हिंदू मान्यता के अनुसार अमरनाथ यात्रा को सबसे कठिन यात्रा माना जाता है। कहा जाता है जिसने अमरनाथ की यात्रा कर ली, उसका जीवन सफल हो गया। जम्मू कश्मीर में स्थित अमरनाथ गुफा दुनियाभर में स्थित भगवान शिव के प्रमुख तीर्थस्थलों में से एक है। इसकी मान्यता इतनी है कि लाखों लोग हर साल चुनौतियों का सामना करते हुए भी इस यात्रा को पूरी करते हैं। हर साल जुलाई में 48 दिन की ये यात्रा शुरू हो जाती है। यहां का मुख्य आकर्षण का केंद्र है अमरनाथ की गुफा। अमरनाथ की गुफा श्रीनगर से 141 किमी दूर 3888 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। गुफा की लंबाई 19 मीटर और चौड़ाई 16 मीटर है। सालभर ये गुफा घनघोर छाई बर्फ के कारण ढंकी रहती है। गर्मियों में जब यह बर्फ पिघलने लगती है, तब इसे कुछ समय के लिए श्रद्धालुओं के लिए खोला जाता है। वैसे अमरनाथ को तीर्थों का तीर्थ भी कहा जाता है, क्योंकि यहीं पर भगवान शिव ने अपनी दैवीय पत्नी पार्वती को जीवन और अनंत काल का रहस्य बताया था।
शिवलिंग की कहानी भगवान शिव और माता पार्वती से जुड़ी है। खास बात है कि यह शिवलिंग बर्फ से प्राकृतिक रूप से ही बनती है। बताया जाता है कि इस गुफा में पानी की बूंदे जगह-जगह टपकती हैं, जिससे प्राकृतिक रूप से शिवलिंग का निर्माण होता है। प्राकृतिक हिम से लगभग 10 फुट लंबा शिवलिंग हर साल यहां बनता है। जिसे हिमानी शिवलिंग भी कहा जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार चंद्रमा का आकार घटने या बढऩे के साथ ही शिवलिंग का आकार घटता और बढ़ता है। अजूबा ही है कि यहां बना शिवलिंग ठोस बर्फ का होता है, जबकि गुफा के अंदर मौजूद बर्फ कच्ची होती है जो हाथ लगाते ही पिघल जाती है। आषाढ़ पूर्णिमा से रक्षाबंधन तक हिमलिंग दर्शनों के लिए लाखों यात्री यहां आते हैं।
पौराणिक कथा के अनुसार अमरनाथ गुफा की खोज भृगु मुनि ने की थी। बताया जाता है कि बहुत समय पहले कश्मीर घाटी पानी में डूब गई थी। तब कश्यप मुनि ने नदियों की एक श्रृंखला के जरिए इसे पानी से बाहर निकाला था। तब भृगु मुनि ही पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने अमरनाथ की गुफा के दर्शन किए थे।
धार्मिक पुराणों के मुताबिक गुफा में मौजूद दो कबूतरों की कहानी भी भगवान शिव और माता पार्वती से जुड़ी है। बताया जाता है कि एक बार माता पार्वती ने भगवान शिव से उनके अजर-अमर होने का रहस्य पूछा था। जिसे बताने के लिए भगवान शिव उन्हें इस गुफा में ले गए ताकि कोई भी जन जीव इस कथा को न सुनने पाए। क्योंकि जो भी इस कथा को सुन लेता तो निश्चित रूप से वह अमर हो जाता। पुराणों के अनुसार शिवजी ने यहां पर पार्वती को अपनी कठोर साधनी की कथा सुनाई, जिसे अमरत्व कहा जाता है। कथा सुनते-सुनते पार्वती को नींद आ गई लेकिन शिवजी को पता नहीं चला। वे अपनी कथा सुनाते रहे। उस समय वहां दो कबूतर मौजूद थे, जो उनकी कथा सुन रहे थे और बीच -बीच में हूं -हूं की आवाज निकाल रहे थे, तो शिवजी को लगा कि पार्वती कथा सुनने के दौरान आवाज निकाल रही हैं। उन्होंने बाद में देखा तो पार्वती तो गहरी नींद में सो रही थीं, लेकिन दो कबूतर उनकी कथा सुनकर अमर हो गए। इस बात पर भगवान शिव को बहुत गुस्सा आया और उन्हें मारने की सोचा। तब कबूतरों ने भगवान शिव से कहा कि आप चाहें तो हमें मार दें, लेकिन इससे आपकी अमर होने वाली कथा झूठी हो जाएगी। जिसके बाद भगवान शंकर ने उन्हें माफ कर दिया और उन्हें वरदान दिया कि तुम हमेशा इस जगह पर माता पार्वती के प्रतीक चिन्ह के रूप में निवास करोगे। तब से गुफा में दो कबूतरों की कथा प्रचलित हो गई। हालांकि लोगों का सवाल होता है कि क्या आज भी ये कबूतर यहां देखने को मिलते हैं। तो बता दें कि इस गुफा में आप कई कबूतरों का झुंड देख सकते हैं, लेकिन अमर कथा सुनने वाले कबूतर कौन से हैं, उसका अनुमान लगाना नामुमकिन है।
