हल्दीघाटी की लड़ाई चार घंटे तक चली और इस लड़ाई में मेवाड़ के लगभग 1600 सैनिक मारे गए जबकि मुगलों ने अपने सिर्फ 150 सैनिकों को खो दिया और 350 सैनिक घायल हो गए। महाराणा प्रताप बुरी तरह से घायल हो गए लेकिन भागकर पास की पहाड़ियों में छिप गए। हालांकि मुगलों ने अरावली (Aravellis) को छोड़कर मेवाड़ के कई हिस्सों जैसे गोगुंडा और आसपास के क्षेत्रों (Nearby Areas) पर अपना कब्जा कर लिया। लेकिन वे महाराणा प्रताप को पकड़ने में कामयाब नहीं हो सके। महाराण प्रताप ने अपनी गुरिल्ला रणनीति (Guerrilla Tactics) के माध्यम से मुगलों को परेशान करना जारी रखा।

जब अकबर का ध्यान इधर से हटकर दूसरी जगहों पर चला गया, तब महाराणा प्रताप ने पहाड़ियों से बाहर निकलकर अपनी सेना एकत्र की और दोबारा से हमला करके अपने प्रांत (Province) के पश्चिमी क्षेत्रों (Western Regions) पर सफलतापूर्वक नियंत्रण पा लिया।

और पढ़े: अशोक स्तंभ का इतिहास और इसके बारे में संपूर्ण जानकारी 

4. महाराणा प्रताप द्वारा दोबारा अपने राज्य को जीतना – Resurgence By Maharana Pratap In Hindi

मिर्जा हकीम के पंजाब में घुसने और बिहार और बंगाल में विद्रोह के बाद, अकबर ने इन समस्याओं से निपटने के लिए मेवाड़ से अपना ध्यान हटा दिया। जब मेवाड़ पर मुगलों का दबाव कम हुआ तब 1582 में महाराणा प्रताप ने फायदा उठाते हुए देवेर (Dewair) पर मुगल पोस्ट पर हमला कर दिया। अकबर 1585 में लाहौर चला गया और अगले बारह वर्षों तक उत्तर-पश्चिम (North-West) की विजय में लगा रहा। इस अवधि के दौरान उसने मेवाड़ में कोई मुगल अभियान नहीं किया। प्रताप ने इस स्थिति का लाभ उठाया और गोगुंडा, कुंभलगढ़ और उदयपुर सहित पश्चिमी मेवाड़ पर फिर से अधिकार कर लिया। उन्होंने डूंगरपुर (Dungarpur) के पास चावंड (Chavand) में एक नई राजधानी बनाई।

5. महाराणा प्रताप का व्यक्तिगत जीवन – Maharana Pratap Personal Life In Hindi

महाराणा प्रताप की ग्यारह पत्नियां, पांच बेटियां और सत्रह बेटे थे। हालांकि, उनकी पसंदीदा पत्नी उनकी पहली पत्नी थी जिसका नाम महारानी अजबदे पुंवर (Ajabde Punwar) था। उन्होंने 1557 में अपनी पहली शादी की। 1559 में, उनके पहले बेटे अमर सिंह का जन्म हुआ जो बाद में उनका उत्तराधिकारी बना।

ऐसा कहा जाता है कि राजपूत एकता को मजबूत करने के लिए प्रताप ने दस और राजकुमारियों से शादी की। महाराणा प्रताप ने अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा जंगलों में बिताया।

6. महाराणा प्रताप की मृत्यु – Maharana Pratap Death In Hindi

मुगल साम्राज्य (Mughal Empire) के खिलाफ निरंतर संघर्ष करते हुए महाराणा प्रताप लगातार जख्मी होते रहे। इसके चलते वे बीमार रहने लगे और 29 जनवरी, 1597 को 56 वर्ष की आयु में महाराणा प्रताप की मौत हो गई। महाराणा प्रताप की मौत के बाद उनके बड़े पुत्र अमर सिंग को सिंहासन पर बैठाया गया।

7. महाराणा प्रताप के बारे में रोचक तथ्य – Interesting Facts About Maharana Pratap In Hindi

  • महाराणा प्रताप सात फीट और पांच इंच लंबे (Height) थे और उनका वजन (Weight) 110 किलोग्राम था।
  • उनकी ग्यारह पत्नियां, पांच बेटियां (Daughters) और सत्रह बेटे थे। उनकी पत्नियों के नाम हैं अजबदे ​​पुंवर, रानी लखबाई, रानी चम्पाबाई झटी, रानी शाहमति बाई हाडा, रानी रत्नावती बाई परमार, रानी सोलंकीपुरी बाई, रानी अमरबाई राठौर, रानी फूल बाई राठौर, रानी आलमबाई चौहान (Alambai Chauhan), रानी चौहान, रानी आलमबाई।
  • महाराणा प्रताप और उनके परिवार को लंबे समय तक जंगल में रहना पड़ा और घास की रोटी (Grass Chapattis) खाकर जीवित (Survived) रहना पड़ा। एक दिन एक जंगली बिल्ली ने महाराणा की बेटी के हाथों से घास की रोटी छीन ली, तब उन्होंने अकबर के सामने आत्मसमर्पण (Surrender) करने का फैसला किया।
  • गुरिल्ला युद्ध की रणनीति (Strategy) का उपयोग करने में महाराणा प्रताप बहुत कुशल थे।
  • उनके पास चेतक (Chetak) नाम का एक बहुत ही वफादार घोड़ा (Faithful Horse) था, जो महाराणा का पसंदीदा भी था। हल्दीघाटी के युद्ध में राणा प्रताप को बचाने के प्रयास में चेतक अमर (Immortal) हो गया।
  • यह एक सर्वविदित तथ्य है कि प्रताप अपने घोड़े चेतक से प्यार करते थे, लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि चेतक की नीली आँखें (Blue Eyes) थीं। चेतक के अलावा, एक और जानवर था जो महाराणा को बहुत प्रिय था – रामप्रसाद नामक एक हाथी। हल्दीघाटी के युद्ध के दौरान रामप्रसाद ने कई घोड़ों, हाथियों और सैनिकों को मार डाला और घायल कर दिया। कहा जाता है कि राजा मानसिंह ने रामप्रसाद को पकड़ने के लिए सात हाथियों को तैनात किया था।

और पढ़े :

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