अमरनाथ यात्रा से पहले डॉक्टर्स कुछ जरूरी मेडिकल टेस्ट कराने की सलाह देते हैं, ताकि यात्रा के दौरान यात्रियों को किसी परेशानी का सामना ना करना पड़े। जिनमें ब्लड डिसऑर्डर, जॉइंट पेन, हाई ब्लड प्रेशर, अस्थमा, प्रेग्नेंसी, डायबिटीज, एपीलेप्सी, नर्वस ब्रेकडाउन प्रमुख हैं। इसके अलावा यात्रियों को बताना होगा कि क्या वे स्मोकर हैं। क्या उनके कानों से डिस्चार्ज होता है। इसके अलावा आपको यदि कोई एलर्जी है तो इसका भी टेस्ट आपको कराना होगा।
अमरनाथ की यात्रा पर जाने के लिए दो रास्ते प्रमुख हैं। पहला पहलगाम से तो दूसरा बालटाल से। पहलगाम अमरनाथ यात्रा का बेस कैंप है, जहां से यात्री अमरनाथ गुफा के लिए पैदल यात्रा शुरू करते हैं। अगर आप बाई रोड जा रहे हैं तो इसके लिए पहले आपको जम्मू तक जाना होगा, फिर जम्मू से श्रीनगर तक का सफर करना होगा। यहां से आप पहलगाम या बालटाल कहीं से भी यात्रा शुरू कर सकते हैं। यहां से अमरनाथ गुफा की दूरी करीब 91 किमी से 92 किमी है। अगर आप बस से अमरनाथ पहुंचना चाहते हैं तो दिल्ली से रैगलुर बस सर्विस अमरनाथ के लिए 24 घंटे उपलब्ध रहती है।
अब बात करते हैं अमरनाथ यात्रा के रूट की। तो बता दें कि बालटाल रूट से अमरनाथ गुफा के बीच की दूरी मात्र 14 किमी है। लेकिन ये मार्ग काफी कठिन है क्योंकि यहां सीढिय़ां खड़ी हैं, इसलिए इस रास्ते को चुनना जरा कठिन साबित हो सकता है। वहीं अगर पहलगाम रूट से जाते हैं तो यहां से अमरनाथ गुफा तक पहुंचने में तीन दिन लगेंगे। यहां से गुफा की दूरी करीब 48 -50 किमी है। लेकिन ये अमरनाथ यात्रा का काफी पुराना रूट और इसी रास्ते से गुफा का रास्ता तय करना काफी आसान है।
अमरनाथ यात्रा के लिए रजिस्ट्रेशन और यात्रा परमिट पहले आओ पहले पाओ के आधार पर मिलता है। एक यात्रा परमिट से केवल एक यात्री ही यात्रा कर सकता है। हर रजिस्ट्रेशन शाखा को यात्रियों को रजिस्टर करने के लिए निश्चित दिन और मार्ग आवंटित किया जाता है। पंजीकरण शाखा ये तय करती है कि यात्रियों की संख्या प्रति मार्ग कोटा सो ज्यादा ना हो। हर यात्री को यात्रा के लिए यात्रा परमिट प्राप्त करने के साथ हेल्थ सर्टिफिकेट भी जमा करना जरूरी होगा। रजिस्ट्रेशन और स्वास्थ्य प्रमाण पत्र के लिए फॉर्म एसएएसबी द्वारा ऑनलाइन उपलब्ध कराए जाते हैं। यात्रा परमिट के लिए अप्लाई करने के दौरान यात्रियों को हेल्थ सर्टिफिकेट , चार पासपोर्ट साइज के फोटो अपने पास रखना जरूरी है।
यहां पर रजिसट्रेशन ऑफिसर बालटाल और पहलगाम के लिए अलग-अलग रंग के यात्रा परमिट उपलब्ध करते हैं। हर दिन के लिए इन परमिट का रंग भी अलग होता है।
सोमवार को लैवेंडर, मंगलवार को पिंक लेस, बुधवर को बैज रंग, गुरूवार को पीच, शुक्रवार को लैमन शिफॉन, शनिवार को नीला और रविवार को हनी ड्यू रंग का परमिट उपलब्ध कराया जाता है। जबकि बालटाल रूट के लिए सोमवार को लैमन शिफॉन, मंगलवार को नीला, बुधवार को हनी ड्यू, गुरूवार को लैवेंडर, शुक्रवार को पिंक लेस, शनिवार को बैज और रविवार को पीच रंग का परमिट यात्रियों को मिलता है।
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